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रेलवे पटरी की मरम्मत करने वाला मजदूर कैसे बना IPS अफसर, कड़ी धूप में पसीना बहाकर मिली सफलता
जयुपर. सुनने में भले लोगों को आसान लगता है लेकिन जब कोई मेहनत के बलबूते बड़ा सपना पूरा करने की ठान ले तो वो साकार होकर ही रहता है। ऐसे ही राजस्थान के एक किसान के बेटे ने एक दो नहीं बल्कि छह बार अपनी नौकरी छोड़ी। आज के बेरोजगारी के समय में उसने उन नौकरियों को ठुकराया जो हर कोई पाने को आतुर है। पर इस लड़के ने सिर्फ अफसर बनने और पुलिस की वर्दी के लिए उन्हें न कर दिया। कभी रेलवे में गैंगमैन का काम कर पटरियां ठीक करने वाला ये शख्स आज पुलिस अफसर है। उनका संघर्ष ही उनके हौसलों की कहानी सुनाता है कि कैसे कड़ी मेहनत से उसने अपने कंधे पर सितारे लगाए हैं।
आईपीएस सक्सेज स्टोरी (IPS Success Story) में आज हम आपको प्रहलाद सहाय मीना के एक मामूली मजदूर से अफसर बनने तक का संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं।
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प्रहलाद सहाय मीना किसान के बेटे हैं। गुदड़ी के लाल हैं। मेहनत और कामयाबी की मिसाल भी। इन्होंने वो कमाल कर दिखाया जो इनके आस-पास के गांवों में कोई नहीं कर सका। 6 बार सरकारी नौकरी लगे। 5 बार सिर्फ इसलिए छोड़ दी कि भारतीय पुलिस सेवा का अफसर बनने का लक्ष्य था, जो पूरा कर दिखाया।
7 फरवरी 1988 को जन्मे प्रहलाद सहाय मीना का रेलवे गैंगमैन से आईपीएस बनने का सफर आसान नहीं रहा। यूपीएससी में तीन बार और आरपीएससी में एक बार असफलता भी मिली, मगर मेहनत करना नहीं छोड़ा। नतीजा हम सबके सामने है। प्रहलाद ने बयां किया अपनी कामयाबी का सफर, जो हर किसी के लिए प्रेरणादायी है। वो बताते हैं कि वे अपने परिवार और गांव से पहले आईपीएस हैं। खास बात है कि गैंगमैन के रूप में ये ओडिशा में पटरियों की देखभाल व मरम्मत करते थे। संयोग देखिए कि अब ओडिशा में ही आईपीएस अधिकारी हैं।
12वीं में भी मैं अपने कक्षा में स्कूल में प्रथम स्थान पर रहा था लेकिन अब मेरी प्राथमिकता बदल गई थी अब मुझे सबसे पहले नौकरी चाहिए थी क्योंकि परिवार की इतनी अच्छी आर्थिक दशा नहीं थी कि वह मुझे जयपुर किराए पर कमरा दिला कर पढ़ा सके।
सरकारी स्कूल में पढ़कर हासिल की सफलता प्रहलाद का बचपन गांव में बीता। पढ़ाई सरकारी स्कूल से हुई। दसवीं कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। दसवीं के बाद दोस्तों ने साइंस विषय लेने की सलाह दी। प्रहलाद इंजीनियर बनना चाहते थे, मगर परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण इंजीनियरिंग करने बाहर नहीं भेज सकते थे। गांव के पास किसी विद्यालय में विज्ञान संकाय नहीं था। ऐसे में कला संकाय से 12वीं कक्षा में भी प्रथम स्थान पाया। फिर प्राथमिकता बदल गई। इंजीनियर की बजाय सरकारी नौकरी लगना चाहते थे।
जयपुर में किराए का रूम लेकर रहे 12वीं की पढ़ाई के दौरान इनके गांव के एक लड़के का भारतीय रेलवे में ग्रुप डी (गैंगमैन) चयन हुआ। उससे प्रेरित होकर प्रहलाद मीना भी रेलवे की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में जुट गए। साथ ही कॉलेज की पढ़ाई के लिए जयपुर आ गए। किराए का रूम लेकर रहने लगे। राजस्थान कॉलेज में प्रवेश लिया और बीए द्वितीय वर्ष 2008 में पहली बार सरकारी नौकरी लगे।
इन पदों पर लगी सरकारी नौकरी
1. वर्ष 2008 में भारतीय रेलवे में भुवनेश्वर बोर्ड से गैंगमैन बने।
2. वर्ष 2008 भारतीय स्टेट बैंक सहायक (एलडीसी)
3. वर्ष 2010 भारतीय स्टेट बैंक SBI में प्रोबेशनरी अधिकारी
4. रक्षा मंत्रालय के अधीन सहायक लेखा अधिकारी- AAO
5. रेल मंत्रालय में सहायक अनुभाग अधिकारी- ASO
6. भारतीय पुलिस सेवा में ओडिशा कैडर के 2017 के IPS
सिविल सेवा परीक्षा में तीन बार हुए असफल ऐसा नहीं है कि हर बार प्रहलाद सहाय मीना को सिर्फ सफलता ही मिली। सिविल सेवा परीक्षा में तीन बार फेल भी हुए, मगर हौसला बनाए रखा। मेहनत करनी नहीं छोड़ी। इन्होंने वर्ष 2013 में दिल्ली आकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू की।
वर्ष 2013 तथा 2014 में मुख्य परीक्षा तक ही पहुंच पाए। 2015 में प्रिलिमनरी परीक्षा में असफल रहे। वर्ष 2016 के प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा में पास हुए और वर्ष 2017 में भारतीय पुलिस सेवा में चयन हुआ। ओड़िशा कैडर के आईपीएस अधिकारी बने।
आरपीएससी में एक नंबर से चूके लगातार तीन साल तक सिविल सेवा परीक्षा में असफल रहने के बाद प्रहलाद सहाय मीना हिन्दी साहित्य से एमए के साथ ही नेट जेआरएफ की तैयारी करने लगे।
इसी साल में राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की गई कॉलेज लेक्चरर परीक्षा में शामिल हुए। साक्षात्कार के लिए चुने जाने में एक नंबर से चूक गए।
प्रहलाद कहते हैं कि, आज मेरी सफलता के पीछे का जो सबसे बड़ा कारण है वह मेरे माता पिता द्वारा मुझे जयपुर के राजस्थान कॉलेज में एडमिशन दिलाना था। वहां मेरी ऐसे अच्छे अच्छे दोस्तों से जानकारी हुई और मुझे विश्वास हो गया कि शायद सिविल सेवा में नहीं तो, पर मैं एक अच्छी नौकरी जरूर पा लूंगा। मिडिल क्लास भी नहीं गरीब परिवार से वास्ता रखते हुए मेरे लिए एक अच्छी नौकरी खोजना बहुत जरूरी था।
लेकिन जब सफलता मिली रही और मैंने पुलिस अफसर को ही अपना लक्ष्य बना लिया तो मैंने ठान लिया। मेरी इच्छा थी कि बस, एक बार सिविल सेवा परीक्षा पास ही करनी है और दुनिया को दिखाना है कि मैं भी यह कर सकता हूं। मेरे जैसे जो ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले बच्चों को मेरी सफलता से आत्मविशवास मिलेगा कि वो भी सिविल सर्विस में जाकर अधिकारी बन सकते हैं।