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गरीबी और हजार मुश्किलें झेल IAS बना चाय वाले का बेटा, बिना लाखों की कोचिंग Hindi मीडियम से किया UPSC टॉप

करियर डेस्क. IAS Success Story In hindi: दोस्तों, संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा यूं तो देश की सबसे प्रकिष्ठित और मुश्किल परीक्षा मानी जाती हैं। लेकिन मेहनत के दम पर यहां गरीब-गाव के बच्चे भी पहुंचकर अफसर बने हैं। मेहनत वो चाबी है जो अमीर-गरीब सबकी किस्मत का ताला खोल देती है। फिर चाहे लोकसभा स्पीकर की बेटी हो या चाय वाले का बेटा दोनों अफसर की कुर्सी पर विराजमान होते हैं। आज हम आपको एक मेहनतकश चाय वाले के बेटे के संघर्ष और अफसर बनने की कहानी सुनाएंगे। इस शख्स ने हजार चुनौतियों का सामना करते हुए सफलता की वो कहानी लिखी जो सबके लिए प्रेरणादायक है। ये हैं 2018 बैच के आईएएस ऑफ़िसर देशलदान रतनू  (IAS Deshaldan Ratnu)  इन्होंने हिंदी माध्यम से अफसर बनकर दिखाया। उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत सी परेशानियां झेली, गरीबी और तंगहाली में दिन गुजारे, पर आज वो देश का गौरव हैं। 

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Asianet News Hindi
Published : Feb 02 2021, 04:13 PM IST
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IAS सक्सेज स्टोरी में हम आपको देशल के संघर्ष की कहानी सुने रहे हैं। राजस्थान के देशलदान को कभी पढ़ाई के लिए परफेक्ट माहौल नही मिला। उन्हें एक मिडिल क्लास फैमिली वाले बच्चे की तरह प्रापर सुविधाएं और संसाधन भी हासिल न हुए।

 

 लेकिन इन सब के बावजूद उन्होंने देश की सबसे कठिन परीक्षा दी। जिस परीक्षा को पास करने में लोगों को कई साल लग जाते हैं रतनू हिंदी मीडियम से उसमें टॉप कर गए। पहले ही प्रयास में उन्होंने 82वीं रैंक पाकर IAS का पद पाया। 

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कोई सोच भी नहीं सकता कि एक लड़का जिसके घर में जरूरी चीजें तक नहीं है, जिसके पिता एक मामूली सी चाय की दुकान चलाते हैं।  वो रातों-रात देश का ब्यरोक्रेट बन गया। परिवारिक स्तिथि एकदम बदल गईं। 

 

देशल के राजस्थान के जैसलमेर जिले का रहने वाला हैं। उनके पिता कुशलदान चरन एक चाय की दुकान चलाते हैं। मां कभी स्कूल नहीं गई वो हाउस वाइफ हैं। 7 भाई बहन हैं। घर में पैसों की कमी के कारण सभी भाई-बहन पढ़ाई नहीं कर सके। केवल देशल और उनके एक बड़े भाई ने स्कूल का मुंह देखा था। 

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देशल के बाकी भाई-बहन या तो इसी टी-स्टॉल पर काम करते थे या खेतों पर। क्योंकि पिता के पास कुछ जमीन भी थी। ये और बात है कि खेती से कोई कमाई नहीं होती थी। घर का खर्च चाय की दुकान के पैसों से ही चलता था।

 

रतनू ने अपने एक साधारण इंसान से अफसर बनने की कहानी खुद एक इंटरव्यू में साझा की। उन्होंने बताया,  "मैंने कक्षा 10 तक सरकारी राज्य बोर्ड हिंदी माध्यम स्कूल में पढ़ाई की। फिर मैं अपनी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के लिए कोटा गया और IIIT जबलपुर में दाखिला लिया।

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देशल के घर का माहौल पढ़ाई वाला नहीं था। पिता चाहते थे कि वो भी बाकी बच्चों की तरह खेत या टी-स्टॉल पर काम करें। लेकिन देशल ने ठान लिया कि पढ़ाई जारी रखेंगे और सरकारी नौकरी या कुछ करेंगे। उन्होंने आस-पास के गांवों में राज्य सेवा और केंद्रीय सेवा में भर्ती हुए कुछ लोगों की वज़ह से सिविल सेवा के बारे में सुना था। उन्हें समाज में एक अलग ही तरह की प्रतिष्ठा मिलती थी। सब लोग उन्हें सम्मान देते थे। देश के बड़े भाई ने भी उन्हें सिविल सेवा में जाने की एडवायस दी थी। 

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देशल के बड़े भाई इंडियन नेवी में थे, वे जब घर आया करते थे तो वहां की बहुत सी बातें देशल को बताया करते थे। देशल से कहते थे कि तुम या तो बड़े होकर इंडियन फोर्स में जाना या एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेस में। भाई के प्रोत्साहन से देशल ने यूपीएससी परीक्षा को क्लियर करने का मन बना लिया था। 

 

हालांकि उनके बड़े भाई की ऑन ड्यूटी डेथ हो गयी थी।  साल 2010 में आईएनएस सिंधुरक्षक में एक दुर्घटना में उन्होंने अपने सबसे अच्छे दोस्त और भाई को खो दिया। यह उनके लिये यह बहुत बड़ा इमोशनल लॉस था पर अपने भाई की कही बातें वे कभी नहीं भूले। फिरउन्होंने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने का फैसला किया।
 

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बड़े भाई की मृत्यु के समय देशल क्लास दसवीं में थे। इस समय से ही वे पढ़ाई को लेकर बहुत गंभीर हो गए और दसवीं के बाद कोटा चले गए। यहीं से उन्होंने बारहवीं की। 12वीं के बाद देशल ने जेईई इंट्रेंस दिया और सेलेक्ट भी हो गए। उन्होंने आईआईटी जबलपुर से ग्रेजुएशन किया. स्नातक तो हो गया लेकिन अपने भाई की कही एडमिनिस्ट्रेटिव जॉब वाली बात उनके दिमाग से नहीं निकली। 

(फाइल फोटो)

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उन्होंने अपने इंजीनियरिंग कोर्स के लास्ट ईयर में तैयारी शुरू कर दी थी। यूपीएससी की तैयारी करना बहुत मुश्किल था। पर वे कहते हैं कि पिता से मेहनत करना सीखा था। संघर्ष और कड़ी मेहनत की कीमत सीखी। मेरे माता-पिता और बड़े भाइयों ने मेरी पढ़ाई के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। तो मैं इतनी मेहनत तो कर ही सकता हूं। 

 

फिर देशल UPSC परीक्षा की तैयारी के लिये दिल्ली चले गए। पर उन्हें उनके पास यूपीएससी कोचिंग के लिए 1 डेढ़ लाख रुपये नहीं थे। इसलिए उन्होंने बिना कोचिंग के पहली ही बार में 82वीं रैंक के साथ यूपीएससी परीक्षा पास की और अपने भाई का सपना पूरा करके ही दम लिया। 
 

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साल 2017 में उनकी मेहनत का फल मिला। 82 रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा में टॉप कर गए और हिंदी में परीक्षा पास करने के कारण बहुत प्रसिद्धि भी मिली। गांव में उनका धूमधाम से स्वागत किया गया। रिजल्ट और चयन के बाद जब देशल पिता से मिले तो बहुत भावुक हो गए थे। आज वो IAS के पद पर तैनात हैं।  मात्र 24 साल की उम्र में देशल ने यूपीएससी टॉपर्स लिस्ट में अपनी जगह बनायी। वो कहते हैं कि, जिस परीक्षा को मैं सिर्फ पास करने के सपने देखता था उसमें टॉप कर जाउंगा सोचा भी नहीं।

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सफलता के टिप्स देते हुए वो अन्य छात्रों से कहते हैं कि,  पहली बात यह कि जब आप लक्ष्य प्राप्ति के लिए संकल्पित होते हैं तो आपको पीछे नहीं मुड़ना है। परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना है। अपना 100 प्रतिशत देने के लिए तैयार रहना है, जीवन में कुछ करने के लिए अपनों का साथ और आशीर्वाद बेहद जरूरी है। और जब आप सफल हो जातें हैं तो अपने कल को कभी न भूलें।


देशल कहते हैं कि, गरीब तबके से आने के कारण वो लोगों की मदद करने की नियत रखते हैं। वो कहते हैं,  मैं पूरी कोशिश करूंगा कि जो भी संभव हो और क्षमता से लोगों की सेवा करें। देशल दान की सफलता वाक़ई में कई मायनों में प्रेरणादायक है।
 

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