सार

हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी कोविड महामारी में कैदियों को पैरोल पर नहीं छोड़ना एक जेल अधीक्षक को भारी पड़ गया। कोर्ट ने उसे सात दिन की जेल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मनमानी से कैदियों के प्रति न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास कम होगा। 

नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay high court) की नागपुर बेंच ने नागपुर सेंट्रल जेल के अधीक्षक, अनूप कुमार कुमरे को 7 दिनों की जेल की सजा सुनाई है। इस आदेश के बाद कुमरे को अपनी ही जेल में सात दिनों के लिए कैद रहना पड़ेगा। दरअसल, कुमरे पर यह कार्रवाई कोर्ट की अवमानना के लिए की गई है। 

कोविड 19 महामारी के दौरान हाईकोर्ट ने तमाम कैदियों को पैरोल पर छोड़ने के आदेश दिए थे। लेकिन कुमरे ने ऐसे 35 कैदियों को पैरोल नहीं दी, बल्कि 6 अपात्रों को पैरोल पर छोड़ दिया। जस्टिस विनय देशपांडे और जस्टिस अमित बोरकर की पीठ में इस मामले की सुनवाई हुई। 

गरीब कैदियों पर अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा
मिलिंद अशोक पाटिल और अन्य की तरफ से ये याचिका लगाई गई थी। इसमें कहा गया कि आदेश के बाद भी जेल से कैदियों को नहीं छोड़ा गया। इस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि जेल अधीक्षक के इस मनमाने रवैया से न केवल गरीब कैदियों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, बल्कि यह कैदियों के यह न्याय प्रशासन में विश्वास को भी प्रभावित करता है। इस तरह से अदालत के आदेशों का अनुपालन न होना अदालत की गरिमा को भी कम करता है।  

अधीक्षक ने माफी मांगी, कोर्ट ने कहा- इससे गलत परंपरा पड़ेगी
कोर्ट का कड़ा रुख देख कुमरे ने बिना शर्त माफी मांगी और जुर्माना लगाकर छोड़ने की अपील की, लेकिन कोर्ट ने इस अस्वीकार कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि माफी स्वीकार करना एक बुरी मिसाल कायम करेगा और भविष्य में जेल अधीक्षकों से इस तरह की और कार्रवाई को प्रोत्साहित करेगा। कोर्ट ने कहा कि कुमरे ने अपने औचित्य के विफल होने के बाद ही माफी मांगी थी।  

41 मामलों में अवमानना के दोषी 
कुमरे को अदालत की अवमानना ​​के 41 मामलों में दोषी ठहराया गया था। उन्होंने न केवल COVID-19 महामारी के दौरान आपातकालीन पैरोल के लिए 35 योग्य जेल कैदियों की याचिका को खारिज कर दिया था, बल्कि छह अपात्र कैदियों को छोड़ दिया था। सुनवाई के दौरान जेल पर्यवेक्षक ने एक हलफनामा पेश किया, जिसमें उन्होंने कहा कि 90 अन्य अपराधियों को इमरजेंसी पैरोल नहीं दी गई, क्योंकि वे नियमों के तहत पात्र नहीं थे।  

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विभागीय जांच के आदेश  

न्याय मित्र अधिवक्ता फिरदौस मिर्जा ने बताया कि एक कैदी का नाम दोषियों की सूची में था। पिछली पैरोल में वह सात दिन देरी से जेल आया था। इसके बाद भी जेलर ने उसे पैराेल दे दी। कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर और अतिरिक्त मुख्य सचिव (जेल) को आदेश दिया कि कुमरे के हलफनामे में कई विसंगतियां मिलने के बाद अवमानना ​​के लिए विभागीय जांच शुरू करें।

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