- Home
- Career
- Education
- मंदिर में लगे बल्ब की रोशनी में पढ़ अफसर बना भैंस चराने वाला लड़का, मां मार पीटकर भेजती थी स्कूल
मंदिर में लगे बल्ब की रोशनी में पढ़ अफसर बना भैंस चराने वाला लड़का, मां मार पीटकर भेजती थी स्कूल
दौसा. भारत में अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गरीबी में जिंदगी गुजर-बसर करते हैं। लोगों के लिए मूलभूत सुविधाओं की भी कमी होती। स्कूल, अस्पताल, डाकखाना और पुलिस चौकी जैसी सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं और लोग शिक्षा से कोसों दूर रह जाते हैं। ऐसे ही राजस्थान के बेहद पिछड़े इलाके से भैंस चराने वाला एक बच्चा अफसर बनकर निकला तो हैरान लोगों की आंखें फैल गईं। IAS, IPS, IRS सक्सेज स्टोरी में आज हम आपको राजस्थान के दौसा जिले के धरणवास गांव के IRS अफसर बने मिंटू लाल की कहानी सुना रहे हैं।
| Published : Mar 07 2020, 02:25 PM IST / Updated: Mar 07 2020, 03:52 PM IST
मंदिर में लगे बल्ब की रोशनी में पढ़ अफसर बना भैंस चराने वाला लड़का, मां मार पीटकर भेजती थी स्कूल
Share this Photo Gallery
- FB
- TW
- Linkdin
110
राजस्थान के दौसा जिले के मिंटू लाल की अनूठी कहानी है। मिंटू के माता-पिता ने कभी स्कूल नहीं देखा। ख़ुद बचपन में भैंस चराने वाले मिंटू ने सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। वो बचपन में खुद कभी स्कूल नहीं जाना चाहते थे। 5 साल तक मिंटू खेतों में भैंस चराते रहे और कभी नहीं जाना कि किताब और स्कूल क्या होता है? पर मिंटू की मां ने उन्हें पढ़ाने की ठानी। मिंटू जब 6 साल के हुए तो मां ने उन्हें जबदस्ती स्कूल भेजा। दो दिन लगातार पीट-पीटकर उनकी मां उन्हें स्कूल छोड़कर आती रहीं।
210
मिंटू ने खुद अपनी कहानी साझा की है। वे बताते हैं कि, मेरे माता- पिता अनपढ़ हैं, वे कभी स्कूल नहीं गए। मुझे भी बचपन में स्कूल जाने से बहुत डर लगता था मैं लगभग 6 वर्ष का होने के बाद स्कूल में पहली बार गया। वह भी तब जब 2 दिन तक लगातार मां ने पिटाई करते हुए स्कूल के दरवाजे तक छोड़ा। इससे पहले मैं माता या पिता के साथ भैंस चराता रहता था।
310
मेरी दसवीं तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई लेकिन स्कूल के दौरान भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हमारे घर में बिजली नहीं थी। घर कच्चा था और कैरोसीन डालकर हमें चिमनी जलाकर पढ़ना पड़ता था। इसलिए मैं रोजाना घर से थोड़ी दूर पपलाज माता के मंदिर में पढ़ाई करने जाता था।
410
मंदिर में लाइट लगी थी और वहां हमेशा रोशनी रहती थी। मैं देर रात तक पढ़ाई किया करता था। पढ़ते-पढ़ते मैंने ठान लिया था मुझे सिविल सेवक बनना है। इसका कारण यह था कि मैं अपने बड़े भाई की प्रेरणा से बहुत जल्दी से ही अखबार पढ़ने लग गया था तो समाचार पत्रों में प्रशासनिक अधिकारियों के दौरों के बारे में जिक्र होता था।
510
हालांकि परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी इसलिए मैं जल्दी से नौकरी पाना चाहता था। मैं 12वीं के बाद ही पटवारी बन गया। नौकरी लगने के कारण मैं औपचारिक रूप से किसी कॉलेज या विश्वविद्यालय में अध्ययन नहीं कर सका और मैंने B.A. (इतिहास, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान) तथा M.A. (आधुनिक भारत का इतिहास) स्वयंपाठी विद्यार्थी (प्राइवेट) के रूप में किया। मैंने नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी।
610
मैं सिविल सेवा की तैयारी करने के लिए दिल्ली आना चाहता था लेकिन इसके लिए पैसों की आवश्यकता थी, जो मेरे पास नहीं थे। ऐसी परिस्थितियों में मुझे अपने दोस्तों का सहयोग मिला। उनके आर्थिक सहयोग से मैं दिल्ली तैयारी करने के लिए आ गया। मुझे याद है, उस समय कई लोगों ने यह कहा था कि पटवारी की नौकरी ही कर लो, अपने क्षेत्र से आज तक कोई भी इस परीक्षा में सफल नहीं हुआ है। क्यों समय और धन की बर्बादी करते हो ?
710
मुझे अपने आप पर विश्वास था मैंने तैयारी शुरू की। एक वर्ष बाद सिविल सेवा परीक्षा में सम्मिलित हुआ। प्रथम प्रयास में साक्षात्कार तक पहुंचा। यह मेरी जिंदगी का अद्भुत क्षण था मैंने कभी जीवन में सोचा नहीं था की मैं प्रथम प्रयास में यूपीएससी के इंटरव्यू तक पहुंच जाऊंगा।
810
पहले प्रयास में मुझे सफलता नहीं मिली लेकिन इस कोशिश से मेरा विश्वास और बढ़ गया। अब मुझे लगने लगा था कि अगली बार तो मेरा जब चयन जरूर हो जाएगा। इसी बीच मैंने सिविल सेवा में थोड़ा वक्त लगते देख करियर दूसरे विकल्प के रूप में इतिहास से NET-JRF की परीक्षा पास कर ली थी।
910
इसके बाद मैंने दूसरे प्रयास की तैयारी शुरू की और साक्षात्कार दिया।मुझे 2018 के सिविल सेवा परीक्षा में 664वीं रैंक प्राप्त हुई और भारतीय राजस्व सेवा- IRS आयकर के लिए मैं चुना गया। इस तरह जो सपना मैंने देखा था वह कठिन परिश्रम, खुद पर विश्वास, अनुशासन से बहुत कम समय में पूरा हो गया। मेरे गांव में मेरा भव्य स्वागत किया गया, मेरे परिवार के लोग फूल-माला से स्वागत कर रहे थे। मैं अफसर बन गया था तो मेरी मां बहुत खुश हुई और रोने लगी थीं।
1010
मुझे इस बात की खुशी है कि मेरा चयन सिविल सेवा में होने के बाद मेरे क्षेत्र में लोगों की यह सोच बदली इसमें पैसे वाले लोग ही सफल हो सकते हैं। आज मिंटू के गांव क्षेत्र से कई अन्य विद्यार्थी भी इस परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और उन्हें प्रेरणास्रोत के रूप में मानते हैं। स्टूडेंट उनके संघर्ष की कहानी से प्रोत्साहित होते हैं वो सबके आदर्श बन चुके हैं।