सार

सोशल मीडिया पर एक किताब संघी हू नेवर वेंट टू अ शाखा (Sanghi Who Never Went To A Shakha) काफी सुर्खियां बटोर रही है। संघी आरएसएस के कार्यकर्ता के लिए इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, शाखा उस जगह को कहते हैं जहां आरएसएस के कार्यकर्ता बैठक के लिए इकट्ठा होते हैं।

नई दिल्ली. सोशल मीडिया पर एक किताब संघी हू नेवर वेंट टू अ शाखा (Sanghi Who Never Went To A Shakha) काफी सुर्खियां बटोर रही है। संघी आरएसएस के कार्यकर्ता के लिए इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, शाखा उस जगह को कहते हैं जहां आरएसएस के कार्यकर्ता बैठक के लिए इकट्ठा होते हैं। इस किताब को राहुल रौशन ने लिखा है। राहुल रौशन व्यंग्य समाचार वेबसाइट 'द फेकिंग न्यूज' के संस्थापक और ऑपइंडिया के सीईओ हैं। 

रौशन ने 2010 के आसपास फेकिंग न्यूज के माध्यम से भारतीय राजनीति और समाज में अपने हास्य और व्यंग्य के कारण लोकप्रियता हासिल की। उन्हें अगले 5-6 सालों में नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व की राजनीति के मुखर समर्थक के तौर पर पहचान मिली। एक मजाकिया आदमी होने के नाते, उन्हें भक्त, ट्रोल के नाम से भी जाना जाता है। यह किताब राहुल में परिवर्तन के बारे में है, जो लाखों भारतीयों में भी देखने को मिला है। 

 


यह किताब बताती है कि कैसे राहुल रौशन जैसे लोग कांग्रेसी हिंदू होने पर खुश थे और वे महसूस भी नहीं कर सकते थे कि कांग्रेस नेता ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र क्यों बना रहे थे, जो हिंदू संस्कृति और धर्म के खिलाफ थे। 

इस किताब का प्रकाशन रूपा पब्लिकेशन्स ने किया है। इस किताब में राहुल रौशन ने अपने काम के प्रति पागलपन, हिंदुत्व को एक विचारधारा में अंगीकार करने के प्रति से लेकर संघी होने तक के पेचीदा यात्रा को बेहतरीन तरीके से साझा किया है। किताब को 10 मार्च को लॉन्च किया गया।

कांग्रेस समर्थक से कैसे बने संघी
राहुल रौशन की यह जीवन गाथा है, इसमें बताया गया है कि वे हिंदू परिवार में पैदा हुए, उनका परिवार कांग्रेस समर्थक था। लेकिन कैसे समय के साथ विचारों में बदलाव ने राहुल को मोदी समर्थक 'संघी' बना दिया। इतना ही नहीं खास बात ये है कि संघी बनने तक के सफर में उन्होंने कभी संघ की शाखा में भी हिससा नहीं लिया।  राहुल अपने प्रारंभिक जीवन में कभी भी संघ या पीएम मोदी के प्रशंसक नहीं रहे उसके बाद भी उन्होंने जिस तरह से संघ को जाना समझा और शब्दों के जरिए उसकी आत्मा का जिक्र किया वह सच में आश्चर्य का विषय है। यह किताब एक वामपंथी से संघी बनने तक की कहानी है। 
 
इस पुस्तक को रौशन की जीवन कहानी के रूप में देखा गया है, जिसमें उनके बचपन के दिनों, उनके कॉलेज के दिनों की यादें, एक पत्रकार के रूप में उनका कार्यकाल, गुजरात में उनके IIM अहमदाबाद में उनकी पढ़ाई के दिन, और फिर फेकिंग न्यूज और ऑपइंडिया के दिनों को शामिल किया गया है।

 

 

इस किताब में पत्रकारिता के मुद्दे पर भी बात की गई है। राहुल रौशन ने इसमें मीडिया में वैचारिक पक्षपात की भी बात की है। राहुल कहते हैं कि उन्हें इस पक्षपात के पीछे कोई संगठित साजिश नजर नहीं आती। लेकिन वे इसे वामपंथी पूर्वाग्रह के तौर पर देखते हैं। इसमें उन्होंने जिम्मेदार पत्रकारिता के बारे में भी बात की है। उन्होंने बताया कि कैसे पक्षपाती पत्रकारिता समाज पर प्रभाव डालती है। 

रौशन के इस किताब में कुछ दिलचस्प किस्सों का भी जिक्र किया। उन्होंने इसमें पत्रकारिता स्कूल में उनके बैचमेट का भी जिक्र किया है, जिस पर आतंकी हमले करने का आरोप था। रौशन ने अपने अनुभवों को भी साझा किया है। उन्होंने बताया कि 2002 के दंगों के बाद उनके मन में गुजराती लोगों के खिलाफ पूर्वाग्रह थे। लेकिन बाद में ये बदल गया और उन्होंने गुजराती लड़की से शादी कर ली।