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अंग्रेजों ने भगत सिंह को कुछ यूं किया था टॉर्चर? आजादी के जश्न में वायरल हुई ये तस्वीर, जानें पूरा सच
फैक्ट चेक डेस्क. Bhagat singh fake photo: भारत अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। आज के दिन देश में लोग आजादी के लिए कुर्बानी देने देश के वीर जवानों और शहीदों को याद कर रहे हैं। इस बीच सोशल मीडिया पर एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर वायरल हो रही है। तस्वीर में दिख रहा है कि एक व्यक्ति के हाथ पैर रस्सी से बंधे हुए हैं और यूनिफॉर्म पहने एक व्यक्ति उसे कोड़े से मार रहा है। तस्वीर के साथ सोशल मीडिया यूजर्स का दावा है कि ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगत सिंह हैं जिन्हें कोड़े मारे जा रहे हैं। हालांकि इतिहास में कही भी भगत सिंह की गिरफ्तारी या पकड़े जाने का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता। ऐसे में वायरल तस्वीर कई सवाल उठाती है। ये घटना कब की है और कहां की है? ऐसी वीभत्स तस्वीर को एक फ्रीडम फाइटर के नाम क्यों वायरल किया जा रहा है?
तो फैक्ट चेक में आइए जानते हैं कि क्या वाकई कभी भगत सिंह अंग्रेजों के हत्थे चढ़े थे?
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74वें स्वतंत्रता दिवस पर देश के प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से देशवासियों के नाम संदेश दिया। इसके साथ ही देश में लॉकडाउन और कोरोना के बीच आजादी का दिन मनाया जा रहा है। लोगों के व्हाट्सएप मैसेज औऱ स्टेटस छाए हुए हैं। सोशल मीडिया पर लोग वीर जवानों को याद कर श्रद्धांजली और कृतज्ञगता जाहिर कर रहे हैं। आजादी के जश्न के बीच भगत सिंह के नाम ये तस्वीर भयंकर वायरल होने लगी।
वायरल पोस्ट क्या है?
ये मैसेज वॉट्सएप के अलावा फेसबुक पर भी शेयर किया जा रहा है. इस फोटो के एक कोने पर एक अखबार की कटिंग भी लगी है. तस्वीर के साथ हिंदी में लिखा है, “भगत सिंह जी की कोड़े से मार खाते हुए ये दुर्लभ फोटो कभी अखबार में छपी थी। और हमको पढ़ाया जाता है कि हमें आजादी नेहरू और गांधी ने दिलाई थी।”
फैक्ट चेक
गूगल पर इश वायरल तस्वीर को सर्च करने के बाद हमने पाया कि तस्वीर के साथ किया जा रहा दावा गलत है। तस्वीर में कोड़े की मार खाते हुए दिख रहा व्यक्ति भगत सिंह नहीं हैं। ये तस्वीर करीब 1919 में कसूर रेलवे स्टेशन (अब पाकिस्तान में) पर खींची गई थी। उस समय भगत सिंह सिर्फ 12 साल के थे और लाहौर के डीएवी स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे। 1920 से पहले भगत सिंह ने न तो स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था और न ही इससे पहले कभी अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार ही किया था।
कैसी की पड़ताल
रिवर्स इमेज सर्च की मदद से हमें एक ट्वीट मिला, जिसे 2018 में Kim A. Wagner ने पोस्ट किया था। ट्विटर बायो के मुताबिक, Wagner लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में ग्लोबल एंड इंपीरियल हिस्ट्री के प्रोफेसर हैं।
उन्होंने अपने इस ट्वीट में एक अन्य तस्वीर के साथ ये वायरल तस्वीर भी पोस्ट की है और लिखा है, “पंजाब के कसूर में सार्वजनिक रूप से सजा देने की ये दो तस्वीरें हैं, इन्हें भारत से ले जाकर बेंजामिन हॉरमन ने 1920 में प्रकाशित की थी। #अमृतसरनरसंहार।"
हमें बेंजामिन हॉरमन की किताब ‘अमृतसर एंड अवर ड्यूटी टू इंडिया’ का आर्काइव वर्जन मिला। इसके 120वें पेज पर वायरल फोटो छपी है, जिसका कैप्शन है, “भारत की एक और तस्वीर, जिसमें कसूर रेलवे स्टेशन पर सीढ़ी से बंधे हुए व्यक्ति को कोड़े मारे जा रहे हैं।” यहां भगत सिंह के नाम का कोई जिक्र नहीं है।
जबकि तस्वीर है तब 12 साल के थे भगत सिंह
भूपेंद्र हूजा के संपादन में छपी भगत सिंह की किताब “द जेल नोटबुक एंड अदर राइटिंग्स” के मुताबिक, 1919 में भगत सिंह सिर्फ 12 साल के थे और लाहौर के डीएवी स्कूल में पढ़ रहे थे।
अप्रैल, 1919 में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा हजारों निहत्थे भारतीयों की हत्या करने वाले जलियांवाला बाग नरसंहार के कुछ ही दिन बाद भगत सिंह वहां गए थे। 1919 में ब्रिटिश सैनिकों ने भगत सिंह को गिरफ्तार किया हो या उन्हें सार्वजनिक तौर पर सजा दी हो, इस बारे में कोई जानकारी इस किताब में नहीं है।
भारत सरकार की ओर से प्रकाशित किताब “Dictionary of Martyrs. India’s freedom struggle (1857-1947)” के मुताबिक, भगत सिंह स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से 1920 में शामिल हुए।
ये निकला नतीजा
हालांकि, हम ये पता नहीं कर सके कि वायरल तस्वीर में जिसे सजा दी जा रही है, वह व्यक्ति कौन है, लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर ये जरूर कहा जा सकता है कि ये तस्वीर भगत सिंह की नहीं है। सोशल मीडिया पर ऐसी सैकड़ों तस्वीरें इतिहास के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करके वायरल की जाती रही हैं। फेक खबरों और तस्वीरों को साझा करने से बचना चाहिए। जिन दावों पर शक हो आप खुद गूगल पर सर्च कर उनकी सच्चाई जान सकते हैं।