सार
पांच साल की डिग्री पूरी कर बेटी पिछले साल वापस आ गई है। अब वह दिल्ली में अपने पेपर की तैयारी कर रही है। हरियाणा का यह ऐसा पहला परिवार नहीं है, बल्कि हजार परिवार ऐसे हैं, जो कम आमदनी होने के बाद भी अपने बच्चों का डॉक्टर बनने का सपना पूरा कर रहे हैं।
चंडीगढ़। यमुनानगर के मॉडल टाउन निवासी सुखदेव विज की सीमित आमदनी थी। उनकी बेटी डॉक्टर बनना चाहती थी। नीट की तैयारी की। दो साल कोचिंग ली। लेकिन, पास नहीं हो पाई। अब दो विकल्प थे। पहला- किसी निजी कॉलेज में दाखिला दिलाया जाए। जहां फीस बहुत ज्यादा थी। जो विज परिवार वहन नहीं कर सकता था। दूसरा विकल्प- विदेश था। विदेश में कहां? काफी खोजबीन करने के बाद पता चला कि यूक्रेन में मेडिकल की डिग्री का खर्च बहुत कम है। इतना कि वह आसानी से उठा सकते हैं। बस फिर क्या था, तुरंत बेटी को यूक्रेन भेज दिया।
पांच साल की डिग्री पूरी कर बेटी पिछले साल वापस आ गई है। अब वह दिल्ली में अपने पेपर की तैयारी कर रही है। हरियाणा का यह ऐसा पहला परिवार नहीं है, बल्कि हजार परिवार ऐसे हैं, जो कम आमदनी होने के बाद भी अपने बच्चों का डॉक्टर बनने का सपना पूरा कर रहे हैं। ऐसे अभिभावकों ने एशियानेट न्यूज हिंदी को बताया कि सबसे बड़ी वजह है- फीस बहुत ही कम है, जिसे आसानी से अफोर्ड किया जा सकता है। हालांकि इसके स्पष्ट आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं कि हरियाणा से कितने बच्चें यूक्रेन में पढ़ने के लिए गए हैं।
भारत में सामान्य परिवार का बच्चा डॉक्टर बनने की नहीं सोच सकता
एक मोटे से अनुमान के मुताबिक इस साल 2300 छात्र यूक्रेन में गए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा करनाल जिले से गए हैं। यहां से करीब 680 छात्र इस साल यूक्रेन गए हैं। मेवात से 23, कुरुक्षेत्र से 25 अंबाला से 11 बच्चे यूक्रेन गए हैं। एक तथ्य यह भी सामने आया कि यूक्रेन जाने वाले बच्चों में 60 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे ग्रामीण परिवेश से हैं। यूक्रेन से एमबीबीएस की डिग्री लेकर पंचकूला में निजी प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टर कमल किशोर चानना ने बताया कि भारत में पढ़ने में औसतन और सामान्य परिवार का बच्चा डॉक्टर बनने की सोच भी नहीं सकता है। इसके विपरीत यूक्रेन में ऐसे छात्रों के लिए संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं। हमने हरियाणा आैर पंजाब के उन छात्रों से बातचीत की, जो वहां पढ़-कर आ चुके हैं और कुछ वहां पढ़ भी रहे हैं।
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तो क्या वजह है छात्र यूक्रेन को मेडिकल की पढ़ाई के लिए चुन रहे हैं?
1. फीस
फीस 25 से 30 लाख रुपए फीस लगती है। किसी तरह के छुपे हुए चार्ज नहीं लिए जाते हैं। इसके विपरीत भारत में 50 लाख से लेकर 70 लाख रुपए तो फीस एक नंबर में ली जाती है। इसके बाद डोनेशन और छुपे हुए चार्ज के नाम पर पांच से सात लाख रुपए ले लिए जाते हैं। यदि यह पैसा नहीं देते तो डिग्री में दिक्कत की जाती है। छात्रों ने बताया कि 30 लाख रुपए तक की फीस अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए कोई भी अभिभावक वहन कर सकता है।
2. शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर है
कुरुक्षेत्र जिले के बाबैन कस्बा निवासी विकास सैनी यूक्रेन से एमबीबीएस की डिग्री करके आया है, उसका कहना है कि वहां पढ़ाई की गुणवत्ता काफी अच्छी है। प्रैक्टिकल पर ज्यादा जोर या जाता है। जिससे सीखने का ज्यादा मौका मिलता है। उसने बताया कि भारत की तुलना में यूक्रेन में एमबीबीएस करना थोड़ा आसान है, लेकिन वहां हम ज्यादा और बेहतर सीखते हैं। क्योंकि वहां प्रैक्टिकल पर जोर दिया जाता है। यूक्रेन के कालेज को पता है कि यदि वहां से बेहतर डॉक्टर निकलेंगे तो उनकी प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। इसलिए वहां शिक्षा से समझौता नहीं होता।
3. डब्ल्यूएचओ भी मान्यता देता है
वहां पढ़ने में कोई धोखाधड़ी नहीं है। यहां तक कि डब्ल्यूएचओ भी यूक्रेन की ड्रिगी को मान्यता देता है। भारत में भी इसकी मान्यता है। यूक्रेन में डिग्री के बाद इंडियन मेडिकल काउंसिल का पेपर पास करना होता है। इसी तरह से अलग अलग देशों में वहां की मेडिकल एसोसिएशन एक एक टेटस है, इस टेस्ट पास करने के बाद उस देश में आसानी से प्रैक्टिस की जा सकती है। इसलिए एक विश्वास भी बना रहता है कि वहां से डिग्री लेने में कोई दिक्कत नहीं है।
4. सुरक्षित भविष्य की उम्मीद
क्योंकि ऐसे परिवारों को लगता है कि एक बार वहां से डिग्री मिल गई तो बच्चे का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा। 30 से 35 लाख रुपए लगाने के बाद बच्चा यदि डॉक्टर बन जाता है तो इसे अभिभावक बहुत ही ठीक मानते हैं। इनका कहना है कि इससे बेहतर और हो भी क्या सकता है। क्योंकि डॉक्टर के लिए जॉब की कोई समस्या नहीं है। एक अभिभावक तो यहां तक कहते हैं कि इससे ज्यादा तो प्रदेश में छोटी-सी सरकारी नौकरी के लिए रिश्वत देनी पड़ जाती है। फिर भी हर वक्त डर बना रहता है। इतना खर्च करने के बाद यदि बच्चा डॉक्टर बन जाता है तो समझो उसका भविष्य तो सुरक्षित हो गया।
5. सामाजिक रुतबे के लिए
विदेश भेजने का काम करने वाले चंडीगढ़ निवासी रवि शर्मा ने बताया कि कुछ लोग विदेश में डॉक्टर की डिग्री को सामाजिक प्रतिष्ठा से भी जोड़ कर देखा जाता है। गांव में खासतौर पर ऐसे युवाओं की शादी बड़ी धूमधाम से हो जाती है। खासतौर पर बड़े किसान जिनके बच्चे यहां पढ़ने में बहुत ज्यादा होशियार नहीं है, वह भी अपने बच्चों को यूक्रेन भेज देते हैं। इस तरह के बच्चे यदि भारत आकर काउंसिल का पेपर क्लियर नहीं भी कर पाते तो भी वह डॉक्टर के तौर पर गांव में पहचाने जाते हैं। वह गांव या छोटे कस्बे में प्रैक्टिस करना भी शुरू कर देते हैं।
6. बच्चे वापस आएंगे ही
यूक्रेन में बच्चे सेटल नहीं होते। उन्हें डिग्री पूरी होने के बाद वापस आना होता है। इसलिए वह अभिभावक जो डरते हैं कि उनका बच्चा विदेश जाकर वापस ही न आए। उनके लिए भी यूक्रेन बेहतर विकल्प है। यूक्रेन में वर्क वीजा की संभावनाएं कम है। इसके विपरीत आस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनेडा आदि में जो बच्चें जाते हैं, वह यह सोच कर जाते हैं कि पढ़े या न पढे़, वहां जाकर काम करना है। उनकी प्राथमिकता वापस आने की नहीं होती। यूक्रेन में बसने के प्रति युवाओं में क्रेज कम है।
7. सुरक्षित मानते थे, इसलिए अभिभावक लड़कियों को वहां भेज देते हैं
यूक्रेन के प्रति यहां के अभिभावकों की धारणा रहती है कि वह अपेक्षाकृत सुरक्षित देश है। वहां लड़कियों को किसी तरह की दिक्कत नहीं है। वह पढ़ने के बाद भी वापस भी आ जाएगी। इस तरह की सोच के चलते यूक्रेन में अभिभावक अपनी लड़कियों को भेजने के प्रति उत्साहित रहते हैं।