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डॉक्टरी छोड़ बना IAS अफसर...अब कोरोना आपदा में 62 हजार मजदूरों को भुखमरी से बचाकर दिया जीवनदान

नई दिल्ली. सपने चाहे जितने बड़े हों, मंजिल चाहे जितनी दूर हो लेकिन योजना बनाकर किया गया कोई भी काम सफलता का सबब बनता है। देश में लाखों बच्चे अफसर बनने के लिए दिन-रात एक करके पढ़ाई करते हैं लेकिन सफल मुट्ठीभर छात्र ही हो पाते हैं। कई बार ये भी देखा गया है कि नौकरी करते हुए लोगों ने सिविल सर्विस में जाना चुना है। ऐसे ही डॉक्टर से अफसर बने एक कलेक्टर की कहानी हम आपको सुनाने जा रहे हैं। वो आज कोरोना आपदा में जमकर सुर्खियों में हैं। अपनी सूझबूझ से इस अफसर ने करीब 62 हजार मजदूरों को भुखमरी से बचाकर जीवनदान दिया है।  आईएएस सक्सेज स्टोरी (IAS Suceccs Story) में आइए जानते हैं डॉ के. विजय कार्तिकेयन की सफलता और सराहनीय कामों के बारे में-  

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Asianet News Hindi
Published : Apr 27 2020, 05:53 PM IST| Updated : Apr 27 2020, 06:21 PM IST
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एक नौकरशाह के रूप में सबसे कम उम्र के अधिकारी डॉ कार्तिकेयन वर्तमान में तिरुप्पुर जिला के कलेक्टर हैं। एक आईएएस अधिकारी के रूप में अपने काम-काज से उनको बेहद लोकप्रियता मिली है। वह अपने बेहतर दायित्व निभाने के लिए कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं।  

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देश की सबसे प्रतिष्ठित और सबसे कठिन सिविल सेवा परीक्षाएं आयोजित कराता है संघ लोक सेवा आयोग। आईएएस अफसर बनने का सपना देखते हुए लगभग बारहो महीने देश के लाखों छात्र ये परीक्षा पास करने की तैयारी में जुटे रहते हैं। सटीक रणनीति, धैर्य और मेहनत के अभाव में उनमें से गिने-चुने ही अपने सपनों की हकीकत में बदल पाते हैं। ऐसे ही युवाओं में डॉ के. विजय कार्तिकेयन भी शामिल थे। 

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डॉ कार्तिकेयन के पिता भी भारतीय वन सेवा विभाग में रहे हैं। उनसे ही प्रेरित होकर उन्होंने छात्र जीवन के बाद सिविल सेवा में जाने का मन बनाया। वह बताते हैं - 'मैंने हमेशा पापा को आदिवासियों के विकास और इको-टूरिज्म के क्षेत्र में काम करते हुए देखा तो लगा कि प्रशासनिक सेवाओं के माध्यम से आम लोगों के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। मुझे मालूम था कि सिविल सेवा की परीक्षा बहुत कठिन होती है। इसलिए मुझे प्लान-बी की जरूरत थी। 

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मेडिकल की पढ़ाई ने भी मुझे लोगों से मिलने और किसी तरह उनकी मदद करने के अवसर दिए। पांच साल की मेडिकल की पढ़ाई के अनुभव ने मेरी काफ़ी मदद की। इससे मुझे सिस्टेमेटिक तौर पर पढ़ने में मदद मिली। जो चैप्टर जितने पृष्ठों का रहता था, मैंने उसके पूरे सिलेबस को अलग-अलग प्वॉइंटर्स में लिखकर पढ़ा। उनका सपना आईएएस अफ़सर बनने का था।'  

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मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद वह सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी करने लगे। फर्स्ट अटेम्प्ट में विफल होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार तैयारी में जुटे रहे। रोजाना आठ-दस घंटे पढ़ाई में जुटे रहे और आखिरकार आईएएस बन ही गए। डॉ. कार्तिकेयन ने ‘वन्स अपॉन एन आइएएस एग्ज़ाम’ में अपनी कोचिंग के अनुभवों, कोचिंग सेंटरों के तौर तरीकों को भी साझा किया है। 

 

डॉ कार्तिकेयन कहते हैं कि 'लोगों से कैसे बातचीत की जाती है, यह जानना-समझना काम का होता है। इसके लिए क्विज़, भाषण प्रतियोगिता, वाद-विवाद जैसी प्रतियोगिताओं के साथ ही लेखन में निपुण हो जाना चाहिए। एक प्रशासनिक अधिकारी अपने काम के दौरान विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलता है। हमारे अंदर उन लोगों से घुलने-मिलने की योग्यता जरूरी है। अपने पहले ही प्रयास में मैं सफल नहीं हुआ। 

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वही असफलता मेरे लिए प्रेरणा बनी। उस वक्त लगा कि मुझे स्वयं को और भी ठीक करने की जरूरत है। वह मेरी पहली असफलता थी।' डॉ कार्तिकेयन ने अपने अतीत के हर तरह के अहसास, एक्सपीरियंस को यह सोचते हुए अपनी पुस्तक ‘वन्स अपॉन एन आइएएस एग्ज़ाम’ में साझा किया है कि उससे आईएएस होने का सपने देने वाले युवाओं को अपेक्षित मदद मिले और वे आसानी से अपनी मंजिल पर पहुंच सकें।

 

उन्होंने युवा प्रतियोगियों को सहज तरीके से अपनी बातें समझाने के लिए अपनी किताब में एक 'विशी' नाम से पात्र गढ़ा और उसके माध्यम से प्रतियोगी परीक्षाओं की एक एक जटिलता पर पार पाने के रास्ते सुझाते जाते हैं।  

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डॉ. के विजयकार्तिकेयन फिलहाल तमिलनाडु की टेक्सटाइल नगरी कहे जाने वाले तिरुप्पुर जिला के कलेक्टर हैं। वो यहां कोरोना आपदा में लोगों की मदद करके काफी सुर्खियों में हैं। उन्होंने जरूरमंदों के लिए राहत किट वितरण की शुरुआत की है ताकि फैक्टरी में काम करने वाले श्रमिकों को सुरक्षा और मदद मुहैया कराया जा सके।

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लॉकडाउन की वजह से देश भर में श्रमिक वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु सहित अन्य शहरों में फंसे दिहाड़ी कामगारों को भोजन की भी परेशानी हो रही है। बीच मझधार में फंसे असहाय श्रमिक न तो घर वापस जा सकते हैं और न ही इस लॉकडाउन में रोजी-रोटी जुटा सकते हैं। इसलिए उन्होंने हेल्पलाइन कैंप बनाकर मजदूरों को न सिर्फ आसरा दिया बल्कि भोजन, पानी मेडिकल फैसिलिटी सब मुहैया करवाई है। 

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चौबीस घंटे ऑपरेटिंग कंट्रोल रूम और 62,000 से अधिक लोगों के भोजन के लिए पर्याप्त राशन के साथ विजयकार्तिकेयन युद्धस्तर पर राहत के उपाय कर रहे हैं। उनकी टीम ने शहर में दिहाड़ी मजदूरों को राशन और भोजन उपलब्ध कराने के लिए ये कदम उठाए हैं। वे राशन किट प्रदान करते हैं जिनकी कीमत 755 रुपये है और इसमें 5 किलो चावल, 1.5 किलोग्राम गेहूं का आटा, 1 किलो दाल के साथ-साथ तेल, चीनी, बिस्कुट, चायपत्ती, प्याज, टमाटर और एक कार्टन बॉक्स शामिल हैं। यह सामग्री एक व्यक्ति के लगभग एक सप्ताह तक जीविका चलाने के लिए पर्याप्त है।

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