सार

कहावत है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। इसका मतलब है कि मन अगर स्वस्थ है, तो हम हर तरह से ठीक रह सकते हैं। मानसिक रूप से स्वस्थ और मजबूत रहने पर शारीरिक बीमारियां भी जल्दी नहीं होतीं।आज के समय में अनियमित जीवनशैली, काम का बढ़ता बोझ, गलाकाटू प्रतिस्पर्द्धा और रिश्तों में दरार आने से लोग मानसिक तौर पर ज्यादा परेशान रहने लगे हैं। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस ( World Mental Health Day) मनाया जाता है। 
 

लाइफस्टाइल डेस्क। कहावत है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। इसका मतलब है कि मन अगर स्वस्थ है, तो हम हर तरह से ठीक रह सकते हैं। मानसिक रूप से स्वस्थ और मजबूत रहने पर शारीरिक बीमारियां भी जल्दी नहीं होतीं। आज के समय में अनियमित जीवनशैली, काम का बढ़ता बोझ, गलाकाटू प्रतिस्पर्द्धा और रिश्तों में दरार आने से लोग मानसिक तौर पर ज्यादा परेशान रहने लगे हैं। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस ( World Mental Health Day) मनाया जाता है। इसका मकसद है कि लोग आपने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूक रहें और अगर उन्हें किसी तरह की मानसिक परेशानी होती है, तो उसे दूर करने का उपाय करें। जिस तरह से शारीरिक बीमारियां होती हैं, उसी तरह मानसिक बीमारियां भी हो सकती हैं। लेकिन लोगों में इसे लेकर जागरूकता की बेहद कमी है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति किसी तरह की मानसिक समस्या का शिकार होता है, तो उसके घर वालों के साथ दूसरे लोग भी कोई ध्यान देना जरूरी नहीं समझते। जब बीमारी बढ़ जाती है और पीड़ित व्यक्ति का व्यवहार असामान्य होने लगता है तो उसे पागल तक घोषित कर देते हैं। यह एक बेहद असंवेदनशील रवैया है। मानसिक तौर पर परेशान या अस्वस्थ लोगों के साथ हमेशा संवेदनशीलता के साथ पेश आना चाहिए।

कब हुई यह दिवस मनाने की शुरुआत
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day) मनाए जाने की शुरुआत पहली बार साल 1992 में हुई। इसके लिए वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ (World Federation for Mental Health) ने पहल की। यह मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में पूरी दुनिया के स्तर पर सबसे बड़ी संस्था है और 150 से भी ज्यादा देश इसके सदस्य हैं। यह संस्था वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (World Health Organization) भी जुड़ी हुई है।

क्या है इस बार की थीम
साल 1994 में संयुक्त राष्ट्र (UN) के तत्कालीन महासचिव यूजीन ब्रॉडी ने एक थीम निर्धारित कर इस दिवस को मनाने की सलाह दी थी। उस साल 'दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार' थीम के साथ यह दिवस मनाया गया था। इस साल की थीम है- 'सभी के लिए मानसिक स्वास्थ्य: अधिक से अधिक निवेश, ज्यादा से ज्यादा पहुंच।'

मानसिक समस्याओं की पहचान
आम तौर पर लोग मानसिक समस्याओं की पहचान जल्दी नहीं कर पाते हैं। अगर किसी के साथ कोई मानसिक समस्या शुरू होती है, तो उस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी जाती है। होना यह चाहिए कि जैसे ही किसी के व्यवहार में किसी तरह का खास बदलाव दिखे जो असामान्य हो, तो तत्काल उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

चिंता से शुरू होती है मानसिक बीमारियां
ज्यादातर मानसिक बीमारियां चिंता से शुरू होती हैं। चिंता होना एक सामान्य बात है। किसी समस्या के पैदा होने पर कोई भी व्यक्ति चिंतित होता है, लेकिन समस्या के समाधान के बाद उसकी चिंता खत्म हो जाती है। लेकिन जब बिना किसी खास वजह के कोई लगातार चिंतित और उदास रहता हो, तो यह मानसिक बीमारी का लक्षण हो सकता है। ऐसी स्थिति में तत्काल मनोचिकित्सक को दिखला कर उससे सलाह लेनी चाहिए।

डिप्रेशन (Depression)
आज के समय में डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारी के शिकार लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। यह बीमारी किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। अब तो बच्चे और किशोर भी डिप्रेशन के शिकार होने लगे हैं। इस बीमारी के लक्षण अलग-अलग होते हैं, लेकिन आम तौर पर देखने में आता है कि डिप्रेशन के शिकार लोग परिवार और समाज से अलग-थलग रहने लगते हैं। वे अपने सामान्य काम-काज भी नहीं करते। उनके मन में हमेशा उदासी छाई रहती है। डिप्रेशन कम होने पर वह सकारात्मक प्रयासों से बिना इलाज के भी ठीक हो सकता है। लेकिन अगर समस्या गंभीर हो तो मनोचिकित्सक से दिखलाना जरूरी होता है।

बायपोलर मानसिक बीमारी (Bipolar Disorder)
यह भी डिप्रेशन से जुड़ी, लेकिन उससे ज्यादा गंभीर बीमारी है। इसके लक्षण डिप्रेशन से मिलते-जुलते होते हैं। इस बीमारी के बारे में जांच कर मनोचिकित्सक ही बता सकते हैं। इसका लंबा इलाज चलता है। अगर इस बीमारी का इलाज नहीं किया गया तो पीड़ित व्यक्ति लापता हो जा सकता है या आत्महत्या भी कर सकता है। डिप्रेशन के गंभीर मरीजों में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति पाई जाती है।

स्कीजोफ्रेनिया (Schizophrenia)
यह एक गंभीर मानसिक बीमारी है, जिसके कारणों का अभी तक पूरी तरह पता नहीं चल पाया है। इस बीमारी में मरीज को अजीबोगरीब आवाजें सुनाई पड़ती हैं। उसे लगता है कि कोई उसे कुछ खास काम करने के लिए कह रहा है। स्कीजोफ्रेनिया के मरीज कई तरह के भ्रम के शिकार हो जाते हैं। वे एक कल्पना की दुनिया में खोए रहते हैं। वास्तविकता से उनका संबंध कट जाता है। इसका इलाज हर हाल में कराना जरूरी होता है। अगर इस बीमारी का इलाज नहीं कराया गया तो मरीज आत्महत्या जैसा कदम उठा सकता है।

मनोचिकित्सक से संपर्क जरूर करें
किसी भी तरह की मानसिक समस्या होने पर मनोचिकित्सक से संपर्क करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। आम तौर पर लोग मनोचिकित्सक के पास नहीं जाना चाहते हैं। इसके पीछे वजह यह है कि उन्हें यह डर होता है कि लोग कहीं पागल न समझने लगें। यह एक गलत धारणा है। पागलपन और मानसिक बीमारी में फर्क है। मानसिक बीमारी किसी को हो सकती है और इलाज से यह ठीक हो जाती है। वहीं, जागरूकता की कमी के चलते इलाज नहीं करवाने पर समस्या बढ़ती ही चली जाएगी।