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जर्नलिज्म का शौक छोड़ा..विदेश से पढ़ाई पूरी करके अच्छी खासी जॉब ठुकराई..अब आत्मनिर्भर होकर कमा रहीं लाखों
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बता दें कि गौतमी ने पुणे के एक प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट से जर्नलिज्म का कोर्स किया है। इसके बाद वे विदेश पढ़ने चली गईं। बहरहाल, इनका स्टार्टअप अचार-पापड़ से लेकर जैम, हर्बल साबुन, हर्बल चाय आदिस ऑनलाइन बेचता है।
गौतमी के सहयोगी सिद्धार्थ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। इसके बाद वे दिल्ली की थिंक टैंक नामक संस्थान से जुड़ गए। गौतमी और सिद्धार्थ अपने प्रदेश के लिए कुछ करना चाहते थे, इसलिए सब छोड़कर अपना स्टार्टअप शुरू कर दिया। आगे पढ़िए ऐसे ही सक्सेस युवाओं की कहानी...
यह हैं छत्तीसगढ़ के जशपुरनगर जिले के दुलदुला ब्लॉक के एक छोटे से गांव सिरिमकेला के रहने वाले अरविंद साय। MBA करने के बाद ये पुणे में एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहे थे। सैलरी अच्छी-खासी थी, लेकिन इन्हें आत्मनिर्भर बनना था। ये नौकरी छोड़कर गांव आए और खेती किसानी करने लगे। आज इनके साथ 20 लोगों की टीम है। सबका खर्चा निकालने के बाद अब ये डेढ़ करोड़ रुपए सालाना का टर्न ओवर हासिल कर चुके हैं। अरविंद ने अपने गांव के उन युवाओं को भी रोजगार दिया है, जिनके पास खेती नहीं है। वे मजदूरी करने गावं से बाहर जाते थे। आगे पढ़िए ऐसे ही सक्सेस किसानों की अन्य कहानियां...
पत्थर से निकाला सोना
हरियाणा के फतेहाबाद के किसान राहुल दहिया एक मिसाल है। जिस जमीन पर घास का तिनका तक नहीं उगता था, उस पर आज ये सेब, बादाम सहित 40 तरह के फल उगाकर खूब मुनाफ कमा रहे हैं। यही नहीं, इनके 14 एकड़ में फैले इस बाग ने 20 लोगों को रोजगार भी दिया हुआ है। दहमान गांव के रहने वाले राहुल ग्रेजुएट हैं। ये 16 साल पहले टेंट का कारोबार करते थे। लेकिन धंधा फ्लॉप हो गया। इनके पास 14 एकड़ जमीन है। लेकिन तब यह रेतीली और बेकार थी। इन्होंने इस पर बागवानी करने की ठानी। आज यह रेतीली जमीन सालाना करोड़ों रुपए का टर्न ओवर दे रही है। इस बाग के फलों की पंजाब और हरियाणा तक में डिमांड है। राहुल बताते हैं कि जमीन पर पानी का कोई इंतजाम नहीं था। शुरुआत में वे फेल हो गए। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। सबसे पहले उन्होंने अमरूद का बाग लगाया। जब इससे कमाई होने लगी, तब सेब, नासपाती,बादाम, अंगूर आदि के पौधे लगाए। राहुल बताते हैं कि शुरू में बागवानी के लिए पौधे नहीं मिलने पर करीब 8 साल तक नुकसान उठाया। फिर इन्होंने खुद ही नर्सरी तैयार कर ली। ये श्री बालाजी नर्सरी एवं फ्रूट फार्म के नाम से अपना कारोबार करते हैं। इसे राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड से मान्यता मिली हुई है। राहुल के बाग में 20 लोग स्थायी रोजगार पाए हुए हैं। वहीं 100 से ज्यादा लोग फल तोड़ने और उन्हें मंडियों तक ले जाने में जुड़े हुए हैं। आगे पढ़िए..लॉकडाउन में नौकरी गंवाकर लोग घर पर बैठ गए, इस कपल ने खड़ा कर दिया करोड़ों का बिजनेस
जयपुर, राजस्थान.लॉकडाउन के चलते हजारों लोगों को काम-धंधों से हाथ धोना पड़ा। लोगों के धंधे बैठ गए। लेकिन यह कपल कोरोनाकाल में भी सफलता के झंडे गाड़ गया। यह हैं नागौर के रहने वाले राजेंद्र लोरा और उनकी पत्नी चंद्रकांता। ये किसानों के लिए एक स्टार्टअप फ्रेशोकार्ट चलाते हैं। इसके तहत यह कपल किसानों को एग्री इनपुट जैसे-कीटनाशक, पेस्टीसाइड और अन्य प्रकार की दवाओं की होम डिलीवरी करता है। इस समय इस स्टार्टअप से 30 हजार से ज्यादा किसान जुड़े हैं। इस स्टार्टअप ने इस साल करीब 3 करोड़ रुपए का कारोबार किया है। राजेंद्र बताते हैं कि वे अकसर किसानों से मिलते थे, तो मालूम चलता था कि उन्हें फसलों-सब्जियों पर छिड़काव के लिए समय पर दवाएं नहीं मिल पाती थीं। इसी को ध्यान में रखकर उन्होंने यह ऑनलाइन प्लेटफार्म उपलब्ध कराया। आगे पढ़िए इन्हीं की कहानी..
राजेंद्र बताते हैं कि उन्होंने 4 साल पहले इस स्टार्टअप की शुरुआत की थी। उनकी पत्नी चंद्रकांत भी बराबर की इसमें में सहयोगी हैं। लॉकडाउन में उनका स्टार्टअप किसानों के लिए काफी मददगार रहा। राजेंद्र बताते हैं कि उनके पास करीब 45 लोगों की टीम है। यह टीम किसानों का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करती है। इसके बाद ऑनलाइन ऑर्डर मिलने पर किसानों को कीटनाशक आदि मुहैया करा दिए जाते हैं। आगे पढ़िए इन्हीं की कहानी..
राजेंद्र के इस स्टार्टअप से अभी 30 हजार से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं। इस साल उनके स्टार्टअप ने 3 करोड़ रुपए का बिजनेस किया है। आगे पढ़िए इन्हीं की कहानी..
कंपनी की ऑपरेशन हेड राजेंद्र की पत्नी चंद्रकांता हैं। वे बताती हैं कि उनकी कंपनी किसानों को 10 हजार रुपए तक फाइनेंस भी देती है। इस पर 12 फीसदी ब्याज लिया जाता है। वहीं कंपनी किसानों को मार्केट रेट से 5-10 फीसदी कम पर कीटनाशक मुहैया कराती है। आगे पढ़िए इन्हीं की कहानी..
राजेंद्र लोरा ने जबलपुर ट्रिपल आईटी से इंजीनियर किया हुआ है। उन्होंने 2 साल मुंबई में नौकरी भी की। लेकिन अपना कुछ करने का मन था, तो नौकरी छोड़ दी। उनकी पत्नी एमबीए-पीएचडी हैं। अब वे अपनी कंपनी की मार्केटिंग संभालती हैं।