सार
21 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान भी शीर्ष अदालत ने सवाल उठाए थे और न्यायाधीशों ने यहां तक चेतावनी दी थी कि वे ईडब्ल्यूएस अधिसूचना को रोक देंगे। पीठ ने यह भी सवाल किया था कि पूरे देश में समान आय मानदंड कैसे लागू किया जा सकता है।
नई दिल्ली। मेडिकल एजुकेशन (Medical Education) में आरक्षण के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को निर्धारित करने के मानदंडों (criteria) पर केंद्र सरकार पुनर्विचार (reconsider) करेगी। केंद्र सरकार ने अखिल भारतीय कोटा में ईडब्ल्यूएस आरक्षण (EWS reservation) को लागू करने के अपने फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए वर्तमान आय सीमा 8 लाख प्रति वर्ष से कम है और केंद्र ने इस मुद्दे पर पुनर्विचार करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा है। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल (Solicitor general) तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पुनर्विचार करने और किसी निर्णय तक पहुंचने तक नीट के लिए कोई काउंसलिंग नहीं होगी। कोर्ट ने केंद्र को एक महीना का समय देते हुए छह जनवरी को फिर सुनवाई करने को कहा है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की वार्षिक आय आठ लाख रुपये तय करने के केंद्र सरकार के आधार पर सवाल उठाते हुए याचिका दायर की गई थी। कहा गया था कि यह ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर का निर्धारण करने के लिए समान है।
सुनवाई के दौरान केंद्र को सुप्रीम कोर्ट की फटकार
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई करते हुए सरकार से सवाल किया था कि क्या 8 लाख रुपये की सीमा का कोई आधार है। अदालत ने पूछा कि क्या कोई सामाजिक, क्षेत्रीय या कोई अन्य सर्वेक्षण या डेटा है जो यह दर्शाता है कि अन्य पिछड़ा वर्ग जो प्रति वर्ष 8 लाख से कम आय वर्ग में हैं, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, "आपके पास कुछ जनसांख्यिकीय या सामाजिक या सामाजिक-आर्थिक डेटा होना चाहिए। आप केवल 80 लाख के आंकड़े को हवा से नहीं निकाल सकते।"
ओबीसी वर्ग समाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि आप 8 लाख की सीमा लगाकर असमानता को बराबर कर रहे हैं। ओबीसी में 8 लाख से कम आय वाले लोग सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन से पीड़ित हैं। संवैधानिक योजना के तहत ईडब्ल्यूएस सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नहीं हैं। यह एक नीतिगत मामला है लेकिन अदालत को इसकी संवैधानिकता निर्धारित करने के लिए नीतिगत निर्णय पर पहुंचने के लिए अपनाए गए कारणों को जानने का अधिकार है।
अधिसूचना रोकने की धमकी के बाद सरकार ने लिया पुनर्विचार का निर्णय
21 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान भी शीर्ष अदालत ने सवाल उठाए थे और न्यायाधीशों ने यहां तक चेतावनी दी थी कि वे ईडब्ल्यूएस अधिसूचना को रोक देंगे। पीठ ने यह भी सवाल किया था कि पूरे देश में समान आय मानदंड कैसे लागू किया जा सकता है। "एक छोटे शहर या गांव में एक व्यक्ति की कमाई की तुलना मेट्रो शहर में समान आय अर्जित करने वालों के साथ कैसे की जा सकती है?"
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि राज्यों की प्रति व्यक्ति आय अलग है और समान मानदंड लागू करना उचित नहीं हो सकता है। यहां तक कि एक सरकारी कर्मचारी को दिया जाने वाला हाउस रेंट अलाउंस भी समान नहीं है और यह पोस्टिंग के स्थान पर निर्भर करता है और सुझाव दिया कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए आय मानदंड को देश भर में एक समान बनाने के बजाय रहने की लागत से जोड़ा जाना चाहिए। हालांकि, केंद्र ने अपने फैसले को सही ठहराया था, यह तर्क देते हुए कि राशि तय करने का सिद्धांत तर्कसंगत है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के अनुसार है।
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