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46 साल पहले इस तरह की गई थी लोकतंत्र की हत्या, 21 महीनों तक खौफ में जीने को मजबूर थी जनता
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क्यों लगी देश में इमरजेंसी
25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी की घोषणा की गई थी। 26 जून की सुबह 7 बजे इंदिरा ने ऑल इंडिया रेडियो के जरिए जनता को संबोधित कर आपातकाल लगाने के फैसले के बारे में बताया। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन 'आंतरिक अशांति' के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी।
कुछ ही घंटों में लिया गया फैसला
25 जून 1975 को दोपहर करीब 3:30 बजे इंदिरा गांधी के वफादार सहयोगी और प. बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे उनके पास आए और उन्हें अमेरिका के संविधान का हवाला देते हुए बताया कि सरकार आर्टिकल 352 का इस्तेमाल कर "आंतरिक आपातकाल" लागू कर सकती है। रे के सुझाव पर बिना देर किए इंदिरा गांधी की टीम ने "आपातकाल की घोषणा" के आधिकारिक दस्तावेज तैयार किए। इनमें भारत के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर होने थे। अहमद इंदिरा के रबरस्टैम्प कहे जाते थे। इसी वजह से इंदिरा को विश्वास था कि आपातकाल की घोषणा वाले दस्तावेज पर वे बिना देर करें हस्ताक्षर कर देंगे। शाम 5.30 बजे, इंदिरा और रे राष्ट्रपति के निवास पर गए, यहां राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए।
रात 2 बजे गिरफ्तार किए गए कई नेता
राष्ट्रपति से साइन करवाकर जब इंदिरा घर पर लौटीं तब तक उनके बरामदे में सभी विपक्षी नेताओं की लिस्ट लग गई थी, जिन्हें जेल भेजा जाना था। उसी रात सभी के खिलाफ अरेंस्ट वारंट जारी किए गए। रात 2 बजे तक उनमें से ज्यादातर गिरफ्तार भी हो चुके थे।
26 जून को की इमरजेंसी की घोषणा
26 जून 1975 को सुबह 7 बजे इंदिरा ने ऑल इंडिया रेडियो पर इमरजेंसी की घोषणा। इस दौरान उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ गहरी साजिश रची गई है, जिससे वे आम आदमी के लाभ के लिए किए जा रहे कामों को ना कर सकें। इतना ही नहीं उन्होंने इमरजेंसी को ऐसे बताने की कोशिश की कि उन्हें विदेशी हाथों से देश की रक्षा करने के लिए इस तरह का कदम उठाना पड़ रहा है।
21 महीने तक रही इमरजेंसी
26 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक की 21 महीने तक भारत में आपातकाल था। इमरजेंसी के दौरान लोगों से उनके मूल अधिकार ही छीन लिए गए। यहां तक की चुनाव स्थगित हो गए थे। इसे स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह अब तक का सबसे विवादित दौर माना जाता है।
प्रेस की आजादी छीनी
आपातकाल के खिलाफ विरोध में किसी भी तरह की खबर छापने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। प्रेस की आजादी पूरी तरह से छीन ली गई। अगले दिन खबर प्रकाशित करने से पहले सभी समाचार पत्रों को सरकार के पास मंजूरी के लिए इसकी कॉपी भेजना होता था। इतना ही नहीं कई अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई, ताकि पेपर प्रिंट ही ना हो सके। हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस ने इसका विरोध जताते हुए संपादकीय पेज खाली छोड़ दिया।
मीसा कानून के तहत हुई कार्रवाई
इस समय अगर किसी ने सिर्फ आपातकाल, इंदिरा या सरकार में एक भी शब्द कहने की कोशिश भी की तो उनकी गिरफ्तारी हो रही थी। इतना ही नहीं, आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (MISA) के तहत सभी प्रकार के विरोध प्रदर्शन (धरना, घेराव, सत्याग्रह) पर रोक लगा दी गई। इस दौरान गिरफ्तार लोगों की संख्या जेलों की संख्या से ज्यादा थी, ऐसे में कई लोगों को सिर्फ खंभे और जंजीरों से बांध दिया गया था।
नेताओं ने बदला अपना भेष
इमरजेंसी के दौरान आरएसएस जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और इसके ज्यादातर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि कुछ नेता अपना भेष बदलकर रहने लगे। जिसमें नरेंद्र मोदी और इंदिरा गांधी के सबसे मुखर आलोचक डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने गिरफ्तारी के बचने के लिए पगड़ी पहन ली और सिख बनकर रहने लगे।
1977 में हुई आपातकाल खत्म करने की घोषणा
21 महीनों तक रही इमरजेंसी को 21 मार्च 1977 को खत्म किया गया। इस दौरान लाखों को जेल हुई, हजारों मनमाने सरकारी फैसले हुए और सत्ता ने खुद के सुख के लिए लोगों के दुख को ताक पर रख दिया गया। कहा जाता है, कि इस दौरान करीब 83 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करा दी गई थी।
लोगों ने दिया इंदिरा सरकार को करार जवाब
आपातकाल के बाद 1977 मार्च में हुए चुनाव में इंदिरा गांधी और उनकी सरकार को सबक सिखाया और उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस को सिर्फ 154 सीटें मिलीं। चुनाव के ऐलान के बाद जेल में बंद सभी बड़े, छोटे नेताओं और प्रदर्शनकारियों को रिहा कर दिया गया। सभी विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के खिलाफ एकजुट होकर जनता पार्टी के नाम से एक नई पार्टी का गठन किया गया। जनता पार्टी और गठबंधन को 542 में से 330 सीटें मिली और वह सत्ता पर काबिज हुई। इसके बाद मोरार जी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने।