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22 साल का ये बॉक्सर जीत चुका है गोल्ड मैडल, अब हाथ में फावड़ा लेकर खेतों में बहा रहा पसीना
नई दिल्ली. कोरोना वायरस से इस समय पूरे देश में लॉकडाउन जारी है। उद्योग-धंधे, प्रतिष्ठान, शैक्षिक संस्थान सभी बंद हैं। ऐसे में लोगों की दिनचर्या पर इस लॉकडाउन का खासा प्रभाव पड़ा है। नागपुर के बुलधाना इलाके में रहने वाले भारत के लिए बॉक्सिंग में गोल्ड जीत चुके मशहूर बॉक्सर अनंत चोपाड़े इन दिनों खेत में पसीना बना रहा हैं। अनंत चोपाड़े के पिता भी एक खेतिहर मजदूर रहे हैं। परिवार के गुजारे का एक मात्र साधन खेती ही है।
| Published : May 29 2020, 06:18 PM IST
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अनंत चोपाड़े के दिन अपने 2 एकड़ के खेत में पसीना बहाते हुए निकल जाता है। बुलधाना के सावना गांव में 22 साल का यह युवा हाथ में फावड़ा लिए पूरा दिन मेहनत करता है। अगर कोरोनावायरस के चलते सब कुछ बंद नहीं होता तो अनंत भी इस समय पटियाला में राष्ट्रीय टीम के अपने साथियों के साथ प्रैक्टिस कर रहे होते। लेकिन कोरोना महामारी ने सब कुछ थाम दिया है।
अनंत चोपाड़े ने 2019 में इंडोनेशिया में हुए प्रेजिडेंट कप में 52 किलोग्राम भारवर्ग में गोल्ड मेडल जीता था। अनंत ने मीडिया से कहा 'मैं दो महीने से अधिक वक्त से खेत में काम कर रहा हूं। जबसे मैंने जूनियर में खेलना शुरू किया तब से लेकर अब तक मैं इतना अधिक समय बॉक्सिंग रिंग से दूर नहीं रहा हूं । बॉक्सिंग जल्द शुरू होनी चाहिए।'
अनंत को खेत में मेहनत करने से कोई गुरेज है । दो भाइयों में छोटे अनंत करीब एक दशक से अपने परिवार को मुश्किल में देख रहे हैं। हालांकि उनके परिवार के पास एक खेत है लेकिन उससे होने वाली कमाई इतनी नहीं कि परिवार का लालन पालन हो सके। उनके पिता प्रह्लाद और मां कुशिवार्ता ने खेतिहर मजदूर की तरह काम किया है। उनका भाई ऑटो-रिक्शा चलाता है ताकि किसी तरह परिवार का गुजारा चल सके।
परिवार की किस्मत तब पलटी जब अनंत ने बॉक्सिंग की दुनिया में नाम कमाना शुरू किया। अनंत चोपाड़े के बॉक्सिंग चैम्पियन बनने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति में काफी हद तक सुधार हुआ। अनंत, पिछले चाल से नैशनल कैंप का हिस्सा हैं। 2018 में उन्हें रेलवे में जॉब मिल गई। बॉक्सिंग के चलते अनंत काफी समय अपने गांव से दूर ही रहते हैं।
अनंत कहते हैं मुझे याद है कि रेलवे की नौकरी ने कैसे मेरी जिंदगी को बदल दिया। उन्होंने कहा, 'जिस दिन मुझे रेलवे में नौकरी मिली मैंने अपने माता-पिता को दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने के लिए मना कर दिया। अब वे सिर्फ हमारे खेत में काम करते हैं। सिर पर टोकरी रखकर मेरे पिता गांव में सब्जियां और खेत में पैदा होने वाली अन्य चीजें बेचते हैं।'
अनंत कहते हैं, 'पहले मेरे परिवार के पास जमीन का यह टुकड़ा था और कमाई का कोई दूसरा जरिया नहीं था। हमारी सारी जद्दोजेहद 'दो वक्त के खाने' तक थी। लेकिन जब मुझे नौकरी मिल गई और मैं भारत के लिए खेला, अब पूरे गांव को मुझ पर गर्व है। हमें लोग पहचानते हैं। लोग मेरे माता-पिता को इज्जत से पेश आते हैं।'
अनंत के माता-पिता चाहते थे कि उनके बच्चों की अच्छी नौकरी लग जाए लेकिन पैसों की कमी के कारण वह बड़े बेटे को कॉलेज नहीं भेज पाए। अनंत कहते हैं, 'मेरे पिता चाहते थे कि मेरे सरकारी नौकरी लग जाए। चूंकि मैं खेल में काफी ऐक्टिव था तो मेरे कस्बे के एक स्पोर्ट्स टीचर ने 2008 में मेरे माता-पिता को मुझे अकोला की बॉक्सिंग अकादमी भेजने की सलाह दी।' उनके माता-पिता राजी हो गए। अनंत 11 साल अकादमी में रहे। उनके इस फैसले को अनंत ने अपनी मेहनत से सही साबित किया है।