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गरीबी के कारण 8वीं के बाद छोड़नी पड़ी पढ़ाई, लेकिन 'जुगाड़ की मशीन' ने बना दिया करोड़पति
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57 साल के मुरुगेसन बताते हैं कि केले की छाल के इस्तेमाल को लेकर लोग जागरूक नहीं थे। वे उसे फेंक देते थे या जला देते थे। लेकिन उन्होंने 2008 में केले की छाल(फाइबर) से जब रस्सी बनाने का काम शुरू किया, तब लोग चौकन्ने हुए।
हालांकि कोई भी काम एकदम सरल नहीं होता। मुरुगेसन को भी शुरुआत में दिक्कत हुई। हाथ से केले के छिलकों को टुकड़े-टुकड़े करना और फिर उससे रस्सी बनाना बहुत मुश्किल का काम था। कई बार रस्सी अच्छी भी नहीं बनती थी। इसी बीच एक दोस्त ने नारियल की छाल को रस्सी के लिए प्रोसेस करने वाली मशीन के बारे में बताया। मुरुगेसन ने उसका प्रयोग किया, लेकिन इससे भी काम आसान नहीं हुआ।
मुरुगेसन ने बताया कि वे केले की छाल की प्रोसेसिंग की मशीन तैयार करने वे लगातार प्रयोग करते रहे। आखिर में उन्हें सफलता मिली। उन्होंने पुरानी साइकिल की रिम और पुली को असेंबल करके ‘स्पिनिंग डिवाइस’ तैयार की। इससे मुरुगेसन अब हर साल 500 टन केले के ‘फाइबर वेस्ट’ की प्रोसेसिंग कर लेते हैं।
मुरुगेसन बताते हैं कि इस जुगाड़ की मशीन को तैयार करने में करीब एक लाख रुपए का खर्च आया। इसका वे पेटेंट करा चुके हैं। यह मशीन केले के छिलकों को टुकड़ों में काट देती है। इसके बाद मुरुगेसन उन्हें सूखने रख देते हैं। जब ये सूख जाते हैं, तो मशीन में रखकर रस्सी तैयार की जाती है।
मुरुगेसन के साथ आज 100 से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। इनमें ज्यादातर महिलाओं को काम मिला हुआ है। मुरुगेसन आज केले के छिलकों से रस्सी, चटाई, टोकरी, चादर और अन्य सजावटी चीजें तैयार करा रहे हैं। मुरुगेसन को अब दूसरे देशों से भी ऑर्डर आने लगे हैं। यही नहीं, वे 40 से ज्यादा मशीनें भी बेच चुके हैं। हाल में नाबार्ड ने उन्हें 50 मशीनों का आर्डर दिया है।
बता दें कि भारत में हर साल 14 मिलियन टन केले का उत्पादन होता है। इनमें तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, गुजरात और बिहार सबसे ज्यादा केला उगाते हैं। तिरुचिरापल्ली में 'नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना' में केले की छाल से प्रोडक्ट्स तैयार करने की ट्रेनिंग भी दी जाती है।