जल्लीकट्टू: सांडों और इंसानों के बीच 2000 साल से खेला जा रहा यह मौत का खेल
दिल दहलाने वाला मौत का यह खेल तमिलनाडु में एक प्राचीन परंपरा है। यह 2000 साल से खेला जा रहा है। इस खेल में भीड़ बेकाबू और गुस्सैल सांडों को पकड़कर उन्हें गिराने की कोशिश करते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद इस खेल पर पाबंदी नहीं लग पाई है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोकने की कोशिश की, तो सरकार ने जनता के आगे झुककर इसे फिर से चालू करा दिया। बता दें कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जल्लीकट्टू देखने तमिलनाडु पहुंचे हैं। जानिए खेल के बारे में...
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जल्लीकट्टू को तमिलाडु के गौरव और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। इस खेल में हजारों सांडों को मैदान में लड़ाई के लिए उतारा जाता है। भीड़ उनसे भिड़ती है। सांडों को पकड़कर रखने का यह खेल बेहद खतरनाक होता है
यह नवंबर, 2020 में रिलीज हुई मलयालम फिल्म Jallikattu का पोस्टर है।
वर्ष, 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जानवरों की सुरक्षा के लिए काम करने वाली संस्था पेटा की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जल्लीकट्टू के खेल पर रोक लगा दी थी। इसके विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए थे। तब सरकार ने एक अध्यादेश लाकर इसके आयोजन को स्वीकृति दे दी थी।
पिछले जल्ल्लीकट्टू के खेल में तमिलनाडु में करीब 2000 सांडों को शामिल किया गया था। वैसे तो इस खेल में 21 साल से कम उम्र के लोगों को शामिल होने की अनुमति नहीं है। फिर भी लोग शामिल हो जाते हैं।
तमिल भाषाविदों की मानें, तो 'जल्ली' शब्द 'सल्ली' से बना है। इसके मायने होते हैं 'सिक्का' और कट्टू का अर्थ 'बांधा हुआ' होता है। 'जल्लीकट्टू' में सांडों के सींग पर कपड़ा बांधा जाता है। जो खिलाड़ी लंबे समय तक सींग पकड़े रखता है और कपड़े को निकाल लेता है, वो विजेता होता है।
अगर प्राचीन युग की बात करें, तो जल्लीकट्टू को एरूथाजहूवुथल नाम दिया गया है। इसका अर्थ होता है सांड को गले लगाना। मंजू विराट्टू नाम से भी इसका वर्णन मिलता है। इसका मतलब होता है सांड का पीछा करना।
माना जाता है कि जल्लीकट्टू खेल का आरंभ तमिल शास्त्रीय काल यानी 400-100 ईपूर्व हुआ। इस खेल की शुरुआत तमिल प्रांत के मुल्लै नामक इलाके में रहने वाले अय्यर लोगों ने की थी।
केंद्र सरकार ने 7 जनवरी, 2017 में जल्लीकट्टू महोत्सव पर लगी रोक हटा दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इसे स्टे मिल गया था।
तमिलनाडु की संस्कृति में जल्लकट्टू की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस पर कई फिल्में बनीं। जैसे- वीरूमांडी,मुरट्टू काली, करान पांडियन,मिरूगम, इल्मी, कन्नी पररूवाथिले आदि।
(फोटो सोर्स-गूगल)