सार

देश की आजादी के 75 साल पूरे हो चुके हैं। इस अवसर पर एशियानेट हिंदी आजादी से जुड़ी हुई कहानियां आप तक लेकर आ रहा है। आज हम आपको आजादी के नायक शेरे-ए-पंजाब लाला लाजपत राय के बारे में बताएं, जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। 

नई दिल्ली। भारत अपनी आजादी का 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। यह अवसर हर भारतीय के लिए खास है, लेकिन यह आजादी हमें यूं ही नहीं मिली। इसके लिए लाखों लोगों ने अपना सर्वस्य न्योछावर कर दिया। आज हम आपको आजादी के नायक कहे जाने वाले शेरे-ए-पंजाब लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) के बारे में बता रहे हैं।

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के मोगा जिले में हुआ था। उनके पिता मुंशी राधा कृष्ण आजाद फारसी और उर्दू के महान विद्वान थे और माता गुलाब देवी धार्मिक महिला थीं। बचपन से ही लाला लाजपत राय को लिखने और पढ़ने में रुचि थी। लालाजी ने स्कूल शिक्षा प्राप्त करने के बाद लाहौर के ‘राजकीय कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। इसके बाद लाला जी ने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार में वकालत की। इन्हें शेर-ए-पंजाब और पंजाब केसरी के नाम से जाना जाता था।

अंग्रेजों से सहायता न मिलने पर शुरू की बगावत
1897 और 1899 में देश में अकाल पड़ गया था। इस दौरान लालाजी ने पीड़ितों की पूरे लगन के साथ सेवा की। अकाल के समय ब्रिटिश शासन ने कुछ नहीं किया। लालाजी ने  स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर शिविर लगाए और लोगों की मदद की। इसके अलावा 1897 में हिंदू राहत आंदोलन की स्थापना की। इतिहासकारों का कहना है कि इसके बाद से ही लालाजी ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू कर दी थी।
 
तिलक और बिपिन चंद्र से हाथ मिलाकर हराम की अंग्रेजों की नींद
अंग्रेजी हूकूमत ने 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो पूरा देश तिलमिला उठा। इसके बाद लालाजी ने बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया। आगे चलकर इसी तिकड़ी को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना गया। इस तिकड़ी ने ब्रिटिश शासन की नाक में दम कर दिया। इस तिकड़ी को पूरे देश से जनसमर्थन मिला था, जिसने अंग्रेजों की नींद हराम कर दी। इस तिकड़ी ने ब्रिटेन में बने समानों का बहिष्कार और व्यावसायिक संस्थाओं में हड़ताल के माध्यम से ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। 

अमेरिका में रहकर स्वाधीनता आंदोलन में फूंकी जान
लाला लाजपत राय ने 1917 में अमेरिका में होम रूल लीग ऑफ अमेरिका (Home Rule League of America) की स्थापना की और इसके द्वारा अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय  समुदाय से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिये नैतिक समर्थन मांगा और वहां से स्वाधीनता की चिंगारी को लगातार हवा देते रहे। 1920 में वह भारत वापस आए, लेकिन तब तक लालाजी एक नायक के रूप में उभर चुके थे। इसी साल लालाजी ने कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ लालाजी ने विरोध प्रदर्शन किया। 

साइमन कमीशन का किया था जमकर विरोध
1919 के अधिनियम की समीक्षा करने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने 1927 में एक आयोग का गठन किया। इसके अध्यक्ष जॉन साइमन थे, जिसके चलते इसे साइमन आयोग कहा गया। यह आयोग सात सदस्यीय था, इसमें एक भी भारतीय नहीं था। यह आयोग 1928 को भारत पहुंचा। आयोग का पूरे देश में जमकर विरोध हुआ। चौरी-चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था, जिसके बाद से आजादी के आंलोदन में ठहराव सा आ चुका था। साइमन कमीशन के विरोध में लोग एक बार फिर से सड़कों पर निकलने लगे और देखते ही देखते पूरा देश "साइमन गो बैक' के नारों से गूंज उठा। लालाजी ने पंजाब में इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। इस कमीशन का लालाजी ने जमकर विरोध किया। 

अंग्रेजों की लाठी खाकर भी नहीं हटे पीछे, हुए शहीद
30 अक्टूबर को साइमन कमीशन लाहौर पहुंचा। इसके विरोध में क्रांतिकारियों ने 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। इसका नेतृत्व पंजाब केसरी लाला लाजपत राय कर रहे थे। प्रदर्शन में भाग लेने के लिए जन सैलाब उमड़ा था, जिसे देखकर अंग्रेज बौखला गए। अंग्रेज अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चलाने का आदेश दे दिया। लालाजी लाठी से डरे नहीं और जमकर उनका सामना किया। हालांकि इस लाठीचार्ज में वह गंभीर रूप से घायल हो गए और शहीद हो गए। 

लाठी का हर प्रहार ब्रिटिश साम्राज्य की ताबूत पर अंतिम कील साबित होगा
अपनी मौत से पहले लालाजी ने कहा था कि मेरे ऊपर किए गए लाठी का हर प्रहार ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत पर अंतिम कील साबित होगा। लाला लाजपत राय की मौत के बाद पूरा देश व्याकुल हो उठा था। लोग सड़कों पर निकल आए थे। लालाजी के मौत पर महात्मा गांधी ने कहा था कि भारतीय सौरमंडल से एक सितारा डूब गया। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने मिलकर लालाजी की हत्या के जिम्मेदार अंग्रेज अधिकारी स्कॉट को मारने की योजना बनाई। 17 दिसंबर 1928 को इन लोगों ने पहचान में गलती होने के चलते जॉन पी सॉन्डर्स को गोली मार दी। बाद में सॉन्डर्स की हत्या के मामले में राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।

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लालाजी ने यंग इंडिया समेत कई किताबें लिखी
लालाजी ने आजादी के आंदोलन में जान फूंकने के लिए कई किताबें लिखी थी। इनमें यंग इंडिया, इंग्लैंड डेब्ट टू इंडिया,  एवोल्यूशन ऑफ जापान, इंडिया विल टू फ्रीडम, भगवद् गीता का संदेश, भारत का राजनीतिक भविष्य, भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या, डिप्रेस्ड ग्लासेस और अमेरिका की यात्रा वृतांत शामिल हैं।