सार
बोर्ड परीक्षाओं के चलते 10वीं से 12वीं के छात्र स्कूल जा रहे हैं, ऐसे में सवाल उठता है क्या बाकी क्लास के बच्चों के लिए स्कूल खुल जाने चाहिए? क्या पैरेंट्स बच्चों को स्कूल भेजने को राजी हैं? इस सवाल को लेकर लोकल सर्कल्स ने एक सर्वे किया है। साथ ही ऑनलाइन क्लास के बेनिफिट्स पर भी पैरेंट्स की राय जानने की कोशिश की।
करियर डेस्क. इस समय भारत में COVID-19 संक्रमण का स्तर तेजी से घट रहा है। साथ ही सरकार ने दो कोरोना टीकों-कोविशिल्ड और कोवाक्सिन को मंजूरी दे दी और करीब 5 मिलियन फ्रंटलाइन हेल्थकेयर कार्यकर्ताओं को टीका भी लगाया गया। संक्रमण के घटते मामलों के बीच जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। इसलिए कई राज्यों में पहले ही स्कूलों खोले जा चुके हैं। खासकर हाई स्कूल एजुकेशन स्टूडेंट्स के लिए स्कूल रिओपन (reopen) हो गए हैं।
24 मार्च को भारत में लॉकडाउन की घोषणा हुई थी तबसे ही स्कूल-कॉलेज बंद हैं। अब जब पूरे देश में कोरोना के मामले पीक लेवल से गिरकर 10 से 15 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं तो इस बीच कक्षा 9 से 12 वीं के छात्रों ने स्कूल वापसी कर देश में न्यू नॉर्मल की शुरुआत की।
क्या पैरेंट्स बच्चों को स्कूल भेजने को राजी हैं?
बोर्ड परीक्षाओं के चलते 10वीं से 12वीं के छात्र स्कूल जा रहे हैं, ऐसे में सवाल उठता है क्या बाकी क्लास के बच्चों के लिए स्कूल खुल जाने चाहिए? क्या पैरेंट्स बच्चों को स्कूल भेजने को राजी हैं?
इस सवाल को लेकर लोकल सर्कल्स ने एक सर्वे किया है। साथ ही ऑनलाइन क्लास के बेनिफिट्स पर भी पैरेंट्स की राय जानने की कोशिश की। अप्रैल 2020 के बाद से लोकल सर्कल्स, स्कूल, पढ़ाई, ऑनलाइन क्लास आदि मुद्दों पर अभिभावकों के सवाल-जवाब जुटा रहा है। ये अपने सर्वे में कोरोना संक्रमण के बीच स्कूल खुलने, बच्चों को भेजने या न भेजने जैसे मुद्दों पर मां-बाप की राय से जुड़े आंकड़े जुटाते हैं।
कोरोना के घटते मामले देख कनफ्यूज हैं पैरेंट्स
लोकल सर्कल्स ने अगस्त 2020 में स्कूल ओपनिंग को लेकर एक सर्वे किया था जिसमें पैरेंट्स की राय ली गई थीं। तब अधिकतर पैरेंट्स स्कूल खुलने को राजी नहीं थे। फिर कोरोना के गिरते मामले देख दिसंबर के अंत में किए गए आखिरी स्थानीय सर्वेक्षण में 69% माता-पिता अप्रैल 2021 के बाद स्कूलों के खुलने के पक्ष में थे। हालांकि अब जब देश में कोरोना के केस लगातार घट रहे हैं तो पैरेंट्स स्कूल खोले जाने को लेकर संशय में हैं और अलग-अलग नियमों की मांग कर रहे हैं।
67 फीसदी पैरेंट्स चाहते हैं जल्द खुले स्कूल
इस सर्वे के मुताबिक 67% पैरेंट्स अगले 60 दिनों में स्कूल खोले जाने को सहमत हैं, जबकि केवल 32% पैरेंट्स चाहते हैं कि स्कूल जून / जुलाई 2021 से खुलें।
COVID-19 संक्रमण स्तर घटता देख राज्य सरकारों ने स्कूलों में कक्षाएं फिर से शुरू करने की अनुमति दी है। कुछ स्कूलों में सभी कक्षाओं (ग्रेड्स) के लिए तो कुछ में केवल हाई स्कूल बच्चों के लिए। पिछले सप्ताह के अंत में, उत्तर प्रदेश ने घोषणा की कि प्रदेश में कक्षा 6-8 के लिए 10 फरवरी से स्कूल खुलेंगे वहीं कक्षा 1-5 के लिए 1 मार्च तारीख तय की गई है। भारत में कोरोना के 75% मामलों सिर्फ दो राज्यों केरल और महाराष्ट्र में हैं। ऐसे में यहां स्कूल रिओपनिंग पर जल्दबाजी नहीं दिखती।
कोरोना के घटते मामले देख कन्फ्यूज हैं पैरेंट्स
कुछ सवालों के द्वारा सर्वे मेंस्कूल ओपनिंग को लेकर माता-पिता की राय समझाने की कोशिश की गई है। यहां सभी ग्रेड के छात्रों के लिए फिर से स्कूल खोले जाने के सवाल पर पैरेंट्स कई वर्गों में बंटे नजर आए। सर्वे के मुताबिक, "पैरेंट्स से पूछा गया- भारत में अब 10-15 प्रतिशत ही कोरोना केस सामने आ रहे हैं और लगातार गिरावट जारी है। ऐसे में आपके स्कूलों को फिर से खोलने पर आपकी क्या राय है?" 8,524 पैरेंट्स की प्रतिक्रियाओं को यहां ग्राफिक के माध्यम से समझाया गया है।
सिर्फ 32 प्रतिशत पैरेंट्स जून-जुलाई से स्कूल खोले जाने को सहमत दिखे बाकी अधिकतर ने अगले 60 दिनों के अंदर स्कूल खोलने पर सहमति जताई।
24 राज्यों में किया गया सर्वे
9 फरवरी, 2021 के सर्वेक्षण में इन्होंने न सिर्फ स्कूल खुलने बल्कि ऑनलाइन क्लास के प्रभावी होने पर भी पड़ताल की। सर्वेक्षण में यह भी जानने की कोशिश की गई कि इन-पर्सन कक्षाओं यानि स्कूल की पढ़ाई के मुकाबले ऑनलाइन कक्षाएं उनके बच्चों या पोते के लिए कितनी प्रभावी हैं? देश के करीब 24 राज्यों में ये सर्वेक्षण किया गया जिसमें भारत के 294 जिलों के माता-पिता से 16,000 से ज्यादा प्रतिक्रियाएं मिलीं।
ऑनलाइन क्लास पर क्या सोचते हैं अभिभावक?
इस सर्वे में पैरेंट्स से पूरे एक साल से चल रही ऑनलाइन क्लास को लेकर भी सवाल पूछे गया। दरअसल, शिक्षा मंत्रालय ने जून 2020 में सभी वर्क की कक्षाओं के टाइम लिमिट सहित ऑनलाइन कक्षाओं के संचालन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिसमें अभिभावकों द्वारा उठाए गए स्क्रीन टाइमिंग की चिंताओं को शामिल किया गया था। बच्चा ज्यादा समय मोबाइल स्क्रीन पर न बिताएं जिससे उसके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव हों। तबसे अधिकतर स्कूलों में ऑनलाइन ही पढ़ाई चल रही है।
सिर्फ शहरों में असरकारक, ऑनलाइन क्लास
महामारी के दौरान, भारत के शहरी जिलों में अधिकांश स्कूल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा और असाइनमेंट देने में सक्षम थे। हालांकि अचानक स्कूल बंद होने के बाद शुरुआत में लोगों को इंटरनेट कनेक्टिविटी, जरूरी उपकरणों जैसे मोबाइल-लैपटॉप, टैबलेट आदि की कमी झेलनी पड़ी थी। लेकिन जून 2020 तक चीजें काफी सुधर गईं।
दूर-दराज इलाकों में आज भी कनेक्टिविटी की कमी
लेकिन ऑनलाइन क्लास मामले में सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि देश के दूरदराज के हिस्सों के छात्र इस साल के सत्र में कोई बुनियादी इंटरनेट, मोबाइल-लैपटॉप की सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुए। उन्हें महामारी के दौरान ऑनलाइन कक्षाएं नहीं मिल सकीं या इससे चूक गए। इस कारण कई शैक्षणिक संस्थानों ने अपनी कक्षाओं और प्रारंभिक परीक्षाओं को रद्द कर दीं।
79% पैरेंट्स ने ऑनलाइन स्कूल को कामचलाऊ
Local Circles ने अपने सर्वे में पैरेंट्स से ऑनलाइन क्लास के प्रभावी होने को लेकर कुछ सवाल पूछे। इसमें पूछा गया कि- "लगभग एक साल होने पर ऑनलाइन क्लास आपके बच्चों या पोते-पोतियों के लिए स्कूल की पढ़ाई की तुलना में कैसे काम आ रही हैं?"
जवाब में केवल 19 फीसदी माता-पिता ही ऑनलाइन स्कूल के फायदे ढूंढ़ते नजर आए जबकि बहुमत में 79% पैरेंट्स के लिए ये कामचलाउ और अनइफेक्टिव यानि (असरकारक) साबित हुई हैं।
क्लास छोड़ फ्रेंड्स ग्रुप में चैटिंग करते हैं बच्चे
LocalCircles के सर्वे के माध्यम से अभिभावकों ने ऑनलाइन कक्षाओं को लेकर कई चिंताएं जाहिर कीं। इनमें बच्चों का ऑनलाइन क्लास छोड़ फ्रेंड्स ग्रुप में चैटिंग करने का गंभीर मुद्दा शामिल है। वहीं अधिकांश स्कूलों में ऑनलाइन क्लास और इससे जुड़े मुद्दों को लेकर कोई बुनियादी सिस्टम नहीं है।
नेटवर्क बिगड़ने पर सिरदर्द बन जाती हैं ऑनलाइन क्लासेज
देश के कई हिस्सों में, लिमिटेड वाई-फाई कनेक्शन और घर के अंदर खराब मोबाइल डेटा कनेक्टिविटी के कारण बच्चा मुश्किल से दो वीडियो क्लासेज ही ले पाता है। ऐसे में ऑनलाइन क्लास में केवल टीचर का वीडियो बच्चों को दिखाई दे रहा होता है लेकिन बच्चे दिखाई नहीं देते। इससे कंम्यूनिकेशन बिगड़ जाता है, पढ़ाई से ज्यादा ये एक सिरदर्द होता है बस।
छोटे बच्चों के ऑनलाइन क्लास तामझाम से ज्यादा कुछ नहीं
कक्षा 5वीं के बच्चों के माता-पिता आमतौर पर ऑनलाइन क्लास के बिल्कुल पक्ष में नहीं हैं। क्योंकि इतना छोटा बच्चा बहुत जल्दी इंट्रेस्ट खो देता है उसे लगातार मोबाइल स्क्रीन पर टिकाए ररखना मुश्किल है, वर्चुअल होने पर टीचर के लिए भी उसे संभालना एक मुश्किल टास्क है। छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास टैन्ट्रम (तामझाम) से ज्यादा कुछ भी नहीं।
बच्चे के बीमार होने के समय उपयोगी भी हैं ऑनलाइन क्लास
हालांकि, एक बात पर अधिकांश पैरेंट्स सहमत दिखते हैं, वह यह है कि कोविड महामारी के समय ऑनलाइन क्लास स्कूल का एक जरूरी अंग बन गया है। हालांकि इसका उपयोग तब भी किया जा सकता है जब बच्चों के घर में रहने के लिए दूसरे कारण हों। जैसे बच्चा बीमार पड़ने पर घर में आराम करते अटेंडेंस आदि ले सकता है। दिल्ली/एनसीआर में प्रदूषण के कारण स्कूल अक्टूबर और नवंबर के दौरान कुछ दिनों से लेकर एक सप्ताह तक बंद रहते हैं। ऐसे में ऑनलाइन क्लास के कारण बच्चों की पढ़ाई का नुकसान नहीं हो पाएगा। ये स्वास्थ्य के लिहाज से भी ठीक फैसला होगा।
नोट: इस सर्वे में दर्शाए ग्राफिक से जुड़ी जानकारी में भारत के 294 जिलों में रहने वाले नागरिकों से 16,000+ प्रतिक्रियाएं शामिल की गई हैं। इसमें 67% पुरुषों के जवाब शामिल हैं जबकि 33% महिलाएं। ग्रामीण जिलों से 21% लोगों की प्रतिक्रियाएं शामिल हैं।