सार

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला ने बड़ी भूमिका निभाई थी। बिरला ऐसे उद्योगपति थे, जिन्होंने राष्ट्र के लिए तन, मन और धन न्योछावर कर दिए। घनश्याम दास बिरला भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पोषक की भूमिका में रहे।
 

नई दिल्ली. यब सवाल बार-बार उठता है कि क्या भारत के अमीर व्यापारियों ने स्वतंत्रता संग्राम में मदद की? कहा जाता है कि बहुतों ने नहीं किया। फिर भी कुछ प्रमुख उद्योगपतियों ने राष्ट्रीय आंदोलन और महात्मा गांधी के साथ मिलकर काम किया। इनमें घनश्याम दास बिरला और जमनालाल बजाज प्रमुख व्यक्ति थे। आंदोलन में भाग लेने और वित्त पोषण के अलावा उन्होंने आधुनिक उद्योग स्थापित करके, बड़ी संख्या में भारतीयों को आजीविका देकर राष्ट्रवाद को ताकत प्रदान की।

कौन थे घनश्याम दास बिरला
19वीं सदी के मध्य में बिरला परिवार राजस्थान के झुंझुनू के पिलानी गांव से मुंबई आ गया था। उन्होंने कपास, चांदी, अनाज आदि का व्यापार शुरू किया। बाद में चीन के साथ अफीम का व्यापार शुरू किया और खूब धन कमाया। उस समय का वह सबसे आकर्षक व्यवसाय था। घनश्यामदास इस परिवार की तीसरी पीढ़ी के थे। व्यापार उनके खून में था। घनश्यामदास 11 साल की उम्र में स्कूली शिक्षा बंद कर अपने पिता के व्यवसाय में कूद गए। वह कलकत्ता चले गए और 1918 में जूट मिल का पहला व्यवसाय स्थापित किया। 29 वर्षीय बिरला ने भारत के ब्रिटिश और स्कॉट्स द्वारा एकाधिकार वाले व्यवसाय में प्रवेश किया जिसका बड़ा विरोध हुआ। लेकिन घनश्यामदास नहीं माने।

विदेशियों के तरीके से नाराजगी
विदेशी व्यापारियों के शत्रुतापूर्ण तरीकों ने घनश्यामदास में राष्ट्रवादी भावना को जगाया। वह महात्मा गांधी से मिले जो उस वक्त दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे और राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने वाले थे। इस मुलाकात से गांधीजी और घनश्यामदास बिरला के बीच आजीवन जुड़ाव और मित्रता बनी रही। घनश्यामदास तब भी नहीं झुके क्योंकि गांधी के करीब होना बेहद खतरनाक था। कुछ मुद्दों पर उनके साथ गंभीर मतभेद होने के बावजूद वे गांधीजी के सबसे बड़े वित्तीय समर्थक बने रहे। वे 1926 में केंद्रीय विधानसभा के सदस्य बने और 1932 में गांधीजी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक समाज के अध्यक्ष भी बने। उन्होंने कुछ समय के लिए गांधीजी की हरिजन पत्रिका का संपादन भी किया। घनश्यामदास बिरला ने राष्ट्रवादी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स को संभाला और आगे बढ़ाया।

भारत छोड़ो आंदोलन
1940 के दशक में भारत छोड़ो आंदोलन ने देश को हिलाकर रख दिया था। उसमें घनश्यामदास बड़े भागीदार थे। 1942 में कलकत्ता में हिंदुस्तान मोटर्स को भारतीय कार का निर्माण करना था। हिंदुस्तान मोटर्स द्वारा निर्मित एंबेसडर कार भारतीय पहचान का गौरवपूर्ण प्रतीक बन गई। अगले वर्ष घनश्याम दास ने यूनाइटेड कमर्शियल बैंक नामक बैंक की स्थापना की जो अब राष्ट्रीयकृत यूको बैंक है। स्वतंत्रता के बाद घनश्यामदास का व्यापारिक साम्राज्य तेजी से बढ़ा और उन्होंने पिलानी में अपने पैतृक गांव में बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना की। जिसे अब बिट्स पिलानी के नाम से जाना जाता है। वह भारतीय कॉरपोरेट्स के सबसे बड़े निकाय फिक्की के संस्थापक भी थे। वे हमेशा गांधीजी के सक्षम समर्थक रहे। महात्मा ने अपने अंतिम तीन महीने घनश्यामदास के दिल्ली निवास बिरला हाउस में बिताए। वहीं 30 जनवरी 1948 को उनकी हत्या कर दी गई थी। घनश्यामदास ने 1983 में 85 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। 

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