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खत्म हो रहा कोरोना? मरीजों की कमी से वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता, वैक्सीन ट्रायल के लिए नहीं मिल रहे वॉलेंटियर
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ट्रायल के लिए लेना होगा संक्रमण का रिस्क
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के डायरेक्टर फ्रांसिस कोलिंस का कहना है कि यह अजब स्थिति है, अगर हम कोरोना हॉटस्पॉट में बचाव के तरीके अपनाकर संक्रमण घटा रहे हैं तो परीक्षण करना कठिन हो जाएगा।
ब्रिटेन के वारविक बिजनेस स्कूल की ड्रग एक्सपर्ट आयफर अली का कहना है कि लोगों का ट्रायल में शामिल होना जरूरी है, ऐसे में संक्रमण का रिस्क लेना होगा। अगर कोरोनावायरस अस्थायी तौर पर खत्म हो गया तो पूरी मेहनत व्यर्थ हो जाएगी। ऐसी स्थिति में ट्रायल उन क्षेत्रों में शिफ्ट करना होगा, जहां कम्युनिटी संक्रमण के मामले दिख रहे हैं, जैसे ब्राजील और मैक्सिको।
रोकना पड़ सकता है ट्रायल
प्रोफेसर कोलिंस के मुताबिक, अफ्रीका में कोरोना के मामले काफी बढ़ रहे हैं। हम वहां ट्रायल के लिए जा सकते हैं और नई जानकारी सामने ला सकते हैं। वैक्सीन तैयार करने वाले ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े जेनर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टहडर एड्रियन हिल का कहना है कि ट्रायल के लिए 10 हजार लोगों की जरूरत है।ब्रिटेन में मामले घटने के कारण पर्याप्त लोग नहीं मिले तो ट्रायल रोकना पड़ सकता है।
नहीं मिले वालंटियर तो करना पड़ेगा दूसरे देश का रूख
अमेरिकी कम्पनी मॉडर्मा और ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को दूसरे चरण का ट्रायल करना है। अमेरिका जुलाई में 20 हजार से 30 हजार लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल करेगा।
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के डायरेक्टर फ्रांसिस कोलिंस के मुताबिक, अगर यहां तेजी से मामले गिरते हैं तो ट्रायल के लिए दूसरे देशों का रुख करना होगा। अमेरिकी सरकार पहले भी अफ्रीका में एचआईवी, मलेरिया और टीबी की वैक्सीन का ट्रायल कर चुकी है।
'...मतलब दूसरे ग्रुप में वैक्सीन का असर हो रहा है।'
वैक्सीन ट्रायल में शामिल होने वाले लोगों को रेंडमली दो समूहों में बांटा जाता है- ट्रीटमेंट ग्रुप और कंट्रोल ग्रुप। ट्रीटमेंट ग्रुप पर वैक्सीन का ट्रायल होता है। कंट्रोल ग्रुप को सामान्य इलाज दिया जाता है। सभी प्रतिभागियों को कोरोना प्रभावित क्षेत्रों में भेजा जाता है।
इसके बाद इनमें संक्रमण होने की दर का मिलान किया जाता है। ट्रीटमेंट ग्रुप को वैक्सीन दी जाती है। अगर कंट्रोल ग्रुप में संक्रमण गंभीर रूप ले रहा है तो इसका मतलब है दूसरे ग्रुप में वैक्सीन का असर हो रहा है।
चीन में भी नहीं मिल रहे मरीज
चीन से भी तीन दिन पहले ऐसी ही खबर मिली थी कि वहां भी पर्याप्त संख्या में वॉलेंटियर नहीं मिल रहे। संभावना है कि टेस्टिंग के लिए पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक अफ्रीका और लेटिन अमेरिका जा सकते हैं।
इबोला वैक्सीन बनाने के दौरान भी नहीं मिल रहे थे मरीज
कोरोना के मामले ब्रिटेन, यूरोप और अमेरिका में अधिक थे, अब संक्रमण फैलने की दर गिर रही है। ट्रायल के लिए पर्याप्त मरीज नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसी ही स्थिति 2014 में इबोला के समय भी पश्चिमी अफ्रीका में बनी थी। वैक्सीन महामारी के अंतिम दौर में तैयार हुई थी और टेस्टिंग के लिए मरीज नहीं मिल रहे थे।
इन वैक्सीन का चल रहा ट्रायल
एम RNA वैक्सीन: अमेरिका की मॉडर्ना थेराप्युटिक्स बायोटेक्नोलॉजी कंपनी कोरोना की वैक्सीन बनाने में जुटी हुई है। कंपनी का मकसद है कि ऐसी वैक्सीन बनाई जाए, जो लोगों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगी। इससे कोरोना वायरस के खिलाफ शरीर को लड़ने की क्षमता मिलेगी और व्यक्ति कोरोना को हरा सकेगा।
इस वैक्सीन के ट्रायल के लिए अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने फंडिंग भी दी है। यह वैक्सीन मैसेंजर आरएनए पर आधारित है। वैज्ञानिकों ने जेनेटिक कोड तैयार किया है, इसका छोटा सा हिस्सा इंसान के शरीर में इंजेक्ट किया जाएगा। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कामयाब होंगे।
ChAdOx1 वैक्सीन: ब्रिटेन की ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट में एक वैक्सीन पर काम चल रहा है। इसे ChAdOx1 नाम दिया गया है। 23 अप्रैल को इसका ट्रायल शुरू हुआ है। इस वैक्सीन को बनाने वाले वैज्ञानिक चीनी कंपनी कैंसिनो बायोलॉजिक्स वाले फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस वैक्सीन से प्रोटीन प्रतिरोधक क्षमता सक्रिय होगी।