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मां को SDM के ऑफिस में नौकरी करते देख ठान लिया अफसर बनूंगा, टाट पर बैठ पढ़ने वाला लड़का ऐसे बना IAS
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जब कोचिंग बीच में ही छोड़ आ गए वापस –
दिल्ली के एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में तीन महीने पढ़ने के बाद अभिषेक को परीक्षा की तैयारी से लेकर, स्टडी मैटीरियल और स्ट्रेटजी बनाने तक जो भी आधारभूत जरूरतें होती हैं, सबके बारे में पता चल चुका था। साथ ही वे यह भी समझ चुके थे कि इस क्लास में जहां एक साथ 400 से 450 बच्चे पढ़ते हैं, वहां पढ़कर उनका सेलेक्शन होने से रहा। उन्होंने सारी स्टडी मैटीरियल इकट्ठा किया और गांव वापस आ गए। उन्हें वापस आया देखकर परिवार में सब परेशान हो गए कि ये सब छोड़कर क्यों आ गए।
अभिषेक ने उन्हें समझाया कि वे अभी भी तैयारी कर रहे हैं पर यहीं रहकर पढ़ेंगे। सब ठीक ही चल रहा था कि एक दिन बर्फबारी हुयी और समस्या इतनी बढ़ गयी कि उनके गांव में चालीस दिन लाइट नहीं आयी। रास्ते बंद होने से अखबार भी नहीं आया। यह वो समय था जब अभिषेक को लगने लगा कि कहीं गांव वापस आकर गलती तो नहीं कर दी। खैर अभिषेक ने जैसे-तैसे काम चलाया। इस साल अभिषेक का प्री और मेन्स में सेलेक्शन हुआ पर वे इंटरव्यू में रह गए।
इंग्लिश के डर ने बिगाड़ी बात –
अभिषेक को हमेशा अपनी इंग्लिश अच्छी न होने को लेकर हीन भावना रहती थी। जहां बाकी कैंडिडेट्स फर्राटे से अपनी बात कहते थे वहीं अभिषेक को डर लगता था कहीं कुछ गलत न बोल जाएं। उन्होंने एक बार मन बनाया कि हिंदी में इंटरव्यू दे दें पर एग्जाम के जबरदस्त प्रेशर के बीच वे तय नहीं कर पाए और उनका इंटरव्यू अच्छा नहीं गया।
अभिषेक एक इंटरव्यू में बताते हैं कि शुरू के अटेम्पट में ऐसा लगता था कि केवल वे नहीं उनका परिवार और पूरा गांव ही परीक्षा दे रहा है, क्योंकि सबकी अपेक्षाओं का भार उनके कंधों पर था। ऐसे में अभिषेक बहुत डरे घबराये से रहते थे कि चयन नहीं हुआ तो कितनी बेइज्जती होगी। वे अपने पहले प्रयास में असफल होने का कारण भी इसी डर को मानते हैं जो उन पर भयंकर तरीके से हावी था।
दूसरा इंटरव्यू दिया हिंदी में –
अभिषेक ने हिम्मत नहीं हारी और इस बार पिछली गलतियों से सीखते हुए आगे बढ़े। जैसे पहली बार वे इतने प्रेशर में थे कि केवल एक या दो घंटे सोकर मेन्स का पेपर देने चले जाते थे, जिससे उनकी उत्पादकता कम हो जाती थी। इस बार उन्होंने मेन्स तक तो सब संभाल लिया पर इंटरव्यू के पहले फिर डांवा-डोल होने लगे। उन्होंने तय किया कि इस बार हिंदी में इंटरव्यू देंगे।
हालांकि वे यह समझ चुके थे कि बोर्ड को भाषा से मतलब नहीं होता बल्कि आप कितने काम और कंपोज्ड हैं, आपका एनालिसेस कैसा है, आप कितने ऑनेस्ट और सिंसियर है आदि टेस्ट होता है फिर भी उन्होंने हिंदी में साक्षात्कार दिया और अपने डर और घबराहट के कारण इस बार भी सेलेक्ट नहीं हुए। यह वो समय था जब अभिषेक सीख चुके थे कि किसी परीक्षा से इस कदर इमोशनली अटैच होकर और इतनी उम्मीदें लगाकर कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा और आगे उन्हें कभी नहीं दोहराया।
तीसरी प्रयास में पायी सफलता –
इस बार अभिषेक परीक्षा के डर से लगभग मुक्त हो चुके थे और बैकअप प्लान के तौर पर उन्होंने स्टेट की परीक्षा भी दी थी। इस बार प्री और मेन्स पास करने के बाद अभिषेक को लगा कि कहीं इंग्लिश सीख लेते हैं पर उन्हें तभी यह ख्याल भी आया कि कहीं ऐसा न हो इंग्लिश ही ओवरलैप कर जाए और बोर्ड को फेक लगूं, यह सोचकर अभिषेक ने इंग्लिश न्यूज़ पेपर लेकर रोज़ जोर-जोर से आधा घंटा पढ़ना शुरू किया। इससे उन्हें बहुत फायदा हुआ।
खैर इस बार अभिषेक ने बिना डरे साक्षात्कार दिया और न केवल सेलेक्ट हुए बल्कि 69वीं रैंक के साथ टॉप भी किया। अभिषेक दूसरे कैंडिडेट्स को यही सलाह देते हैं कि एक परीक्षा में सफलता को अपने ईगो से न जोड़ें। यह इतनी अनप्रिडेक्टेबल परीक्षा है कि जिसके लिए कुछ कहा नहीं जा सकता, इसलिए बैकअप प्लान भी तैयार रखें। स्टडी मैटीरियल सीमित लें और बार-बार रिवाइज़ करें साथ ही लिखकर प्रैक्टिस जरूर करें। बहुत मॉक टेस्ट इंटरव्यू के लिए न दें वरना कंफ्यूज हो जाएंगे। धैर्य न छोड़ें और पूरी ईमानदारी से प्रयास करें, सफलता जरूर मिलेगी।