- Home
- Career
- Education
- बीहड़ गांव से निकल बने IRS अधिकारी, स्कॉलरशिप के लिए जिस दफ्तर के बाहर सड़क पर सोये वहीं मिली पहली ज्वाइनिंग
बीहड़ गांव से निकल बने IRS अधिकारी, स्कॉलरशिप के लिए जिस दफ्तर के बाहर सड़क पर सोये वहीं मिली पहली ज्वाइनिंग
करियर डेस्क. दोस्तों, अफसर का पद हमारे समाज में बहुत प्रतिष्ठित माना जाता है। अफसर न सिर्फ जिले में बल्कि जिले के अंदर आने वाले सैकड़ों गांवों की तस्वीर बदल देता है। ऐसे ही एक अफसर ने अपने पिछड़े गांव में करीब 10 साल बाद क्रंकीट सड़क का निर्माण करवाया। ये हैं सुरेश लखावत जो 2010 बैच के आईआरएस अधिकारी (IRS Officer) हैं। वह मूल रूप से आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) के एक छोटे से गांव सर्वापुरम के रहने वाले हैं। यहां पहले सड़क, साफ पानी, स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाओं की कोई व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने बेहद गरीबी, संघर्ष के बाद सफलता हासिल की और अफसर बने। अफसर बनने के बाद उन्होंने ठान लिया कि अपने गांव में बदलाव लाएंगे। लेकिन गांव में सविधाएं लाने की यह राह आसान नहीं थी। वो लगातार 10 साल तक मंत्रियों को विनती भरे पत्र लिखते रहे।
- FB
- TW
- Linkdin
हैदराबाद के आयकर विभाग में ‘संयुक्त आयुक्त’ के रूप में नियुक्त, सुरेश लखावत को अपने गांव में 3 किलोमीटर की सड़क बनाने के लिए, जिले के अधिकारियों को राजी करने में 10 साल लग गए।
एक इंटरव्यू में वह बताते हैं कि, “मैं करीब 10 साल तक जिलाधिकारियों, मंत्रियों और संबंधित विभाग के अधिकारियों को यहां सड़क बनाने के लिए नियमित रूप से पत्र लिखता रहा। उनके लिए यह विश्वास करना मुश्किल था कि एक ऐसी जगह, जहां से कोई IRS बना है, वहां 21वीं सदी में वाहन चलने योग्य सड़क नहीं है।”
बेहद पिछड़े गांव से निकल बने अफसर
UPSC में सफल होने के बाद, 2010 में सुरेश की नियुक्ति हैदराबाद के मसाब टैंक में इनकम टैक्स ऑफिस में हुई। पद संभालने के बाद, उन्होंने अपने गांव में मूलभूत सुविधाओं के लिए संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखना शुरू किया। 33 साल के सुरेश कहते हैं, “अधिकारियों को विश्वास नहीं था कि एक ऐसे गांव से कोई IRS अधिकारी बन सकता है, जहां बिजली, साफ पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। ये तस्वीर इसी बात का सबूत है क्योंकि साल 2011 तक IRS अधिकारी सुरेश का घर यही था।
10 साल बाद गांव को मिले स्कूल और सड़क
इसी प्रयास में उन्होंने अपने गांव में अधिकारियों के साथ कई दौरे आयोजित किये। जो अधिकारी आ नहीं पाते थे, वह उन्हें तस्वीर दिखाते थे। वह अधिकारियों को समझाने के लिए, अपने जीवन की कहानी भी सुनाते थे। उनकी मेहनत रंग लाई और उनके गांव में साल 2020 में पक्की सड़क का निर्माण हुआ। यह सड़क गांव को शहर और रेलवे स्टेशन से जोड़ती है। उनके प्रयासों से गांव को RO जलापूर्ति योजना, एलईडी स्ट्रीट लाइट तथा पुस्तकालय की सुविधा मिलने के साथ ही, एक स्कूल भी मिला।
सुरेश के अफसर बनने का संघर्ष
सुरेश कहते हैं कि इससे पहले गांव वालों को हैदराबाद और किसी दूसरे शहर जाने के लिए, 3 किमी तक रेलवे लाइन के किनारे चलना पड़ता था। यहां तड़लापल्ली (Tadlapussally) रेलवे स्टेशन है। इसी बीहड़ गांव से निकल सुरेश ने अफसर बने हैं। वे बचपन में अस्थाई स्कूल में कभी-कभी पढ़ने जाते थे। लेकिन, एक जमींदार उनकी देखभाल और पढ़ाई-लिखाई का खर्च उठा लिया।
वह कहते हैं, “सुरेश बेहद गरीब मजबूर परिवार से थे उनके दादा जमींदार के खेत में काम करते थे। जमींदार ने पोते को देख घरेलू कामों के लिए रखने की बात कही। और इस तरह सुरेश उस जमींदार के घर छोटे-मोटे काम करने लगे। जमींदार ने सुरेश की पढ़ाई और देखभाल के लिए आर्थिक मदद करने की भी बात कही थी। इसके बाद सुरेश के दादा राजी हो गए और वह जमींदार के घर पर काम करने लगे।
नौकर बन की पढ़ाई
सुरेश कहते हैं, “जमींदार मुझे अपने दो बच्चों के साथ पढ़ाने लगे। लेकिन, जब रिजल्ट आया उनके बच्चे फेल निकले और मैं पास हो गया। इस नाखुश होकर उन्होंने मदद करना बंद कर दिया। इसके बाद, सुरेश ने एक स्कॉलरशिप स्कीम के बारे में पता चला। ये राज्य की सबसे बड़ी जनजातीय छात्रवृत्ति योजना थी। इसमें आवेदन कराने के लिए उनके पिता सुरेश को हैदराबाद ले गए। स्कॉलरशिप पाने के लिए बाप-बेटे को 1 महीने तक ‘आदिवासी कल्याण कार्यालय’ के पास सड़क के किनारे सोना पड़ा।
और आखिरकार सुरेश ने 1993 में स्कॉलरशिप पाने में सफलता हासिल की और उन्होंने हैदराबाद पब्लिक स्कूल से 2005 में बारहवीं पास की। इस स्कूल को देश के सबसे बेहतरीन स्कूलों में माना जाता है। उन्होंने पढ़ाई के साथ खेल-कूद में भी भाग लिया। खेलों में 250 से ज्यादा मेडल जीते और स्कूल में हेड बॉय भी बनें।
स्कूल में उनके दोस्त उदयचरण ने अधिकारी बनने की परीक्षा UPSC के बारे में उन्हें बताया। इस परीक्षा के बारे में जानकर उन्हें खुशी हुई क्योंकि अधिकारी गांव के हालात बदलते हैं, वो विकास लाते हैं। इसलिए साल 2005 में उन्होने दोस्त उदयचरण के साथ दिल्ली में रहने और पढ़ाई की ठान ली। उदयचरण के पिता ने सुरेश की पढ़ाई-रहने का खर्च भी उठाया। फिर दिल्ली में उन्होंने ग्रैजुएशन की पढ़ाई के लिए एक कॉलेज में नामांकन लिया और सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी की योजना बनाई।
2008 में, सुरेश ने बेहतरीन अंकों के साथ अपना ग्रैजुएशन पूरा किया और यूपीएससी की तैयारी में जुट गए। वह कहते हैं, “मैंने यूपीएससी में पहली बार में ही सफलता हासिल कर ली। ट्रेनिंग के बाद उन्हें हैदराबाद के उसी मसाब टैंक में इनकम टैक्स ऑफिस में नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने स्कॉलरशिप के लिए जमकर चक्कर काटे और सड़कों पर सोये भी थे।
खुद को काबिल बनता देख सुरेश बाकी बच्चों की मदद करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने अपने गांव के लोगों की सहायता करने की ठानी और यहां सुविधाएं लाने के लिए मंत्रियों के आगे गिड़गिड़ाए। गांव में सड़क बनाना उनके लिए बड़ी चुनौती थी, फिर भी ये सपना सच हो गया। सुरेश कहते हैं कि उनके गांव के 28 लोग उनकी मदद से सरकारी विभागों में नौकरी पा चुके हैं और उनका इरादा गाँव से अधिक से अधिक प्रतिभाओं को सामने लाने का है।