सार

लॉकडाउन खुलने के बाद अब लोग तीसरी लहर को लेकर अभी से चिंतित हैं। दूसरी लहर ने पूरे देश में जो तबाही मचाई और जिस तरह की अफरातफरी का माहौल रहा, उससे लोग अभी भी डरे हुए हैं। यहां तक कि कई लोग तो कोरोना की दहशत के चलते इतने घबरा गए कि ठीक होते हुए भी गंभीर हो गए। इस दौरान कुछ लोग ऐसे भी रहे, जिन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पूरी सकारात्मकता के साथ इस वायरस से जंग लड़कर मौत के मुंह से लौट आए। 

भोपाल। कोरोना (Corona) की दूसरी लहर अब धीरे-धीरे कमजोर पड़ती जा रहा है और ज्यादा से ज्यादा लोग स्वस्थ होकर अपने घर लौट रहे हैं। हालांकि बावजूद इसके अब भी लोगों के दिलों में एक अनजान-सा डर बैठा हुआ है। ज्यादातर शहरों में लॉकडाउन खुलने के बाद अब लोग तीसरी लहर को लेकर अभी से चिंतित हैं। दूसरी लहर ने पूरे देश में जो तबाही मचाई और जिस तरह की अफरातफरी का माहौल रहा, उससे लोग अभी भी डरे हुए हैं। यहां तक कि कई लोग तो कोरोना की दहशत के चलते इतने घबरा गए कि ठीक होते हुए भी गंभीर हो गए। हालांकि, इस दौरान कुछ लोग ऐसे भी रहे, जिन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पूरी सकारात्मकता के साथ इस वायरस से जंग लड़कर मौत के मुंह से लौट आए। 

Asianet news के गणेश कुमार मिश्रा ने भोपाल निवासी व्यास प्रसाद मिश्रा से बात की। 71 साल के व्यास जी बताया कि वो कोरोना पॉजिटिव हो गए थे, जिसके चलते उनके घर में बेटा भी वायरस की चपेट में आ गया था। इसी बीच, सबसे ज्यादा डर सता रहा था बहू और दो छोटी-छोटी पोतियों का। हालांकि, हमने समय पर ऐहितयात बरतते हुए कोरोना को घर में ज्यादा फैलने नहीं दिया। करीब 22 दिन तक अस्पताल में एडमिट रहे व्यास जी ने बताया कि कैसे उन्होंने परिजनों से दूर रहते हुए भी खुद को ढाढस बंधाया और कोरोना जैसे जानलेवा वायरस से जंग जीत ली। 

आखिर कहां हो गई चूक : 
71 वर्षीय व्यास जी के मुताबिक, मैं कभी-कभार घर के करीब ही सब्जी और फल लेने जाया करता था। चूंकि कोरोना के केस बढ़ रहे थे और लोगों को लॉकडाउन लगने की शंका थी, इसलिए एक दिन सब्जीवाले की दुकान पर काफी भीड़ थी। अफरातफरी के उस माहौल में मैं भी उसी दौरान वहां पहुंचा और किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से कोरोना को अपने घर ले आया। 

दो दिन बाद शुरु हुआ बुखार, पर ये नॉर्मल नहीं था : 
इस वाकये के दो दिन बाद मुझे खांसी, सर्दी और हल्का बुखार आया। बुखार आने पर पैरासिटामोल खाई, जिससे कुछ वक्त के लिए आराम मिल गया। लेकिन दवाई का असर खत्म होते ही बुखार वापस आ गया। ये नॉर्मल बुखार नहीं था, क्योंकि इसमें बुखार के साथ हाथ-पैरों में दर्द और कमजोरी बढ़ती जा रही थी। इस पर मैंने बेटे को तकलीफ बताई तो उसने मुझे एडमिट करने का फैसला किया। 

बाइक पर बैठे-बैठे ही मैं लटक गया : 
अगले दिन जब मैंने अपना ऑक्सीजन लेवल चेक किया तो वह 76 पर पहुंच चुका था। ये देखते ही मेरे होश फाख्ता हो गए। बेटे ने तुरंत अस्पताल ले जाने का फैसला किया। वो मुझे बाइक पर ही बैठाकर अस्पताल के लिए चला, लेकिन घर से कुछ दूर आते-आते मेरी हालत इतनी खराब हो गई कि मैं बाइक पर ही लटक गया। किसी तरह बेटे ने बाइक रोककर मुझे संभाला और अपने एक दोस्त को फोन करके बुलाया। इसके बाद वो दोनों मुझे कार से अस्पताल लेकर पहुंचे।  

फेफड़ों में हो चुका था काफी इन्फेक्शन : 
अस्पताल पहुंचने के बाद डॉक्टर ने मेरी हालत देखकर फौरन आईसीयू में भर्ती करने का फैसला किया। मुझे ऑक्सीजन के साथ ही मॉनिटरिंग में रखा गया। ऑक्सीजन मास्क पहनने के बाद भी मेरी ऑक्सीजन नॉर्मल लेवल पर नहीं आ रही थी, लेकिन सांस लेने में उतनी तकलीफ भी नहीं थी। इसलिए मैंने सोचा कि ऑक्सीजन तो धीरे-धीरे ही ठीक होगी, क्योंकि फेफड़ों में काफी इन्फेक्शन हो चुका था। 

आईसीयू और वेंटिलेटर पर मौतें देख कांप उठता था कलेजा : 
आईसीयू और वेंटिलेटर पर रोजाना लोगों को मरते देख लगता था कि अब इस उम्र में मेरा बचना भी मुश्किल है। कभी बगल के बेड पर तो कभी सामने वाले बेड पर मैंने अपनी आंखों के सामने लोगों को मरते देखा। ये देखकर एक बार तो मेरी हिम्मत भी जवाब दे गई थी। लेकिन फोन पर जब वीडियो कॉल से मैं बेटे और पोतियों का चेहरा देखता तो जीने की आस जाग उठती थी। लगता था कि मुझे अपनों के लिए अभी और जीना है। 

वीडियो कॉल पर घरवालों को देखकर लगता कि नई ऊर्जा मिल गई : 
अस्पताल में मुझे किसी भी फैमिली मेंबर से मिलने की इजाजत नहीं थी। सिर्फ वीडियो कॉल पर ही घरवालों को देखकर तसल्ली कर लेता था। डॉक्टर ने फोन पर बात करने और ऑक्सीजन मास्क न हटाने के लिए सख्त हिदायत दी थी। रेमडेसिविर के इंजेक्शन लगने के बाद मुझे अंदर से लगा कि अब तो मैं ठीक हो जाऊंगा और वाकई ऐसा हुआ भी कि मैंने पॉजिटिव सोचना शुरु किया तो दवाओं ने भी अपना असर दिखाना चालू कर दिया। धीरे-धीरे मेरा ऑक्सीजन 85 से ऊपर आने लगा। 

ड्यूटी डॉक्टर्स और नर्सें ही बन गई थीं परिवार : 
अस्पताल में ड्यूटी डॉक्टर्स और नर्सें जब खाना खिलातीं तो इसके साथ ही हिम्मत देने का काम भी करती थीं। वहां तो ऐसा लगता था, जैसे डॉक्टर और नर्सें ही मेरा और बाकी मरीजों का परिवार हैं। वो हमें जीने के लिए प्रेरित करने के साथ ही दूसरे मरीजों के किस्से भी सुनाती थीं, जो पहले अस्पताल से ठीक होकर जा चुके थे। उनकी बातें सुनकर लगता था कि मैं भी ठीक होकर अपने घर जाऊंगा। 

जब डॉक्टर ने कहा आपने काफी इम्प्रूव किया तो आई जान में जान : 
करीब 15 दिनों के बाद मेरा ऑक्सीजन लेवल 90 के ऊपर आने लगा। ये देखकर मुझे बेहद खुशी होती थी। डॉक्टर ने कहा कि अब आप धीरे-धीरे मास्क हटाकर कुछ देर बैठने की आदत डालो। हालांकि जब मैं मास्क हटाता तो थोड़ी तकलीफ होती थी, लेकिन 10-15 मिनट तक मैं बिना मास्क के आराम से रहने लगा। इसके साथ ही जब डॉक्टर्स ने कहा कि आपने काफी इम्प्रूव कर लिया है तो मेरी हिम्मत और सकारात्मक नजरिया और बढ़ जाता था। 

22 दिन बाद घर तो पहुंचा लेकिन अब भी सता रहा था एक डर : 
20 दिन तक अस्पताल में रहने के बाद मेरा ऑक्सीजन लेवल 95 से ऊपर पहुंच गया था। इसके साथ ही अब मुझे बिना मास्क के भी सांस लेने में कोई तकलीफ नहीं हो रही थी। इंजेक्शन और स्टेराइड्स के डोज भी पूरे हो चुके थे। ऐसे में डॉक्टर्स ने फैसला किया कि अब मुझे डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। करीब 22 दिन के बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी मिली और मैं अपने घर पहुंचा। हालांकि, घर आने के बाद भी ब्लैक फंगस का डर अब भी मुझे सता रहा था। 

घर में पोतियों के साथ खेलते-खेलते भूल गया तकलीफें : 
लेकिन घर में पोतियों के साथ खेलते-खेलते जैसे मैं अपने सारे दुख और तकलीफों को भूल चुका था। इसके साथ ही मेरे अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगा था। सुबह उठकर योगा-प्राणायाम और गैलरी में आने वाली ताजी हवा के साथ-साथ पक्षियों का शोर जैसे मन को अलग ही शांति देता था। धीरे-धीरे घरवालों की हिम्मत, सेवा और पॉजिटिविटी के बल पर मैं रिकवर होने लगा और अब पूरी तरह ठीक हूं। 

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