सार

देश में टेक्निकल एजुकेशन देने वाले सबसे बड़े संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) की व्यवस्था और कार्यप्रणाली में बड़ा बदलाव हो सकता है। इसे लकर शुक्रवार को आईआईटी काउंसिल की मीटिंग में फैसला लिया जा सकता है। इस काउंसिल के प्रमुख केंद्रीय मानव संस्थान मंत्री होते हैं।

नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े तकनीकी शिक्षा संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्ननोलॉजी की कार्य प्रणाली और व्यवस्था में बड़ा बदलाव हो सकता है। इस संबंध में शुक्रवार को होने वाली आईआईटी काउंसिल की मीटिंग में फैसला लिया जा सकता है। बता दें कि देश के आईआईटी संस्थानों के लिए कोई भी निर्णय लेने के लिए आईआईटी काउंसिल के पास पूरे अधिकार हैं और इसके प्रमुख केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री होते हैं। 

क्या होना है प्रमुख फैसला
वैसे तो शुक्रवार को होने वाली आईआईटी काउंसिल की मीटिंग के कई एजेंडे हैं, पर प्रमुख फैसला इस बात को लेकर होना है कि वैसे स्टूडेंट, जिनका परफॉर्मेंस बढ़िया नहीं है और जो पढ़ाई में कमजोर हैं, उन्हें तीन साल में ही इंजीनियरिंग में बीएससी की डिग्री दे दी जाए। फिलहाल, आईआईटी के अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम में दाखिला लेने वाले स्टूडे्ंटस को 4 साल में 8 सेमेस्टर पूरे करने पड़ते हैं और इसके बाद उन्हें बी.टेक. की डिग्री मिलती है। इस दौरान पढ़ाई में बेहतर नहीं कर पाने वाले स्टूडेंट्स को बीच में ही ड्रॉप आउट होना पड़ता है। 

कितने स्टूडेंट्स हो चुके हैं ड्रॉपआउट
मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो वर्षों के दौरान देश के कई आईआईटी संस्थानों से अंडरग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट प्रोग्राम में दाखिला लेने वाले 2,462 स्टूडेंट्स ड्रॉप आउट हो गए, यानी उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। बहुत से स्टूडेंट खराब एकेडमिक परफॉर्मेंस के चलते भी संस्थान से निकाल दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए इसी साल आईआईटी, कानपुर से खराब ग्रेड होने के चलते 18 स्टूडेंट्स को एक्सपेल्ड कर दिया गया, जिनमें आधे बी.टेक. कर रहे थे।

ऐसे स्टूडेंट कर सकेंगे 3 साल का बीएससी इंजीनियरिंग कोर्स
पढ़ाई में कमजोर ऐसे ही स्टूटेंड्स के लिए तीन साल का बीएससी इंजीनियरिंग कोर्स का विकल्प लाया जा रहा है। इसमें 6 सेमेस्टर में स्टूडेंट्स को इंजीनियरिंग में बीएससी की डिग्री मिल जाएगी और उन्हें अपनी पढ़ाई अधूरी नहीं छोड़नी होगी। अगर मीटिंग में इसे लागू करने का फैसला लिया जाता है तो इसे इसी एकेडमिक सेशन से शुरू कर दिया जाएगा। बता दें कि अभी साल में दो बार होने वाली JEE (main) परीक्षा में करीब 9 लाख स्टूडेंट शामिल होते हैं, जिनमें सिर्फ 13, 500 स्टूडेट्स को आईआईटी में दाखिला मिल पाता है। 

इन मुद्दों पर भी होगा विचार
मीटिंग में इस पर भी विचार होगा कि आईआईटी के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को अपने मेंबर और चेयरपर्सन को चुनने का अधिकार दिया जाए। फिलहाल, मानव संसाधन मंत्रालय इनकी नियुक्ति करता है। बता दें कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) को यह स्वायतत्ता दी गई है। इसके अलावा, आईआईटी एक्ट में भी बदलाव किया जाएगा, ताकि आईआईटी को स्वायत्तता संबंधी अधिक अधिकार मिल सकें।

फी स्ट्रक्चर में हो सकता है बदलाव
इसके साथ ही, आईआईटी काउंसिल की मीटिंग में आईआईटी को आर्थिक स्वायतत्ता देने के लिए फी स्ट्रक्चर में भी बदलाव किए जाने पर विचार किया जाएगा। इसके तहत स्टूडेंट को उतनी फीस देनी पड़ेगी, जितना उस पर खर्च आता है। यह करीब प्रति छात्र सालाना 7 लाख होगा। अभी आईआईटी छात्र को सालाना 2 लाख फीस देनी पड़ती है। इसके अलावा, आईआईटी में पढ़ने वाले बीटेक के एससी/एससी कैटेगरी के जितने स्टूडेंट्स हैं, उनमें से करीब आधे को ट्यूशन फीस नहीं देना पड़ती है। अब आईआईटी को अपने स्रोतों से खर्चा पूरा करना होगा। सरकार आईआईटी को आर्थिक संसाधन मुहैया कराने की जगह स्टूडेंट्स को ही स्कॉलरशिप देगी या किसी दूसरे तरीके से उनकी मदद करेगी।