सार
टूटी हुई खिड़कियां, अस्पताल परिसर में घूमते हुए सूअर और स्टाफ की कमी, ये हाल राजस्थान के कोटा के उस अस्पताल का है, जहां एक साल में 940 बच्चों ने जान गंवा दी।
नई दिल्ली. टूटी हुई खिड़कियां, अस्पताल परिसर में घूमते हुए सूअर और स्टाफ की कमी, ये हाल राजस्थान के कोटा के उस अस्पताल का है, जहां एक साल में 940 बच्चों ने जान गंवा दी। जब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की टीम ने अस्पताल का दौरा किया तो उन्हें कुछ ऐसे ही हालत देखने को मिले।
कोटा के जे के लोन अस्पताल में पिछले एक साल में 940 बच्चों की मौत हो गई। केवल दिसंबर के महीने में यहां 91 बच्चों ने अपनी जान गंवाई है। ज्यादातर बच्चों की मौत निमोनिया, मेनिंगोएनसेफेलाइटिस, जन्मजात निमोनिया, सेप्सिस और सांस संबंधी बीमारियों से हुई हैं।
आयोग ने राज्य सरकार को भेजा नोटिस
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक टीम ने अस्पताल का दौरा किया। इसके बाद आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने राजस्थान सरकार के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट के सचिव को शॉ कोज नोटिस भेजा था और कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी थी।
परिसर में सूअर घूम रहे थे- रिपोर्ट
कानूनगो ने कहा, यह स्पष्ट है कि खिड़कियों में शीशे नहीं थे और गेट टूटे हुए थे, इसके चलते बच्चों को ठंड का सामना करना पड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि अस्पताल का सामान्य रखरखाव भी 'सबसे खराब स्थिति' में है। परिसर में सूअर घूम रहे थे।
बच्चों की मौत पर शुरू हुई राजनीति
उधर, राजस्थान में बच्चों की मौत पर राजनीति शुरू हो गई है। भाजपा राज्य की गहलोत सरकार पर गंभीर आरोप लगा रही है। इसी क्रम में भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने इस मामले की जांच के लिए अपने चार सांसदों की एक समिति बनाई है। उधर, कांग्रेस ने भाजपा पर बच्चों की मौत पर राजनीति करने का आरोप लगाया है।