सार

सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के अधिकार को लेकर गुरुवार को अपना अंतिम फैसला सुनाएगा। जिसके बाद यह साफ हो जाएगा कि सबरीमाला मंदिर में सभी वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति मिलेगी या नहीं। 

नई दिल्ली. अयोध्या मामले में फैसला सुनाने के बाद अब सर्वोच्च अदालत सबरीमाला मामले में अपना अंतिम फैसला सुनाएगा। सबरीमाला मामले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच न्यायमूर्तियों की संविधान पीठ ने फरवरी में बहस पूरी कर ली थी और अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था, जिसको अब सार्वजनिक किया जाएगा।  इस फैसले के बाद साफ हो जाएगा कि महिलाओं पर प्राचीन काल से जारी पाबंदी फिर से बहाल होगी या नई व्यवस्था बरकरार रहेगी? वैसे अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ के फैसले में उस बात पर लोगों की उम्मीद टिकी है, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि अदालत को धार्मिक अधिकारों में दखल नहीं देना चाहिए।

दायर की गई है 65 याचिकाएं 

आपको बता दें कि शीर्ष कोर्ट के 2018 के फैसले पर पुनर्विचार की मांग को लेकर कुल 65 याचिकाएं दायर की गई थीं। अब सुप्रीम कोर्ट की बेंच गुरुवार सुबह 10:30 बजे अपना फैसला सुनाएगी। गौरतलब है कि 17 नवंबर को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई रिटायर हो रहे हैं। लिहाजा जिन मामलों की उन्होंने सुनवाई की है, उनमें फैसला 17 नवंबर से पहले ही सुनाया जा रहा है।  इस मामले की सुनवाई के दौरान केरल में सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन देखने वाले त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के मामले में यू-टर्न लिया था। तब केरल में बदले राजनीतिक नेतृत्व की वजह से बोर्ड के इस बदलाव को भी राजनीतिक ही माना गया था। बोर्ड ने अपना रुख बदलते हुए सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया था। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि अब किसी भी वर्ग के साथ जैविक बदलाव के आधार पर भेदभाव न किए जाने का वक्त आ गया है। जैविक बदलाव के आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। 

यह है सबरीमाला मामला 

सबरीमाला मंदिर में प्राचीन काल से सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगी हुई थी। जिस पर महिलाओं के अधिकार का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह पाबंदी हटा दी थी। साथ ही कहा था कि महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी असंवैधानिक है। इस फैसले का भगवान अयप्पा के अनुयायी भारी विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि मंदिर के भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं और 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश से मंदिर की प्रकृति बदल जाएगी। इसको लेकर जब जस्टिस नरीमन ने सवाल किया कि अगर 10 से 50 वर्ष की अनुसूचित जाति की महिला को प्रवेश से रोका जाता है, तो क्या वहां अनुच्छेद 17 लागू होगा। इस पर सीनियर एडवोकेट परासरन का जवाब था कि मंदिर में पाबंदी मूर्ति की ब्रह्मचारी प्रकृति के कारण है न कि जाति के आधार पर।  उधर दूसरी ओर महिला संगठनों और मूल याचिकाकर्ता के वकीलों ने पुनर्विचार याचिकाओं का विरोध किया।  अब शीर्ष कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाने जा रहा है. सबरीमाला मामले में पुनर्विचार के लिए कुल 64 याचिकाएं दायर की गई हैं। 

भंग हुई सामाजिक शांति

वहीं, वरिष्ठ वकील इन्दिरा जयसिंह ने कहा कि भगवान महिला पुरुष के साथ कोई भेद नहीं करते हैं. केरल सरकार के वकील ने भी फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश न देना हिन्दू धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है. बहुत से अयप्पा मंदिरों में महिलाएं जाती हैं. धर्म के अभिन्न हिस्से और मंदिर के रीति-रिवाज के अभिन्न हिस्से में अंतर है. हालांकि उन्होंने माना कि फैसले के बाद सामाजिक शांति भंग हुई थी, लेकिन कहा कि यह फैसले के पुनर्विचार का आधार नहीं हो सकती.

इन जजों ने सुनाया था फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत दी थी, उस समय चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा थे और वो बेंच का हिस्सा थे। इस बार दीपक मिश्रा की जगह वर्तमान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई फैसला  सुनाने वाली पीठ में शामिल हैं। इसके अलावा पिछली बेंच की तरह आरएफ नरीमन, एएम खनविल्कर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा भी इस बेंच में शामिल हैं।