जिंदगी की तलाश में दर-ब-दर अफगान, काबुल है सबसे सुरक्षित ठौर लेकिन कबतक?
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28 साल की फरजिया, अभी एक हफ्ते पहले ही पति के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही थी। लेकिन सत्ता की भूख ने उसके जैसे न जाने कितने नागरिकों को शरणार्थी बना दिया है। कुछ दिन पहले ही उनके पति को तालिबानियों ने मार डाला था। अब वह अपने बच्चों, सुभान 5, और इस्माइल 2 के साथ शेयर-ए-नौ पार्क में एक अस्थायी शिविर में है।
60 वर्षीय ज़ूहरा काबुल में विस्थापित जीवन जी रही है। कुछ दिनों पहले उसकी बेटी को तालिबानी आतंकियों ने मार दिया था। जहूरा साठ साल की उम्र में दर-ब-दर हो रही। बेटी का फोटो ही अब उनका सहारा है।
बल्ख प्रांत के 70 वर्षीय चरयार परिवार के साथ विस्थापित जीवन जीने को मजबूर हैं। काबुल के मस्जिद और स्कूल व सड़क इनका आशियाना बना हुआ है।
तालिबान के आगे बढ़ने से विस्थापित लोग अपने प्रांतों पर तालिबान के कब्जे से बचने के लिए काबुल की राजधानी में पहुंच रहे हैं। उत्तरी प्रांतों से विस्थापित अफगान काबुल में शेयर-ए-नौ पार्क, मस्जिदों और स्कूलों में शरण लिए हुए हैं।
तालिबान द्वारा देश भर में आक्रामक तरीके से अफगान सीमा के शहर पर नियंत्रण करने के बाद चमन में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पार फंसे हुए अफगान नागरिकों की जांच करते हुए पाकिस्तानी सैनिक।
तालिबान और अफगान सुरक्षा बलों के बीच लड़ाई के कारण उत्तरी प्रांत से भागे आंतरिक रूप से विस्थापित अफगान परिवारों का इन दिनों काबुल ही सहारा। काबुल में वजीर अकबर खान मस्जिद में शरण लिए लोग।