- Home
- Career
- Education
- 1 दिन की CM से लेकर जख्मी पिता को घर लाने वाली साइकिल गर्ल तक, नेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर बहादुर बेटियों की कहानी
1 दिन की CM से लेकर जख्मी पिता को घर लाने वाली साइकिल गर्ल तक, नेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर बहादुर बेटियों की कहानी
- FB
- TW
- Linkdin
बेटियों को आगे बढ़ाने के कई अवसरों के बारे में लोगों को बताया जाता है। नेशनल गर्ल चाइल्ड डे के इस अवसर पर हम आपको देश-दुनिया में अद्भुत प्रतिभा से नाम कमाने वाली बेटियों के बारे में बता रहे हैं-
बिहार की बहादुर बिटिया ज्योति पासवान (Jyoti Paswan)
कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन में भारत में एक 'साइकिल गर्ल' काफी चर्चा में रही। पैर में चोट खाए पिता को साइिकल पर बैठाकर गुरुग्राम से लेकर बिहार के दरभंगा तक अकेले साइकिल चलाकर घर ले आने वाली ये हिम्मती लड़की है ज्योति पासवान। मात्र 15 साल की ज्योति अपनी इस हिम्मत और दरियादिली से अखबारों की सुर्खियां बन गई। ज्योति पूरी दुनिया में उन लोगों के लिए मिसाल है जो लड़कियों को कमजोर आंकते हैं।
ज्योति ने पैरों से साइकिल खींचकर लगभग 1200 किलोमीटर का सफर तय किया था। जख्मी पिता को बैठाकर दिन-रात साइकिल खींची थी। भारत की साइकिलिंग फ़ेडरेशन के सदस्यों ने ज्योति के घर आकर, उन्हें चेक, साइकिलें, कपड़े और यहाँ तक कि फल और तमाम तरह के प्रस्ताव दिए थे। उन्हें सरकार ने ईनाम दिए। यहां तक की अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ने भी ज्योति की तारीफ की और लिखा- ये सहनशक्ति और प्यार की ख़ूबसूरत उपलब्धि है।
एक दिन की CM सृष्टि गोस्वामी (Srishti Goswami)
नेशनल गर्ल चाइल्ड डे पर एक दिन की मुख्यमंत्री का खिताब हासिल करने वाली सृष्टि गोस्वामी काफी चर्चा में हैं। हरिद्वार की रहने वाली सृष्टि देहरादून में बाल सभा सत्र के दौरान एक दिन के लिए उत्तराखंड का सीएम बनी हैं। बता दें राज्य में हर तीन साल में एक बार बाल विधानसभा का आयोजन किया जाता है, जिसमें बाल मुख्यमंत्री का चयन होता है। इस बार यह मौका सृष्टि को मिला है। उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर अपनी कुर्सी सृष्टि को देकर लड़कियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। वह 2018 में बाल विधानसभा में बाल विधायक भी चुनी जा चुकी हैं।
प्रकृति प्रेमी ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg)
जिस उम्र में बच्चे खेलने-कूदने में बिजी रहते हैं उस उम्र में एक लड़की ने पूरी दुनिया में क्लाइमेंट चेंज के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। दुनियाभर में मौसम में हो रहे परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) को लेकर अलख जगाने वाली 15-16 साल की उम्र से यह लड़की स्कूल छोड़कर यह काम कर रही है। वह धरती बचाने की लड़ाई लड़ रही है। ये स्वीडन की रहने वाली ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg) हैं। वह जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनियाभर में जागरूकता फैला रही है। ग्रेटा ने स्वीडेन की राजधानी स्टॉकहोम में संसद के बाहर बैनर लेकर प्रदर्शन किया जिसके बाद वो चर्चा में आ गईं।
इसके जरिये वह नेताओं और आम लोगों से दुनिया बचाने की अपील करती हैं। नवंबर 2018 के स्कूल स्ट्राइक फॉर क्लाइमेट के उनके कैंपेन में 24 देशों के करीब 17 हजार छात्रों ने हिस्सा लिया। इसके बाद वह जलवायु परिवर्तन को लेकर बड़ी-बड़ी कांफ्रेस और आयोजनों में हिस्सा लेने लगीं। ग्रेटा एक मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। ग्रेटा को टाइम्स मैगजीन ने साल 2019 की पर्सन अॉफ द ईयर चुना था। ग्रेटा के नाम कई अवॉर्ड शामिल हैं, लोग उन्हें प्रकृति की नन्ही रक्षक के तौर पर देखते हैं।
युवा IAS टीना डाबी (IAS tina Dabi)
महज 22 साल की उम्र में यूपीएससी सिविल सर्विस एग्जाम (UPSC Exam) में टॉप करने वाली अफसर टीना डाबी पूरे देश में युवाओं की रोल मॉडल हैं। उन्होंने पहली बार में आईएएस एग्जाम पास किया और इसमें टॉप भी किया। 2016 में सिविल सेवा रिजल्ट में टॉप कर टीना देशभर की लड़कियों के लिए रोल मॉडल बन गईं। वह बचपन से ही एक मेधावी छात्रा रही हैं।
टीना ने 12वीं क्लास में भी पॉलिटिकल साइंस में 100 में से 100 नंबर हासिल किये थे। कॉलेज में टीना विभिन्न कार्यक्रमों में स्पीकर के तौर पर राजनीति से जुड़े अपने विचार रखती थीं। टीना ने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज से इकोनॉमिक्स ऑनर्स में पढ़ाई पूरी की। टीना ने लॉकडाउन के दौरान राजस्थान में तैनात रहते हुए लोगों को घर-घर राशन पहुंचाकर भी लोगों का दिल जीत लिया। IAS टीना की सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा फैन फॉलोइंग हैं। वो सिविल सेवा परीक्षा के लिए भी युवाओं को प्रोत्साहित करती रहती हैं।
नारी शिक्षा की अलख जगाती मलाला यूसुफजई (Malala Yousafzai)
मलाला यूसुफजई 15 साल की थी जब उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए सिर पर गोली खाई थी। पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा की हिमायत करने वाली मलाला यूसुफजई पर तालिबान ने हमला किया और सिर में गोली मारकर उसकी जान लेने की कोशिश की थी। ब्रिटेन में लंबे इलाज के बाद वह ठीक हुईं और एक बार फिर अपने अभियान में जुट गईं। सबसे कम उम्र में शांति का नोबेल जीतने वाली मलाला आतंकवादियों के बच्चों को भी शिक्षा देने की पक्षधर है ताकि वह शिक्षा और शांति का महत्व समझें।
उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की स्वात घाटी की रहने वाली मलाला ने 11 साल की उम्र में गुल मकाई नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरु किया था। साल 2009 में डायरी लिखने की शुरुआत करने वाली मलाला स्वात इलाके में रह रहे बच्चों की व्यथा सामने लाती थीं। उस समय स्वात इलाके में तालिबान का खतरा बहुत ज्यादा था। डायरी के जरिए बच्चों की कठिनाइयों को सामने लाने के लिए मलाला को वीरता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। साल 2011 में बच्चों के लिए अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।
दंगल गर्ल (Geeta-Babita Phogat)
गीता और बबीता, दोनों रेसलर बहनें हैं। महावीर फोगाट की इन दोनों बेटियों ने रेसलिंग में देश का नाम दुनियाभर में मशहूर किया। इन्हें ‘दंगल गर्ल' कहा जाता है। देश को कई मेडल देने वाली ये बहनें महिला कुश्ती के लिए पुरुषों के साथ पहलवानी करके यहां तक पहुंची थीं। गांव में महिला पहलवान न होने पर पिता ने इन्हें लड़कों से कुश्ती करवाई और इंटरनेशनल गेम्स के लिए तैयार किया। गरीबी में पली-बढ़ी चंडीगढ़ की गीता और बबीता की पहलवानी के दाँव-पेंच और उनका संघर्ष पूरा देश जानता है। हरियाणा में ये एथलिट लड़के-लड़की दोनों की आदर्श रही हैं। ये चार बहनों गीता, बबीता, रितु और संगीता सभी पहलान हैं।
गरीबी झेल एथलिट बनीं हिमा दास (Hima Das)
गरीबी झेलने के बावजूद भी ओलंपिक खेलों में भारत का नाम रोशन करने वाली एथलिट हिमा दास के नाम से हर खेल प्रेमी परिचित है। असम के नागौन की रहने वाली हिमा ने कड़ी मेहनत से ये पहचान हासिल की है। हिमा ने बचपन से ही खेती में परिवार का हाथ बंटाया। शुरुआत में हिमा फुटबॉल खेलना चाहती थीं। लेकिन जब वे स्कूल में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं तो उनके टीचर ने उनकी फुर्ती देख उन्हें एथलीट बनने की सलाह दी। हिमा ने रेस को चुना। इसके बाद वे घर से 140 किमी दूर बस से गुवाहाटी ट्रेनिंग के लिए जाती थीं। हिमा आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। हिमा ने 400 मीटर की दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। हिमा के पास कभी दौड़ने को जूते नहीं होते थे आज वो ADIDAS की ब्रांड एम्बेसडर हैं।