सार

कोरोना वायरस से देश में आर्थिक समस्या खड़ी हो गई है जिससे निपटने के लिए कल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1.70 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान किया था और इसी क्रम में आज RBI गवर्नर ने भी नीतिगत दरों में कटौती की है

बिजनेस डेस्क: कोरोना वायरस से देश में आर्थिक समस्या खड़ी हो गई है जिससे निपटने के लिए कल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1.70 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान किया था और इसी क्रम में आज RBI गवर्नर ने भी नीतिगत दरों में कटौती की है। रिजर्व बैंक ने रेपो दर 0.75 प्रतिशत की कटौती की जिससे रेपो दर 4.4 प्रतिश्त पर आ गई और रिवर्स रेपो दर में 0.90 प्रतिश्त की कटौती की गयी है। RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है की 'रेपो दर में कमी से कोरोना वायरस महामारी के आर्थिक प्रभाव से निपटने में मदद मिलेगी।'  इसके अलावा RBI ने सीआरआर में भी  1 प्रतिश्त की कटौती की है जिससे सीआरआर 3 प्रतिश्त पर हो गया। 

लेकिन ये सब होता क्या है और इसका आम आदमी पर क्या असर होता है? आइए आसान भाषा में जानें रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर का मतलब...

रेपो रेट 

इसे आसान भाषा में ऐसे समझा जा सकता है। बैंक हमें कर्ज देते हैं और उस कर्ज पर हमें ब्याज देना पड़ता है। ठीक वैसे ही बैंकों को भी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ जाती है और वे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से कर्ज लेते हैं। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं।

आप पर क्या पड़ेगा असर

जब बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा यानी रेपो रेट कम होगा तो वो भी अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं। और यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाएगा तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा और वे अपने ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा कर देंगे।

रिवर्स रेपो रेट 

आपने रेपो रेट समझ लिया ये ठीक उसका उलट होता है। बैंकों के पास जब दिन-भर के कामकाज के बाद बड़ी रकम बची रह जाती है, तो उस रकम को रिजर्व बैंक में रख देते हैं। इस रकम पर आरबीआई उन्हें ब्याज देता है। रिजर्व बैंक इस रकम पर जिस दर से ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

आप पर क्या पड़ेगा असर

जब भी बाजारों में बहुत ज्यादा नकदी आ जाती  है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दें। इस तरह बैंकों के कब्जे में बाजार में छोड़ने के लिए कम रकम रह जाएगी।

सीआरआर (Cash Reserve ratio)

बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है, जिसे Cash Reserve ratio या CRR कहा जाता है। यह नियम इसलिए बनाए गए हैं, ताकि यदि किसी भी वक्त किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्ताओं को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसा चुकाने से मना न कर सके। 

आप पर क्या पड़ेगा असर

अगर सीआरआर बढ़ता है तो बैंकों को ज्यादा बड़ा हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होगा और उनके पास कर्ज के रूप में देने के लिए कम रकम रह जाएगी। यानी आम आदमी को कर्ज देने के लिए बैंकों के पास पैसा कम होगा। ठीक इसी तरह अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार कैश फ्लो यानी नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है।

आम तौर पर सीआरआर में बदलाव तभी किया जाता है, जब बाजार में नकदी की तरलता पर तुरंत असर न डालना हो, क्योंकि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव की तुलना में सीआरआर में किए गए बदलाव से बाजार पर असर ज्यादा समय में पड़ता है।