Asianet News Hindi | Published : Feb 18 2022, 02:09 PM IST / Updated: Feb 18 2022, 05:15 PM IST
Hijab Row Live Update : अंतरात्मा के अधिकार से लेकर धार्मिक अधिकार तक चर्चा, सोमवार को फिर होगी सुनवाई
Hijab Row Live Update : अंतरात्मा के अधिकार से लेकर धार्मिक अधिकार तक चर्चा, सोमवार को फिर होगी सुनवाई
सार
हिजाब विवाद को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में आज दोपहर 2:30 बजे से फिर सुनवाई शुरू हुई। महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने कोर्ट में अपनी दलीलें पेश कीं। उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता से लेकर अंतरात्मा के अधिकार तक पर बहस की। उन्होंने कोर्ट को बताया कि मुस्लिम समुदाय में धार्मिक आधार पर हिजाब अनिवार्य हिस्सा नहीं है। इस बीच याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि इस आदेश से मुस्लिम समुदाय को काफी परेशानी हो रही है। उन्हें दुपट्टा या हिजाब हटाने के लिए बाध्य किया जा रहा है। सड़कों पर इसके लिए पुलिस तैनात की गई है। इससे कानून व्यवस्था की स्थिति बनने की बजाय बिगड़ रही है। इस पर महाधिवक्ता ने कहा कि आप मुझे इसकी जानकारी दें। हम ऐसा कुछ नहीं करने वाले हैं, जो अंतरिम आदेशों का उल्लंघन करें। अगली सुनवाई सोमवार दोपहर 2:30 बजे होगी।
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05:06 PM (IST) Feb 18
याचिकाकर्ता का विरोध - सरकार ने आदेश को सभी स्कूलों तक बढ़ा दिया
एडवोकेट ताहिर: कोर्ट के अंतरिम आदेश में कहा गया है कि यह उन कॉलेजों तक ही सीमित है जहां सीडीसी ने यूनिफॉर्म तय की है। लेकिन राज्य ने इस आदेश को सभी स्कूलों, डिग्री कॉलेजों और बिना यूनिफॉर्म वाले सरकारी संस्थानों तक बढ़ा दिया है। आदेश के चलते मुस्लिम समुदाय को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हर विभाग आदेश की अलग-अलग व्याख्या कर रहा है। यह उर्दू स्कूलों आदि के लिए किया जा रहा है, जहां केवल मुसलमान ही पढ़ते हैं। व्यवस्था का उद्देश्य कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करना था, लेकिन यह कानून-व्यवस्था बिगाड़ने की स्थिति पैदा कर रहा है। मुस्लिम महिलाओं को डराने-धमकाने, बुर्का और दुपट्टा उतारने के लिए पुलिस बल तैनात किया जा रहा है।
एजी : मुझे जानकारी दें। हम यह सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त निर्देश देंगे कि कोई भी आपके आधिपत्य के अंतरिम आदेश से परे कार्य न करे।
इसके बाद कोर्ट की कार्यवाही खत्म हो गई। अगली सुनवाई सोमवार दोपहर 2:30 बजे होगी।
05:03 PM (IST) Feb 18
सीजे ने पूछा - क्या हिजाब अनिवार्य धार्मिक अभ्यास का हिस्सा, एजी बोले नहीं
जस्टिस दीक्षित : अंतरात्मा का पता कैसे लगाएं? मैं कहता हूं कि किसी प्रतीक को सलामी देना मेरी अंतरात्मा के विपरीत है?
एजी : निश्चय करके या जांच करके?
जस्टिस दीक्षित : जांच करके।
एजी : जब डॉ. अम्बेडकर ने धर्म के प्रचार के अधिकार को पेश किया तो कुछ सदस्यों ने इसके खिलाफ तर्क दिया कि अगर यह शक्ति दी जाती है, तो एक धर्म के दूसरों पर आधिपत्य होने की संभावना है। डॉ. अंबेडकर ने हस्तक्षेप किया और कहा कि यह नहीं होगा, हमें भी अंतरात्मा की स्वतंत्रता है। सीजे अवस्थी: क्या हिजाब अनिवार्य धार्मिक अभ्यास का अधिकार है?
एजी : जवाब है नहीं।
04:54 PM (IST) Feb 18
विवेक और अभ्यास दो अलग - अलग चीजें
एजी : हिजाब को रोकना धार्मिक प्रथा का उल्लंघन नहीं। कोविड के दौरान स्वास्थ्य को देखते हुए मंदिर, मस्जिद और धार्मिक स्थल बंद रखे गए। अनुच्छेद 25(2) अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म का पालन करने के अधिकार की बात करती है। अंतःकरण की स्वतंत्रता क्या है? दुर्गा दास बसु इस बारे में बताते हैं। उनके मुताबिक विवेक और अभ्यास दो अलग-अलग चीजें हैं। वह भेद छोटा है, लेकिन वास्तविक है। इसलिए, वे अंतःकरण की स्वतंत्रता लेकिन अभ्यास का अधिकार शब्द का उपयोग करते हैं। जस्टिस दीक्षत : कोई अत्यधिक अधार्मिक हो सकता है, लेकिन कर्तव्यनिष्ठ और दूसरे तरीके का भी हो सकता है। एजी : जैसा कि पहले बताया गया है, अनुच्छेद 25(1) के दो भाग हैं (क) अंतःकरण की स्वतंत्रता और (ख) अभ्यास और प्रचार का अधिकार। ऐसे व्यक्ति हो सकते हैं, जो धर्म में विश्वास नहीं करते हैं और केवल सांसारिक जीवन में विश्वास करते हैं। उन्हें विश्वास नहीं करने का अधिकार है। जस्टिस दीक्षित: आपके कहने का मतलब है कि अंतरात्मा की आजादी नास्तिकों तक ही सीमित है? एजी : निश्चित रूप से नहीं।
04:34 PM (IST) Feb 18
छात्र समिति के पास नहीं गए, सीधे कोर्ट आ गए
जस्टिस दीक्षित : यदि विधायक और उनके नामित व्यक्ति समिति में अध्यक्ष और वीपी दोनों पदों पर हैं, तो दूसरों की क्या भूमिका होगी? एजी : यह ऐसा मामला है जिस पर किसी भी तरह से बहस हो सकती है। सरकारी आदेश किसी के अधिकारों के विपरीत नहीं है।
अब हम दूसरे हिस्से पर आते हैं जिसके मुताबिक हिजाब अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है। लेकिन इससे पहले जिस तरह से चुनौती दी गई है, उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। अधिनियम के तहत एक प्रावधान है कि छात्र अभिभावक-शिक्षक समिति से अपनी बात कह सकते हैं, लेकिन किसी ने ऐसा नहीं किया, वे सीधे कोर्ट आए हैं। जस्टिस दीक्षित : आपके कहने का मतलब है कि सरकारी आदेश को पैरेंट्स-टीचर कमेटी के सामने चुनौती दी जानी चाहिए? एजी : नहीं, आदेश, नहीं बल्कि हिजाब की अनुमति नहीं देने की शिकायत।
04:29 PM (IST) Feb 18
राज्य सरकार सबके साथ समान व्यवहार में विश्वास रखती है : एजी
एजी : सीडीसी से अच्छा कुछ नहीं हो सकता। स्थानीय विधायक, माता-पिता, छात्र प्रतिनिधि, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के सदस्य आदि। यह विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व करता है। रविवर्मा कुमार का तर्क है कि सीडीसी में विधायक को नहीं होना चाहिए। हमने सत्ता को पूरी तरह से दूर रखने के अमेरिकी मॉडल नहीं वेस्टमिंस्टर मॉडल अपनाया है।
जस्टिस दीक्षित : उनका तर्क था कि विधायक एक राजनीतिक व्यक्ति है। क्या वह किसी संस्था के प्रशासन में शामिल होना चाहिए।
एजी : विधायक के सदस्य होने पर कोई रोक नहीं है। इन मामले में सरकार के प्रति लगाए गए आरोपों से हम दुखी हैं। आरोप लगाया जाता है कि हम लड़कियों और महिलाओं के साथ भेदभाव कर रहे हैं। हम पूरी विनम्रता के साथ कहते हैं, राज्य सभी के साथ समान व्यवहार करने में विश्वास रखता है।
04:20 PM (IST) Feb 18
छात्रों के पास आदेश को चुनौती देने का अधिकार नहीं, खारिज हो याचिका
एजी ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम की धारा 133 बताई। उन्होंने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि कॉलेज ने इस आदेश पर सवाल नहीं उठाया है। कोई भी कॉलेज यह कहते हुए अदालत के सामने नहीं आया कि हमें इसका अधिकार नहीं। यह छात्र हैं जो यह कहते हुए कोर्ट के सामने आए हैं कि हमें इसका अधिकार नहीं है। उनकी चुनौती इसी आधार पर खारिज हो जानी चाहिए। चीफ जस्टिस : सीडीसी के गठन के लिए आपने 2014 का जो सर्कुलर दिखाया था, वह एक अवर सचिव द्वारा जारी किया गया है। क्या इसे धारा 133 के तहत निर्देश माना जा सकता है? यह कोई आदेश या नोटिफिकेशन नहीं है, यह एक सर्कुलर है। एजी : आम तौर पर इसमें मंत्री की मंजूरी होती है। चीफ जस्टिस : हम यही जानना चाहते हैं।
04:12 PM (IST) Feb 18
एजी ने कोर्ट में बताया कर्नाटक शिक्षा अधिनियम
एजी : रविवर्मा कुमार का तर्क यह है कि सीडीसी एक अतिरिक्त वैधानिक निकाय है और इसलिए उन्हें यूनिफॉर्म तय करने का अधिकार नहीं है। चीफ जस्टिस : क्या आदेश जल्दी नहीं जारी कर दिया गया ? एक तरफ आप कह रहे हैं कि एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाना है, दूसरी तरफ आप ये आदेश जारी करते हैं। एजी : सरकार अत्यावश्यकता को देखते हुए धारा 133 के तहत ये आदेश जारी करती है। ये असामान्य स्थिति है जो सामने आई। एजी नवदगी कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, प्रस्तावना को बताते हैं कि अधिनियम वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण विकसित करने और छात्रों को बेहतर नागरिक बनाने के लिए है। अधिनियम के तहत एक निजी शैक्षणिक संस्थान को सरकार से औपचारिक मान्यता प्राप्त करनी होती है। धारा 36 निजी संस्थानों की मान्यता के लिए है। धारा 38 राज्य द्वारा स्थापित और संचालित शैक्षणिक संस्थानों के लिए है।
एजी : पीयू कॉलेज में कोई प्रबंध समिति नहीं है। वहां की यूनिफॉर्म सही करनी थी। इसलिए इसे लागू करने के लिए हम कर्नाटक शिक्षा अधिनियम की धारा 133(2) का इस्तेमाल करते हैं।
04:05 PM (IST) Feb 18
मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव के आरोप निराधार और तर्कहीन : एजी
चीफ जस्टिस : हम इन निर्णयों को लेने की आवश्यकता जानना चाहते हैं। एजी : बेहतर सलाह पर इससे बचा जा सकता था। चीफ जस्टिस : ऐसा लगता है कि वे आपकी सलाह नहीं लेते (सीजे और एजी हंसते हैं)। एजी : राज्य ने पूरी तरह से सीडीसी की स्वायत्तता पर छोड़ दिया है। यह दावा कि आदेश मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव करता है, सांप्रदायिक आधार है, यह सब बिल्कुल निराधार है।
यह पूरी तरह से तर्कहीन है कि सरकारी आदेश मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव करता है, निराधार है। सीधे शब्दों में कहें तो यह किसी के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है। वरिष्ठ अधिवक्ता कामथ ने कहा कि फैसले प्रासंगिक नहीं हैं। हम इसमें नहीं पड़ने का अनुरोध करेंगे। हमारा निवेदन है कि सरकारी अधिकारी कभी-कभी यह सब,अति उत्साह में रिकॉर्ड करते हैं।
03:59 PM (IST) Feb 18
राज्य इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता था : एजी
एजी : यदि आदेश का पैरा संकेत देता है कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए या प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, तो मैं स्पष्ट कर दूंगा कि यह आदेश का उद्देश्य नहीं है। जस्टिस दीक्षित : आपने इसमें बहुत कुछ लिखा है। लेकिन आम लोग, माता-पिता और सीडीसी के सदस्य इसकी व्याख्या कैसे करेंगे। एजी : राज्य इस मुद्दे को तय करने के लिए सीडीसी पर छोड़ देता है। जस्टिस दीक्षित : लेकिन आपने वह विकल्प नहीं छोड़ा है। एजी : यह राज्य का घोषित स्टैंड है, हम हस्तक्षेप नहीं करना चाहते थे। चीफ जस्टिस : सरकारी आदेश (हिजाब पर) में यह सब बताने की क्या जरूरत थी। एजी : आदेश से हमने निर्देश नहीं दिया है। इसे स्वायत्तता पर छोड़ दिया है।
03:54 PM (IST) Feb 18
राज्य के पास धारा 131 के तहत पुनरीक्षण का अधिकार : एजी
जस्टिस दीक्षित : आप कुछ सुझाव दे रहे हैं। चीफ जस्टिस : सरकारी आदेश नुकसान नहीं पहुंचाने वाला है। लेकिन इस आदेश के पहले भाग में आएं, जहां आपने कहा है कि हिजाब के बारे में इन निर्णयों पर विचार करें। यह सब कहने की क्या जरूरत थी। एजी : यह राज्य का स्टैंड है। राज्य ने जानबूझकर खुद को इससे दूर रखा है, हमने कॉलेज को स्वायत्तता दी है जो फैसला कर सकता है। चीफ जस्टिस : अगर कॉलेज विकास समिति छात्रों को हिजाब पहनने की अनुमति देती है, तो आपको कोई आपत्ति नहीं है। एजी : धारा 131 के तहत राज्य के पास पुनरीक्षण शक्तियां हैं। यदि भविष्य में कोई छात्र या प्राधिकरण इसे लेकर शिकायत करता है तो हमारे पास इसका निर्णय लेने या नहीं लेने का अधिकार है।
03:47 PM (IST) Feb 18
सरकारी आदेश की क्या जरूरत थी : सीजे
एजी ने बताया कि राज्य सरकार हस्तक्षेप नहीं कर रही है। हम केवल इतना कह रहे हैं कि सीडीसी ने जो भी निर्धारित किया है, उसका पालन किया जाना चाहिए। छात्र को ऐसी ड्रेस पहननी चाहिए जो समान, सभ्य हो। याचिकाकर्ता उत्साही हो गए हैं और कहा सार्वजनिक व्यवस्था। हिजाब को प्रतिबंधित करने या निर्धारित करने का सवाल ही नहीं उठता। राज्य ने निजी कॉलेजों के लिए सीडीसी और निजी प्रबंधन को पूर्ण स्वायत्तता दी है। उन्होंने हमें इस मामले में बेवजह घसीटा है। चीफ जस्टिस : सरकारी आदेश की पृष्ठभूमि क्या है? इस सब की क्या आवश्यकता थी? एजी : आवश्यकता सीडीसी द्वारा पारित प्रस्तावों के कारण थी।
03:44 PM (IST) Feb 18
सीजे ने पूछा - सरकार ने ड्रेस निर्धारित की, एजी ने बताया - सरकारी स्कूलों की
जस्टिस दीक्षित ने टिप्पणी की कि आदेशों को वैसे ही पढ़ा जाना चाहिए जैसे वे हैं। इस पर नवदगी ने बताया कि जीओ के मुताबिक राज्य सरकार ने आदेश दिया है कि सरकारी स्कूलों में छात्र सरकार द्वारा निर्धारित यूनिफॉर्म पहनेंगे। निजी स्कूलों के संबंध में वे वही पहनेंगे जो प्राइवेट स्कूल ने निर्धारित किया है। चीफ जस्टिस : सरकार ने निर्धारित (यूनिफॉर्म)किया है। एजी : हमारे पास सरकारी स्कूल हैं। विद्या विकास योजना के तहत सरकार वास्तव में निशुल्क यूनिफॉर्म देती है। पहला भाग केवल स्कूलों के लिए है। जहां तक पीयूसी कॉलेजों की बात है तो संबंधित कॉलेज के सीडीसी द्वारा निर्धारित यूनिफॉर्म का पालन किया जाना चाहिए।
03:41 PM (IST) Feb 18
नवदगी ने कहा- हमारा आदेश किसी का अधिकार प्रभावित नहीं करता
नवदगी ने बताया कि कॉलेज में अशांति जारी रही, जिसके कारण 31 जनवरी को कॉलेज विकास समिति द्वारा एक और प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में कहा गया कि बच्चों को हिजाब नहीं पहनना चाहिए और अगर माता-पिता लड़कियों को हिजाब के साथ भेजते हैं तो अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। यह प्रस्ताव को लेकर इस अदालत या किसी अन्य मंच के समक्ष चुनौती नहीं दी गई है।
नवदगी ने कहा कि 31 जनवरी तक यह मामला तब तक यह मामला अन्य संस्थानों में फैल चुका था। राज्य को हस्तक्षेप के लिए कहा गया। अनुमान लगाया जा रहा था कि राज्य इस मामले में कुछ कर रहा है और इस मामले में हस्तक्षेप कर रहा है। विरोध और प्रदर्शन जारी रहे। इसी के चलते आदेश पारित किया गया है। हमारा निवेदन है कि सरकारी आदेश हानिरहित है और याचिकाकर्ता के किसी भी अधिकार को प्रभावित नहीं करता है।
03:36 PM (IST) Feb 18
लड़कियों ने नहीं मानी कॉलेज समिति की बात, जारी रखा हिजाब पहनना
इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद, उन्होंने (मुस्लिम छात्र) जिद जारी रखी और प्रस्ताव का पालन नहीं किया। जब सरकार को इस मुद्दे की संवेदनशीलता के बारे में बताया गया, तो हमने कहा कि हम विभिन्न मुद्दों और अदालती फैसलों की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करेंगे। तब तक हमने यथास्थिति बनाए रखने को कहा। 25 जनवरी 2022 को कॉलेज विकास समिति ने एक और प्रस्ताव पारित किया। यथास्थिति का पालन करने का निर्णय लिया गया। अभिभावकों से गुहार लगाई गई थी कि कृपया पहले की तरह यूनिफॉर्म का पालन करें। दिलचस्प बात यह है कि इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद यह वर्तमान रिट याचिका दायर की गई थी। उस समय सरकारी आदेश नहीं निकाला गया था।
03:32 PM (IST) Feb 18
यह कॉलेज सिर्फ लड़कियों का, अनुशासन के लिए ड्रेस कोड लागू किया गया : नवदगी
एजी ने बताया कि लड़कियों के इस रवैसे के कारण सीडीसी ने 1 जनवरी, 2022 को एक प्रस्ताव पारित किया। वे इस पर पूरी गंभीरता और सही परिप्रेक्ष्य में विचार करना चाहते थे। इसमें कहा गया है कि 1985 से अब तक सभी छात्राओं ने यूनिफॉर्म पहनी है और इस बारे में कोई सवाल ही नहीं उठाया गया। यह कॉलेज केवल लड़कियों के लिए है और यूनिफॉर्म अनुशासन के लिए लागू की गई थी। अभिभावकों से अनुरोध किया गया कि वे अपने बच्चों को यूनिफॉर्म में ही कॉलेज भेजें।
03:29 PM (IST) Feb 18
दिक्कत 2021 में तब शुरू हुई, जब छात्राओं ने प्रिंसिपल से कहा- हिजाब पहनकर आएंगे
एजी : 2018 के सीडीसी प्रस्ताव में यूनिफॉर्म को लेकर 2018 में एक प्रस्ताव पारित हुआ था। समान यूनिफॉर्म रखने का संकल्प लिया गया। लड़कियों के लिए स्कूल यूनिफॉर्म निर्धारित की गई थी। उस समय किसी को दिक्कत नहीं हुई। 2021 तक कोई परेशानी नहीं हुई। परेशानी तब हुई जब छात्राओं के एक समूह ने जोर देकर कहा कि वे हिजाब पहनकर कॉलेज में प्रवेश करेंगे और इस संबंध में प्रिंसिपल को सूचित किया।
एजी ने बताया कि यह लड़कियों के कॉलेज का मामला है। को एड कॉलेज का नहीं। यहां 956 लड़कियां पढ़ती हैं।
03:19 PM (IST) Feb 18
महाधिवक्ता ने बताया - उडुपी में 2014 में लागू हुई थी नई यूनिफॉर्म
सीजे अवथी: हम सरकारी आदेश जारी करने के पीछे का तर्क जानना चाहते हैं। नवदगी : हम सरकारी आदेश की पृष्ठभूमि का पता लगाना चाहते हैं। यह सरकारी पीयू कॉलेज उडुपी पर केंद्रित है। यहां यूनिफॉर्म 2013 से लागू है। कॉलेज विकास समिति छात्राओं की यूनिफॉर्म में बदलाव करने की मंजूरी दी थी। मैं बताने की कोशिश कर रहा हूं कि साल 2013-14 में ही यूनिफॉर्म लागू कर दी गई थी। जस्टिस दीक्षित : अधिनियम की योजना के तहत कॉलेज विकास समिति की शुचिता क्या है। एजी : जहां तक सीडीसी का पता लगाने का सवाल है, मैं इसे कर्नाटक शिक्षा अधिनियम के संबंध में अदालत के संज्ञान में लाऊंगा।
एजी : वर्तमान में, मैं तथ्यात्मक पृष्ठभूमि और सरकारी आदेश दिखा रहा हूं।
(नवदगी ने कॉलेज विकास समिति कैसे अस्तित्व में आई, इसकी सदस्यता पर सरकार द्वारा जारी सर्कुलर को पढ़ा)
चीफ जस्टिस : इस सर्कुलर को चुनौती नहीं दी गई थी? एजी : नहीं।
03:13 PM (IST) Feb 18
हिजाब बैन किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं : महाधिवक्ता
महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी : जैसा कि मैंने समझा है, यह विवाद 3 श्रेणियों में आता है। सबसे पहले, सरकारी आदेश दिनांक 5.02.2022 पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है। मैं बताना चाहता हूं कि यह कर्नाटक शिक्षा अधिनियम के अनुरूप है।
दूसरा - अनुच्छेद 25 के तहत मौलिक अधिकारों के एक हिस्से के रूप में हिजाब पहनने से संबंधित मुख्य मुद्दा है। हम यह मानते हैं कि हिजाब इस्लाम की एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है।
तीसरा तर्क यह है कि हिजाब पहनने के अधिकार को अनुच्छेद 19(1)(ए) से जोड़ा जा सकता है और इसे रोकना अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन करता है।
हम कहते हैं यह अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है।
03:07 PM (IST) Feb 18
अल्संख्यक शिक्षा संस्थान प्रबंधन महासंघ ने अपनी याचिका प्रस्तुत की
कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान प्रबंधन महासंघ के वकील ने अपनी दलीलें शुरू कीं। चीफ जस्टिस ने पूछा - क्या यह एक पंजीकृत निकाय है? वकील ने बताया - हां- यह 2006-07 में पंजीकृत किया गया था। चीफ जस्टिस : सोसायटी की ओर से याचिका दायर करने के लिए एसोसिएशन के लिए अधिकार पत्र कहां है? सीजे अवस्थी वकील : मैं अधिकार पत्र प्रस्तुत करूंगा। चीफ जस्टिस : जब हम पूछते हैं तो आप लोग कहते हैं कि हम इसे प्रस्तुत करेंगे। जब तक आप याचिका दायर करने का निर्णय लेने वाले और व्यक्ति को याचिका दायर करने के लिए अधिकृत करने वाली समिति का संकल्प नहीं दिखाते, तब तक याचिका सुनवाई योग्य नहीं होगी। आप हमारा समय बर्बाद कर रहे हैं। वकील : कृपया इसके लिए मुझे सोमवार तक का समय दें। चीफ जस्टिस : आप हमारा समय बर्बाद कर रहे हैं।
महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने प्रतिवादियों की तरफ से दलीलें शुरू कीं।
02:58 PM (IST) Feb 18
याचिकाकर्ता ने मांगी नई याचिका दायर करने की अनुमति
चीफ जस्टिस : आप एक उचित याचिका दायर करें। अहमद : कृपया मुझे एक नई याचिका दायर करने की अनुमति दें। बेंच : याचिकाकर्ता को नई याचिका दायर करने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाती है। इसके बाद अधिवक्ता कीर्ति सिंह ने दो याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें दीं। इनमें एक महिला संगठन और दूसरी 3 बेटियों वाली एक मुस्लिम महिला की तरफ लगाई गई हैं।
कीर्ति सिंह ने कहा- उस घोषणापत्र में एक छोटी सी त्रुटि थी, जिसे दायर नहीं किया गया था। हमें घोषणा मिल गई है और इसे दायर किया जाएगा और फिर इसे सुना जा सकता है। चीफ जस्टिस : कुछ कार्यालय की आपत्तियां भी हैं। कार्यालय की आपत्तियों को दूर करने के लिए हम आपको समय देंगे।