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CM Face की रेस में खुद के जाल में फंस गए बड़बोले नवजोत सिंह सिद्धू, 8 बड़ी वजह से लगा 440 बोल्ट का झटका
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माना जा रहा है कि सिद्धू का बड़बोलापन उनकी सबसे बड़ी परेशानी बन गया। इससे भी बड़ी दिक्कत यह रही कि वह पंजाब मॉडल को लेकर इतने ज्यादा उतावले हो गए कि हर जगह इस पर ही बात करने लगे। इससे पार्टी के भीतर जो नेता उनके पक्ष में खड़े होते थे, वह भी धीरे धीरे सिद्धू से कटने लगे।
इसका परिणाम यह निकला कि पार्टी के भीतर भी धीरे धीरे उनके विरोधी बढ़ते चले गए। इसका परिणाम यह निकला कि सिद्धू की पार्टी के भीतर वकालत करने वाले कम रह गए। एक मौका तो ऐसा आया कि वह खुद ही अपने को सीएम चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करते रहे। परिणाम यह निकला वह चन्नी से पिछड़ते चले गए।
पंजाब की राजनीति कवर करने वाले सीनियर पत्रकार हरबंस सिंह चीमा ने बताया कि सिद्धू अमृतसर ईस्ट से 2004 से लेकर अभी तक जीत हासिल करते रहे हैं। 2012 में उनकी पत्नी यहां से विधायक रहीं। सिद्धू इस सीट से सांसद भी बने। लेकिन इतने लंबे कार्यकाल के बाद भी वह यहां विकास का ऐसा कोई मॉडल नहीं बना पाए, जिसे पंजाब भर में उदाहरण के तौर पर दिखाया जाए। विकास की कोई योजना यहां नहीं है। जिससे यह पता चले कि सिद्धू विकास को लेकर गंभीर हैं। उनके विपक्षी यह आरोप लगाने लगे कि वह बोलते ज्यादा हैं, लेकिन जमीन पर काम नहीं करते हैं।
अब सिद्धू इस वक्त अपने सियासी जीवन के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। अपने विधानसभा क्षेत्र में उन्हें राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी चुनौती मिल रही है। बिक्रमजीत सिंह मजीठिया उनके सामने अकाली दल के उम्मीदवार हैं। उन्होंने जीतने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। इस सीट को अकाली दल ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। यह पहला मौका है, अपनी सीट से सिद्धू को इतनी जबरदस्त टक्कर मिली है।
पंजाब की सियासत में सीएम का चेहरा बदलने के बाद भी कांग्रेस की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। अचानक नवजोत सिंह सिद्धू ने प्रदेश कांग्रेस के प्रधान पद से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया है। जिस कुर्सी के लिए उन्होंने कैप्टन अमरिंदर तक से लड़ाई लड़ी और सब कुछ मिलने बाद उन्होंने अपनी कुर्सी छोड़ दी।
सिद्धू ने पंजाब मॉडल पर ही सारा फोक्स कर दिया। पार्टी ने यह माना कि इस मॉडल में किसी न किसी स्तर पर सिद्धू अपने राजनीति प्रतिद्वंद्वियों से निपटने की तैयारी कर रहे हैं। जबकि मजीठिया पर केस दर्ज कराने का उनका दांव उलटा पड़ चुका था। पार्टी के रणनीतिकार यह मान रहे थे कि पंजाब मॉडल सुनने में जितना अच्छ लगता है, उसे अमल में लाना इतना ही मुश्किल है। जबकि पार्टी यह भी जानती है कि यदि सिद्धू को सीएम फेस बना दिया तो वह हर हालत में पंजाब मांडल को लागू करने लिए पूरी ताकत लगा देंगे। इसलिए उन्हें सीएम पद से दूर रखा गया। पजाब मॉडल पर उनका ज्यादा बोलना भी निगेटिव माना गया।
पंजाबी ट्रिब्यून के पूर्व पत्रकार बलविंदर सिंह ने कहा कि कांग्रेस में मांगा नहीं जाता। जिसने मांग लिया, उसे वह नहीं मिलता। सिद्धू यह गलती कर बैठे। वह हर मौके पर सीएम पद की मांग करते रहे। जिससे पार्टी को लगा कि वह सीएम बनने के लिए ही इतना सक्रिय है, जबकि कांग्रेस जैसी पार्टी की सोच यह है कि जो विचार और सिद्धांत के साथ नेता का जुड़ाव होना चाहिए, न कि वह किसी पद के लालच में काम कर रहा हो।
जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सीएम पद छोड़ा तब तब नवजोत सिंह सिद्धू प्रदेशाध्यक्ष बन गए थे। वह सीएम पद के लिए प्रदेशाध्यक्ष का पद तक छोड़ने को तैयार हो गए थे। उन्होंने बोल दिया कि था कि उन्हें ही सीएम बनाया जाए। इससे पार्टी हाइकमान में यह संदेश गया कि वह सीएम पद को लेकर जल्दबाजी में हैं। जिससे उनकी सोच और काम करने के तरीके पर सवाल उठा। यह वह बड़ा प्वाइंट था, जिसमें चन्नी सिद्धू से आगे निकल गए। चन्नी की सिद्धू पर यह बढ़त अभी तक बरकरार है।
सिद्धू की पत्नी डॉ. नवजोत कौर सिद्धू ने बयान दिया कि वह और सिद्धू हर माह लाखों रुपए कमाते थे। राजनीति में आने के बाद उनका नुकसान हो रहा है। यदि राजनीति में सफल नहीं हुए तो अपने-अपने प्रोफेशन में वापस चले जाएंगे। इस बयान को भी सिद्धू के लिए निगेटिव के तौर पर लिया गया।
कांग्रेस में यह कल्चर बन रही है कि विपक्ष पर हमला करते वक्त हलके शब्दों का इस्तेमाल ना किया जाए। सिद्धू विपक्ष खासतौर पर बिक्रमजीत सिंह मजीठिया पर बोलते हुए बहुत ही आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं। पंजाब में उनका इस बात को लेकर खासा विरोध भी हो रहा है। इसके बाद भी सिद्धू अपनी भाषा और शब्द चयन को लेकर गंभीर नहीं हुए।
अकाली दल की पिछले विधानसभा में 15 सीट थी। यह उनका अभी तक का सबसे कमजोर प्रदर्शन रहा। इस बार भी अकाली दल की स्थिति कोई खास मजबूत नहीं थी। लेकिन सिद्धू ने अकाली दल का जिस तरह से टारर्गेट करना शुरू किया, इससे अकाली दल के साथ मतदाता जुड़ता चला गया। दूसरी ओर कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई। सिद्धू यह तथ्य समझ नहीं पाए। वह लगातार अकाली दल पर आक्रामक रहे।