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जिस लड़की के पढ़ने के खिलाफ थे चाचा-ताऊ...वो बेटी कमरे में बंद UPSC की तैयारी करके बन गई IAS अफसर
करियर डेस्क. IAS success story of vandana: हमारे समाज में पुरुषत्ता और रूढ़िवादी सोच ने महिलाओं को सदियों पीछे धकेला हुआ है। उन्हें शिक्षा, संपत्ति, बोलने की आजादी जैसे अधिकारों से वंचित किया गया। इसी समाज में बेटियों को सिर्फ शादी के लिए पाला जाता है अगर वो पढ़ने-लिखने की ठान लें तो अपने ही विरोधी बन खड़े हो जाते हैं। ऐसे ही हरियाणा जैसे राज्य में एक परिवार बेटी को लड़की है पढ़कर क्या करेगी? वाली सोच के कारण स्कूल नहीं भेजना चाहते थे। और नियति देखिए उसी लड़की ने अफसर बन मां-बाप का नाम रोशन कर दिया। इस जुनूनी लड़की का नाम है वंदना जो हरियाणा से साल 2012 की यूपीएससी टॉपर (UPSC Topper Vandana) हैं। IAS सक्सेज स्टोरी में आज हम आपको इस आईएएस अफसर के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं-
| Published : Aug 28 2020, 05:44 PM IST / Updated: Aug 30 2020, 11:56 AM IST
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भारतीय सिविल सेवा परीक्षा के लिए लाखों बच्चे सालभर तैयारी करते हैं। पर इसी परीक्षा में वंदना ने टॉप करके लोगों के होश उड़ा दिए थे। वो हिंदी मीडियम से पढ़ाई करके बिना कोचिंग यूपीएससी टॉपर बनी थीं। आत्मविश्वास इतना कि आईएएस (IAS) बनने की ठान ली और पहली ही बार में मंजिल तक पहुंच गईं। उन्होंने एक तपस्वी की तरह खुद को कमरे में बंद रखा और सिर्फ पढ़ाई में डूबी रहीं। पर न सिर्फ यूपीएससी कैंडिडेट बल्कि एक लड़की के रूप में भी उनका संघर्ष कम नहीं रहा।
वंदना के मां-पिता उन्हें ज्यादा पढ़ाना नहीं चाहते थे क्योंकि वो एक लड़की है, हरियाणा के रूढ़िवादी समाज में लड़कियों की जल्द से जल्दी शादी कर दी जाती है। पर वंदना ने बिना कोचिंग और बिना किसी गाइडेंस के आईएएस अफसर बन पूरे गांव के लोगों के होश उड़ा दिए।
वंदना का जन्म 4 अप्रैल, 1989 को हरियाणा के नसरुल्लागढ़ गांव के एक बेहद पारंपरिक परिवार में हुआ। उनके घर में लड़कियों को पढ़ाने का चलन नहीं था। उनकी पहली पीढ़ी की कोई लड़की स्कूल नहीं गई थी। वंदना के पिता महिपाल सिंह चौहान कहते हैं, ‘‘गांव में स्कूल अच्छा नहीं था, इसलिए अपने बड़े लड़के को मैंने पढऩे के लिए बाहर भेजा। बस, उस दिन के बाद से वंदना की भी एक ही रट थी, मुझे कब भेजोगे पढने?’’
(Demo Pic)
महिपाल सिंह बताते हैं कि शुरू में तो मुझे भी यही लगता था कि लड़की है, इसे ज्यादा पढ़ाने की क्या जरूरत, लेकिन बिटिया काबिल थी और उसकी लगन और पढ़ाई के जज्बे ने उन्हें मजबूर कर दिया। वंदना ने एक दिन अपने पिता से गुस्से में कहा, ‘‘मैं लड़की हूं, इसीलिए मुझे पढऩे नहीं भेज रहे।’’ महिपाल सिंह कहते हैं, ‘‘बस, यही बात मेरे कलेजे में चुभ गई, मैंने सोच लिया कि मैं बिटिया को पढ़ने बाहर भेजूंगा।’’
(Demo Pic)
छठी क्लास के बाद वंदना मुरादाबाद के पास लड़कियों के एक गुरुकुल में पढऩे चली गई। वहां के नियम बड़े कठोर थे। कड़े अनुशासन में रहना पड़ता। खुद ही अपने कपड़े धोना, कमरे की सफाई करना और यहां तक कि महीने में दो बार खाना बनाने में भी मदद करनी पड़ती थी। हरियाणा के एक पिछड़े गांव से बेटी को बाहर पढऩे भेजने का फैसला महिपाल सिंह के लिए भी आसान नहीं था। वंदना के दादा, ताया, चाचा और परिवार के तमाम पुरुष इस फैसले के खिलाफ थे। वे कहते हैं, ‘‘मैंने सबका गुस्सा झेला, सबकी नजरों में बुरा बना, लेकिन अपना फैसला नहीं बदला।’’
(Vandana file photo)
बारहवीं तक गुरुकुल में पढ़ने के बाद वंदना ने घर पर रहकर ही लॉ की पढ़ाई की। वंदना रोज तकरीबन 12-14 घंटे पढ़ाई करती। नींद आने लगती तो चलते-चलते पढ़ती थी, वंदना की मां मिथिलेश कहती हैं, ‘‘पूरी गर्मियां वंदना ने अपने कमरे में कूलर नहीं लगाने दिया, कहती थी, ठंडक और आराम में नींद आती है।’’वंदना गर्मी और पसीने में ही पढ़ती रहती ताकि नींद न आए। एक साल तक घर के लोगों को भी उसके होने का आभास नहीं था, मानो वह घर में मौजूद ही न हो। किसी को उसे डिस्टर्ब करने की इजाजत नहीं थी।
(Demo Pic)
वंदना ने यूपीएससी का पहली बार एग्जाम दिया। 2012 में जब रिजल्ट आया तो वो सफल रहीं। हिंदी माध्यम से पढ़ाई और इसके बाद हिंदी माध्यम से पहला स्थान पाने वाली 24 साल वंदना को खुद यकीन नहीं था कि वह यूपीएससी को पहली बार में क्लियर कर लेंगी।
(Vandana File Photo)
जब उन्होंने एग्जाम के बाद आईएएस का रिजल्ट देखने के लिए यूपीएससी की वेबसाइट देखी तो टॉपर्स की लिस्ट में वंदना का आठवें नंबर पर नाम था। वंदना ने आईएएस अफसर बन न सिर्फ माता-पिता बल्कि पूरे गांव का नाम रोशन किया था। उनका इंटरव्यू भी सफल रहा था। आज गांव के वही सारे लोग, जो कभी लड़की को पढ़ता देख ताने मारते थे। वंदना की सफलता पर गर्व करते हैं। कहते हैं ‘‘लड़कियों को जरूर पढ़ाना चाहिए, बिटिया पढ़ेगी तो नाम रौशन करेगी।’’
महिला-पुरुष दोनों समान हैं, संविधान में दोनों को समान अधिकार दिए गए हैं। भारतीय समाज अगर रूढ़िवादी सोच को त्याग दे तो समझ जाएगा महिलाएं रसोई में मिर्च-मसालाों डालने भर के लिए पैदा नहीं होती हैं। वंदना जैसी सैकड़ों महिला अफसरों की कहानी इसका सच्चा सबूत हैं।
(Demo Pic)