
Narendra Modi Sri Lanka Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका की यात्रा पर हैं। उन्हें औपचारिक गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। यह तीसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी की पहली श्रीलंका यात्रा है। श्रीलंका आकार में छोटा, लेकिन सामरिक रूप से बेहद अहम देश है। यह हिंद महासागर में बेहद महत्वपूर्ण जगह स्थित है। श्रीलंका से भारत के कई अहम सामरिक ठिकानों पर नजर रखी जा सकती है। यही वजह है कि श्रीलंका में चीन के प्रभाव बढ़ने से भारत में चिंताएं हैं।
पिछले साल श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके के कार्यभार संभालने के बाद से यह नरेंद्र मोदी की पहली यात्रा है। 2024 में दिसानायके के कार्यकाल शुरू होने के बाद से किसी भी विदेशी नेता की यह पहली श्रीलंका यात्रा है। दिसानायके ने दिसंबर में भारत यात्रा के बाद की थी। पदभार संभालने के बाद वह पहली राजकीय यात्रा पर भारत आए थे। नरेंद्र मोदी आखिरी बार 2019 में श्रीलंका गए थे। 2015 के बाद से श्रीलंका की यह उनकी चौथी यात्रा है।
नरेंद्र मोदी की श्रीलंका यात्रा का उद्देश्य द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को बढ़ाना तथा ऊर्जा, व्यापार और संपर्क क्षेत्रों में साझेदारी मजबूत करना है। दिसंबर 2024 में दिसानायका भारत आए थे। इस दौरान नरेंद्र मोदी के साथ महत्वपूर्ण रक्षा सहयोग समझौते को लेकर उनकी बात हुई थी। अब मोदी की श्रीलंका यात्रा के दौरान इसे अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है।
अगर भारत और श्रीलंका के बीच रक्षा सहयोग पर समझौता हुआ तो इससे दोनों देशों के रक्षा संबंधों में एक बड़ी उन्नति होगी। करीब 35 साल पहले भारत द्वारा श्रीलंका से भारतीय शांति सेना (IPKF) को वापस बुलाए जाने से संबंधित कटु अध्याय पीछे छूट जाएगा। श्रीलंका में चीन का सैन्य प्रभाव तेजी से बढ़ा है। इसके चलते भारत की कोशिश है कि श्रीलंका के साथ अपने रक्षा संबंधों को बढ़ाएं ताकि चीन अपनी पैठ न बना सके।
चीन पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। उसका खास ध्यान भारत के लिए अहम इलाकों पर है। इसके चलते चीन ने कर्ज के जाल में फंसाकर श्रीलंका पर अपना प्रभाव बढ़ाया है। श्रीलंका कर्ज के पैसे नहीं लौट सका तो चीन ने हंबनटोटा बंदरगाह ले लिया। यहां चीन अपना 25 हजार टन का उपग्रह और मिसाइल ट्रैकिंग जहाज युआन वांग 5 सहित दूसरे जहाजों को लाता है। चीन के जासूसी जहाज हंबनटोटा पोर्ट पर खड़े होकर भारत के परमाणु और सैन्य ठिकानों की निगरानी करते हैं। श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यह रणनीतिक स्थिति भारत के लिए चिंता का विषय है।
अगस्त 2022 में भारत के शुरुआती विरोध के बावजूद श्रीलंका ने चीनी जहाजों को सामान लेने के लिए हंबनटोटा में डॉक करने की अनुमति दी। चीनी निगरानी जहाज हंबनटोटा बंदरगाह सुविधाओं का उपयोग करते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में गश्त लगाते हैं।
श्रीलंका कर्ज के पैसे नहीं लौटा सका तो चीन ने हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर ले लिया। 1.7 बिलियन डॉलर (14535 करोड़ रुपए) की लागत से हंबनटोटा बंदरगाह विकसित किया गया था। इसका पहला चरण 2010 में पूरा हुआ था। इसके लिए श्रीलंका को सालाना 100 मिलियन डॉलर (855 करोड़ रुपए) भुगतान करना था, लेकिन श्रीलंका पैसे की कमी के चलते कर न सका।
हाल ही में श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके ने चीन का दौरा किया। उनकी यात्रा के बाद चीन ने श्रीलंका में 3.7 बिलियन डॉलर (31635 करोड़ रुपए) का निवेश करने की पेशकश की है। यह श्रीलंका में अब तक का सबसे बड़ा विदेशी निवेश बताया जा रहा है। यह निवेश हंबनटोटा में अत्याधुनिक तेल रिफाइनरी बनाने के लिए किया जाएगा। दोनों देशों ने BRI सहयोग को उन्नत करने के लिए एक नई योजना पर साइन किए हैं।
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