सार
झारखंड के पलामू पहला जिला है जहां से बाघों की गिनती करने का सिलसिला शुरू हुआ था। अब वहां रिकार्ड खंगालने पर भी बाघ के प्रमाण नहीं मिलते है, हालाकि देश में बाघ सरक्षण कानूनके बाद स्थिति सुधरने लगी है।
रांची (झारखंड). 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। झारखंड सहित देशभर में बाघों के संरक्षण की स्थिति अच्छी है। हालांकि 2022 के आंकड़े अभी नहीं आए हैं। 2018 की गणना के अनुसार देशभर में सर्वाधिक 526 बाघ मध्यप्रदेश में पाए जाते हैं। इसलिए एमपी को टाइगर स्टेट भी कहते हैं। वहीं झारखंड की बात करें तो उस समय के आंकड़े बताते हैं कि पूरे राज्य में सिर्फ 5 बाघ है, लेकिन अभी की हकीकत कुछ और है, बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। विश्व में सर्वाधिक बाघ भारत में पाए जाते हैं। देश में कुल 2967 बाघ पाए जाते हैं, जो कि दुनिया की कुल आबादी का 75 फीसद है। बता दें कि झारखंड के पलामू प्रमंडल में कभी बाघों का राज हुआ करता था। गांवों में अक्सर बाघ घुस जाते थे। अंग्रेजों ने बाघ के शिकार करनेवाले को इनाम देने की घोषणा की थी। वर्ष 1932 में दुनिया में जब बाघों की गिनती हो रही थी, तब पूरे एशिया महादेश में सबसे पहले बाघों की गिनती पलामू में ही हुई थी।
1974 में बने पलामू टाइगर रिजर्व में हैं दो बाघ
देश की आजादी के बाद भी बाघों का जम कर शिकार हुआ। इसके बाद 1974 में बाघों की सुरक्षा के लिए पलामू टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट लांच किया गया। उस समय भी बाघों की संख्या कुछ कम नहीं थी, लेकिन कालांतर में यह संख्या शून्य तक पहुंच गयी। वर्तमान स्थिति ऐसी है कि बाघ होने के प्रमाण खोजने पर भी नहीं मिल रहे हैं। हालांकि अभी जंगलों में मिले बाघों के मल ( स्केट) के आधार पर वर्ल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून द्वारा दो बाघ की पुष्टि की गयी है।
कभी 50 रुपये में थी बाघ के शिकार की छूट,खाल लाने पर मिलता था इनाम
पलामू टाइगर रिजर्व में आज पर्यटक बाघ देखने को तरस गए हैं। हालांकि छह दशक पहले वर्ष 1965 के दौरान हालात कुछ और ही थे। उस समय पलामू क्षेत्र में बाघों की संख्या बहुत अधिक थी। वन विभाग की ओर से शिकार के शौकीन लोगों को 50 रुपये में बाघ के शिकार की अनुमति दी जाती थी। आगे चलकर 1972 में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू होने के बाद वन्यजीवों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया। ब्रिटिश ऑफिसर डीएसआई संडर्स की किताब सर्वे एंड सैटेलमेंट रिकॉर्ड ऑफ पलामू में शिकार पर इनामी राशि देने का उल्लेख है। उस समय बाघ का शिकार करके उसकी खाल आदि लाने पर 25 रुपये बतौर इनाम दिये जाते थे। यह राशि तेंदुआ और भालू के संदर्भ में 15 रुपये रखी गई थी। अब हालत यह है कि लोग बाघ ढूंढ़ने को मजबूर हैं।
रांची के ओमांझरी जू में ब्रीडिंग की हो रही तैयारी
रांची के बिरसा मुंडा जैविक उद्यान में पिछले चार वर्षों में बाघों की संख्या चार से बढ़कर नौ हो गई है। इनमें दो नर ओर दो मादा है। नर बाघ का नाम मल्लिक और जाबा है, जबकि मादा का नाम अनुष्का और गौरी है। मल्लिक और अनुष्का ने चार वर्षों में 5 बच्चों को जन्म दिया है। 2018 में 2 मादा बच्चे का जन्म हुआ। वहीं 2020 में तीन मादा बच्चों जन्म हुआ। जावा के साथ गौरी की ब्रीडिंग की तैयारी की जा रही है। जू में एक बाघ पर प्रतिदिन दो हजार रुपए खर्च किए जाते हैं।
क्यों मनाते हैं टाइगर डे
साल 2010 में रूस के पीटर्सबर्ग में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में प्रत्येक वर्ष की 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बाघों की आबादी वाले 13 देशों ने हिस्सा लिया। सभी से 2022 तक बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य दिया है। भारत इकलौता देश है, जिसने लक्ष्य से 4 साल पहले 2018 में ही प्राप्त कर लिया। 2018 में इंडिया में 2967 से ज्यादा हो चुकी है। अभी 2022 की एनटीसीए की गणना के आंकड़े आना बाकी है।
भारत में बाघ की प्रजातियां, और लुप्तप्राय होने के कारण
देश में बाघों की आठ प्रजातियां हुआ करती थीं पर अब सिर्फ 5 प्रजातियां ही पाई जाती हैं। ये पांचों हैं साइबेरियन, बंगाल टाइगर, इंडोचाइनीज, मलयन व सुमत्रन। बाघ का अवैध शिकार, जंगल की अधाधुंध कटाई, वन में खाने की कमी और इनके आवास को नुकसान पहुंचना इनके लुप्त होने के प्रमुख कारण हैं। इनकी खाल, नाखून और दांत के लिए सर्वाधिक शिकार किया गया। कड़े कानून के बावजूद शिकारी खाल के साथ पकड़े जाने की घटना देश भर से आती रहती है।
बाघ संरक्षण में सीटीआर अव्वल
बाघों के संरक्षण में विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क खरा उतरता है। बाघों के घनत्व के मामले में विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क अव्वल है। भारत में साल 2010 में बाघ विलुप्त होने के कगार पर थे। पूरे भारत में कुल 53 टाइगर रिजर्व हैं। पहले नंबर स्थान पाने वाला जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व बाघों के लिए मुफीद जगह है। यहां बड़ी तेजी से बाघों का कुनबा बढ़ रहा है। कॉर्बेट नेशनल पार्क में प्राकृतिक आवास, प्राकृतिक व पक्के वॉटर होल और भरपूर पानी बाघों को सुरक्षित माहौल देता है।
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