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Kerala Election:यहीं से कम्युनिस्ट का सूर्योदय हुआ था, जानिए कांग्रेस की लेफ्ट से दोस्ती और दुश्मनी की कहानी
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केरल विधानसभा की 140 सीटों के लिए 6 अप्रैल को वोटिंग होगी। 2016 के चुनाव में यहां वामदलों की अगुवाई वाले एलडीएफ ने सत्ता बनाई थी। माना जाता है कि ज्यादातर हर 5 साल में केरल में सत्ता बदल जाती है। इन पांच सालों में केरल के बाहर कांग्रेस और वामदलों के बीच दोस्ती बढ़ी है। लेकिन केरल में अलग-अलग चुनाव लड़ रहे। केरल ही देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने कम्युनिस्ट विचारधारा को फलने-फूलने में मदद की। एलमकुलम मनक्कल शंकरन यानी EMS नंबूदरीपाद देश के पहले सबसे बड़े कम्युनिस्ट नेता थे। इनका जन्म जन्म 13 जून 1909 को केरल के मलप्पुरम जिले में हुआ था।
नंबूदरीपाद का प्रभाव इतना बढ़ने लगा था कि केंद्र सरकार उनसे डरने लगी थी। लिहाजा 1959 में जवाहरलाल नेहरू ने संविधान की धारा 356 का इस्तेमाल करके उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया था। हालांकि 1967 में नंबूदरीपाद दूसरी बार केरल के मुख्यमंत्री बने। हालांकि वे इस बार भी 2 साल ही मुख्यमंत्री रह पाए।
पहले बात करते हैं केरल के पहले कम्यूनिस्ट मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद के बारे में। इनका नाम इतिहास में शिक्षा सुधारों(Education reforms) और जमींदारी प्रथा को बंद कराने के लिए दर्ज है। नंबूदरीपाद 5 अप्रैल, 1957 को केरल के मुख्यमंत्री बने थे।कहने को नंबूदरीपाद ब्राह्मण थे, लेकिन वे जाति प्रथा के हमेशा खिलाफ रहे। उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत ही जाति प्रथा के खिलाफ आंदोलन से की थी।
नंबूदरीपाद ने 1948 में 'केरला : मलयालीकालुडे मातृभूमि' नाम से एक किताब लिखी थी। इसमें उन्होंने उल्लेख किया था कि कैसे समाज में ऊंची जातियां हावी हैं। चीजों के उत्पादन-मार्केट पर कैसे ऊंची जाति के जमींदार बैठे हैं। उनकी नजर में केरल के पिछड़ेपन का यह प्रमुख कारण था। नंबूदरीपाद ने 1952 में 'द नेशनल क्वेश्चन इन केरला' में भी जाति प्रथा का उल्लेख किया था। नंबूदरीपाद पहले ऐसा नेता थे, जिन्होंने भाषा को राष्ट्रीय एकता से जोड़कर देखा। भारत में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को लेकर जो आंदोलन शुरू हुए, उनमें नंबूदरीपाद की अहम भूमिका रही।
नंबूदरीपाद किसान और समाजवादी आंदोलनों के सूत्रधार थे। जब वे बीए की पढ़ाई कर रहे थे, तब 1932 में 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' चल रहा था। वे उससे जुड़ गए। अंग्रेजों ने उन्हें तीन साल के लिए जेल पहुंचा दिया। हालांकि 1933 में रिहा कर दिया गया।
अगर केरल के राजनीतिक इतिहास की बात करें, तो 1980 के बाद किसी भी राजनीतिक दल को दूसरी बार सरकार बनाने का मौका नहीं मिला। पिछले चुनाव में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) ने 71 सीटें हासिल की थीं। इस बार कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ पूरी जोर आजमाइश कर रही है, ताकि 40 साल पुराना रिकॉर्ड न टूट पाए। समस्या यह है कि कांग्रेस वामपंथी सरकार की खुलकर बुराई भी नहीं कर सकती, क्योंकि कुछ राज्यों में उसका गठबंधन है। खैर नंबूदरीपाद के रोपे गए कम्युनिस्ट के पौधे का आगे क्या हाल होता है, यह वक्त बताएगा।
(अपनी फैमिली के साथ नंबूदरीपाद)