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इस बिजनेसमैन ने कोरोना से लड़ने के लिए दान किए अरबों, दुनिया के सबसे बड़े दानवीरों में शामिल हुआ है नाम
| Published : Apr 01 2020, 04:37 PM IST / Updated: Apr 01 2020, 04:43 PM IST
इस बिजनेसमैन ने कोरोना से लड़ने के लिए दान किए अरबों, दुनिया के सबसे बड़े दानवीरों में शामिल हुआ है नाम
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विप्रो से जारी बयान के मुताबिक इस दान की रकम को विप्रो लिमिटेड, विप्रो इंटरप्राइज़ेज़ और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन मिलकर डोनेट कर रहे हैं। इस रकम में से विप्रो लिमिटेड 100 करोड़ देगा, विप्रो इंटरप्राइजेज 25 करोड़ और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन 1000 करोड़ रुपए देगा।
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इससे कुछ दिन पहले कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था की अजीम प्रेमजी ने कोरोना से लड़ने के लिए 50000 करोड़ रुपए दान किए हैं। जिसे कंपनी ने गलत बताया था दरअसल, कंपनी ने बताया था कि यह रकम एक साल पहले मार्च 2019 में तब दान की गई थी जब अजीम प्रेमजी ने विप्रो में अपनी हिस्सेदारी का 34 पर्सेंट( 52750 करोड़ रुपये) दान करने का फैसला किया था।
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अजीम प्रेमजी से पहले रतन टाटा ( 1500 करोड़ रुपए), गौतम अदानी (100 करोड़ रुपए) और मुकेश अंबानी (500 करोड़ रुपए ) के अलावा बड़े कॉरपोरेट समूहों की बात करें तो वेदांता समूह, पेटीएम, जिंदल समूह, आदि कई दिग्गज बिजनेसमैन भी PM Cares फंड में दान कर चुके हैं।
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गौरतलब है कि,अजीम प्रेमजी ये रकम PM Cares Fund के बजाए खुद अपने स्तर पर खर्च करेगी। जिसे अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के 1600 कर्मचारियों की टीम लागू करेगी। प्रेमजी ने जनवरी 2001 में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की स्थापना की थी। यह देशभर में स्कूलों को बेहतर बनाने का काम करता है।
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साल 2019 मार्च में प्रेमजी ने विप्रो के अपने 34 फीसदी शेयर अपने फाउंडेशन को दान कर दिए। अब तक वे इस फाउंडेशन को अपनी 67 फीसदी संपत्ति यानी 1.45 लाख करोड़ रुपये दान कर चुके हैं। उन्हें भारत का बिल गेट्स भी कहा जाता है।
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अजीम प्रेमजी का जन्म 29 दिसंबर, 1945 को हुआ था। उनके दादा भारत के जाने-माने चावल व्यापारी थे। प्रेमजी का बचपन मुंबई में बीता। अजीम प्रेमजी ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। अजीम प्रेमजी ने यासमीन से शादी की है और उनके दो बच्चों हैं: ऋषद और तारिक प्रेमजी। अभी, बड़े बेटे रिशद प्रेमजी विप्रो लिमिटेड के चेयरमैन हैं।
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बता दें कि विप्रो का पुराना नाम वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट्स था। यह महाराष्ट्र के अमालनर में स्थित थी। तब इसका कारोबार तेल-साबुन जैसे उत्पादों तक सीमित था। 1966 में अजीम प्रेमजी के पिता का देहांत हो गया। इसके चलते उन्हें स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत आना पड़ा। उन्होंने कंपनी की बागडोर अपने हाथ में ली।
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कई सालों तक सफलतापूर्वक कंपनी चलाने के बाद अजीम प्रेमजी कुछ नया करना चाहते थे। तब भारत में एक तरह से कंप्यूटर की शुरुआत ही हुई थी। उन्हें लगा कि भविष्य में कंप्यूटर काम करने का तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। इसी सोच के साथ उन्होंने 1981 में कंप्यूटर बिजनेस सी शुरुआत की। अगले साल तक उन्होंने अपना पूरा ध्यान आईटी प्रोडक्ट्स बिजनेस पर लगा दिया।
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प्रेमजी के अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने 2010 में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी। यह नॉट-फॉर-प्रॉफिट वेंचर है। अजीम प्रेमजी को 2005 में, भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण और वर्ष 2011 में भारत सरकार द्वारा दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया है।
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प्रेमजी का परिवार गुजरात से नाता रखता है। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना भी गुजराती मुस्लिम थे। जब भारत का विभाजन हुआ, तो जिन्ना ने हशम प्रेमजी (अजीम प्रेमजी के पिता) को पाकिस्तान में बसने के लिए बुलाया था। जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तान का वित्त मंत्री बनाने की पेशकश की थी। लेकिन हशम प्रेमजी ने अपनी जन्मभूमि भारत में ही रहना पसंद किया।