सार

ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। इन 27 नक्षत्रों के अलावा एक 28वाँ नक्षत्र अभिजित भी माना गया है। इस नक्षत्र का विस्तार उत्तराषाढ़ा के बाद और श्रवण नक्षत्र से पहले माना गया है।

उज्जैन. ज्योतिष में अभिजित नक्षत्र का स्थान नहीं है और स्वास्थ्य संबंधी विषय में भी इस नक्षत्र की भूमिका पर कोई खास जोर नहीं दिया गया है, केवल मुख्य 27 नक्षत्रों को ही महत्व दिया गया है। आज हम आपको बता रहे हैं किस नक्षत्र में किस प्रकार का रोग आरंभ हो सकता है उसकी समय सीमा कितनी हो सकती है…

अश्विनी

यह नक्षत्र अर्द्धाग्वात, अनिद्रा एवं मतिभ्रम आदि रोगों को देने वाला होता है। यदि इस नक्षत्र में कोई बीमारी होती है तो वह एक दिन, नौ दिन अथवा पच्चीस दिन तक रहती है।

भरणी

इस नक्षत्र में तीव्र ज्वर, वेदना अर्थात दर्द एवं शिथिलता या मूर्च्छा होती है। यदि इस नक्षत्र में कोई बीमारी आरंभ होती है तो वह 11, 21 अथवा 30 दिन तक बनी रहती है। यदि व्यक्ति विशेष की दशा/अन्तर्दशा भी खराब है तो इस नक्षत्र में आरंभ हुई बीमारी मृत्य तक बनी रहती है।

कृत्तिका

इस नक्षत्र में उदर शूल, तीव्र वेदना, अनिद्रा तथा नेत्र रोग होते हैं। अगर इस नक्षत्र में रोग शुरु हुआ है तो वह 9, 10 अथवा 21 दिन तक रहता है।

रोहिणी

यह नक्षत्र सिरदर्द, उन्माद, प्रलाप तथा कुक्षिशूल देता है और इस नक्षत्र में आरंभ हुआ रोग 3/7/9 अथवा 10 दिन तक बना रहता है।

मृगशिरा

इस नक्षत्र में त्रिदोष, चर्मरोग(त्वचा रोग), तथा एलर्जी आदि बीमारी होती हैं। बीमारी होने पर वह 3/5/9 दिन तक बनी रहती है।

आर्द्रा

यह नक्षत्र वायु विकार देता है, स्नायुविकार देता है तथा कफ संबंधित रोग भी देता है। इस नक्षत्र में रोग शुरु हुआ तो वह 10 दिन अथवा एक माह तक बना रहता है।

पुनर्वसु

इस नक्षत्र में कमर दर्द, सिरदर्द अथवा गुर्दे आदि के रोग हो सकते हैं। यदि रोग हुआ तो वह 7 अथवा 9 दिन तक बना रहता है।

पुष्य

यह नक्षत्र तेज बुखार देता है, दर्द तथा अचानक होने वाले पीड़ादायक रोगों को भी देता है। इसमें प्रारंभ हुई बीमारी लगभग 7 दिनों तक रहती है।

आश्लेषा

यह नक्षत्र सर्वांगपीड़ा देने वाला है। बीमारी कोई भी हो मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाली होती है। इस नक्षत्र में अगर स्वास्थ्य विकार होते हैं तो वह 9/20/30 दिनों तक बने रहते हैं। कई बीमारी मृत्युतुल्य भी सिद्ध हो सकती है।

मघा

यह नक्षत्र वायु विकार, उदर विकार तथा मुँह के रोगों से संबंध रखता है। इस नक्षत्र में प्रारंभ हुआ रोग 20 दिन/30दिन अथवा 45 दिन तक बना रहता है।

पूर्वाफाल्गुनी

इस नक्षत्र में कर्ण रोग (कान की बीमारी), शिरोरोग, ज्वर तथा वेदना होती है। इसमें कोई बीमारी होती है तो वह 8/15/30 दिनों तक रहती है और कभी-कभी बीमारी बढ़कर एक साल तक भी बनी रहती है।

उत्तराफाल्गुनी

इस नक्षत्र में पित्तज्वर, अस्थिभंग तथा सर्वांगपीड़ा होती है। अगर इस नक्षत्र में कोई बीमारी होती है तो वह 7/15 अथवा 27 दिन तक बनी रहती है।

हस्त

यह नक्षत्र उदर शूल, मंदाग्नि तथा पेट से संबंधित अन्य कई विकारों से संबंध रखता है। यदि इस नक्षत्र में बीमारी होती है तो वह 7/8/9 अथवा 15 दिनों तक बनी रहती है।

चित्रा

इस नक्षत्र का संबंध अत्यन्त कष्टदायक अथवा दुर्घटना जन्य पीड़ाओं से माना गया है। यदि इस नक्षत्र में रोग होता है तो वह 8/11 अथवा 15 दिन तक बना रहता है।

स्वाती

यह नक्षत्र उन जटिल रोगों से संबंध रखता है जिनका शीघ्रता से उपचार नहीं होता है। यदि इसमें कोई बीमारी होती है तो वह 1/2/5 अथवा 10 महीने तक बनी रहती है।

विशाखा

यह नक्षत्र वात व्याधि (वायु रोग) से संबंधित रोग देता है, कुक्षिशूल, सर्वांगपीड़ा आदि से जुड़े रोग देता है। अगर इस नक्षत्र में कोई बीमारी होती है तो वह 8/10/20 अथवा 30 दिनों तक बनी रहती है।

अनुराधा

इस नक्षत्र में तेज बुखार, सिरदर्द तथा संक्रामक रोग होते हैं। इस नक्षत्र में रोग होने पर वह 6/10 अथवा 28 दिन तक बना रहता है।

ज्येष्ठा

इस नक्षत्र में कंपन, विकलता तथा वक्ष संबंधी रोग होते हैं। बीमारी होने पर वह 15, 21 अथवा 30 दिन तक चलती है। कभी-कभी मृत्युदायक रोग भी हो जाते हैं।

मूल

यह नक्षत्र उदर रोग, मुख रोग तथा नेत्र रोगों से संबंधित है, इस नक्षत्र में रोग होने पर वह 9/15 अथवा 20 दिन तक रहता है।

पूर्वाषाढ़ा

यह नक्षत्र प्रमेह, धातुक्षय, दुर्बलता तथा कुछ गुप्त रोगों से संबंध रखता है। इसमें उत्पन्न हुआ रोग 15 से 20 दिन बना रह सकता है और अगर इतने समय में रोग ठीक नहीं होता तो वह 2, 3 अथवा 6 महीने तक बना रहता है। इस नक्षत्र में पैदा हुई बीमारी कोई भी हो उसकी पुनरावृति भी हो जाती है।

उत्तराषाढ़ा

इस नक्षत्र में उदर से जुड़े रोग, कटिशूल और शरीर के कुछ अन्य दर्द देने वाले रोग होते हैं। इस नक्षत्र में पैदा हुए रोग 20 अथवा 45 दिन तक बने रहते हैं।

श्रवण

यह नक्षत्र अतिसार, विषूचिका, मूत्रकृच्छु तथा संग्रहणी से संबंध रखता है। इस नक्षत्र में पैदा हुए रोग 3/6/10 अथवा 25 दिन तक बने रहते हैं।

धनिष्ठा

इस नक्षत्र में आमाशय, बस्ती तथा गुर्दे के रोग होते हैं। इस नक्षत्र में पैदा हुआ रोग 13 दिन तक रहता है। कभी-कभी एक हफ्ता अथवा 15 दिन तक भी चलते हैं।

शतभिषा

इस नक्षत्र में ज्वर, सन्निपात तथा विषम ज्वर होता है। इसमें पैदा हुआ रोग 3/10//21 अथवा 40 दिन तक रहते हैं।

पूर्वाभाद्रपद

इस नक्षत्र में वमन, घबराहट, शूल तथा मानसिक रोग होते हैं। इस नक्षत्र में पैदा हुए रोग 2 से 10 दिन तक रहते हैं और कभी 2 से 3 महीने तक भी रहते हैं।

उत्तराभाद्रपद

इस नक्षत्र में दाँतो के रोग, वात रोग तथा ज्वर से संबंधित रोग आते हैं। इस नक्षत्र में पैदा हुई बीमारी 7/10 अथवा 45 दिन तक बनी रहती है.

रेवती

इस नक्षत्र में मानसिक बीमारी ज्यादा होती हैं, अभिचार, कुछ अन्य रोग तथा वात रोग भी इस नक्षत्र से संबंध रखते हैं। इस नक्षत्र में पैदा हुए रोग 10/28 अथवा 45 दिन तक बने रहते हैं।