सार

डॉक्टरों को भगवान तुल्य माना जाता है, क्योंकि धरती पर यही एक इंसान होता है, जो लोगों की जान बचाता है। कोरोनाकाल में इन धरती के भगवान की अहमियत सब देख चुके हैं। भारत में भगवान यानी डॉक्टरों की अभी भी कमी है। लेकिन दिल्ली की इस फैमिली मिलिए! इस परिवार में 1-2 नहीं, अब तक 140 लोग डॉक्टर(One family, 140 doctors) बन चुके हैं।

नई दिल्ली. ये तस्वीर दिल्ली की सभरवाल फैमिली की है। इस फैमिली ने 1919 से अब तक यानी पांच जेनेरेशन ने डॉक्टर की फील्ड(medicine as their profession) को अपने पेशे के रूप में चुना है। परिवार के सबसे बुजुग मेंबर डॉ. रविंदर सभरवाल एक सर्जन रहे हैं। एक बार उन्होंने मीडिया को बताया था कि यह सिलसिला उनके परदादा लाला जीवनमल सभरवाल के साथ शुरू हुआ, जो लाहौर में स्टेशन मास्टर थे। एक दिन जब उन्होंने गांधीजी को हेल्थ और एजुकेशन के बारे में बात करते हुए सुना, तो दादाजी ने एक अस्पताल बनाने का फैसला किया। फिर उन्होंने जोर दिया कि उनके चारों बेटे मेडिकल की पढ़ाई करें। इस तरह परिवार के पहले डॉक्टर डॉ. बोधराज का जन्म 1919 में हुआ।

हर जेनेरेशन के लिए मेडिकल एजुकेशन अनिवार्य कर दी
डॉ. रविंदर ने बताया कि डॉ. बोधराज ने तब फैसला किया कि हर आने वाली पीढ़ी को मेडिसिन का अध्ययन करना होगा और हर बेटे को डॉक्टर दुल्हन से ही शादी करनी होगी। आजादी के बाद यह फैमिली दिल्ली आ गई। भारत-पाक विभाजन के बाद फैमिली ने 5 और अस्पताल खोले। हर हॉस्पिटल का नाम परिवार के मुखिया के नाम पर रखा गया। डॉ. रविंदर की वाइफ और स्त्री रोग विशेषज्ञ 68 वर्षीय डॉ. सुदर्शना( gynecologist Dr Sudarshana) ने कहा-शुरू में बेशक इसे लेकर विद्रोह हुआ। जो लड़के डॉक्टर नहीं बनना चाहते थे, अन्य जो गैर-डॉक्टर लड़कियाों से शादी करना चाहते थे, उन्होंने नाराजगी जताई। लिहाजा फैमिली की एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई। कुछ लोग आगे-पीछे हुए, लेकिन बाद में सब राजी हो गए।  एक बेटे ने बायोकेमिस्ट से शादी कर ली थी, लेकिन उसने शादी के कई सालों बाद अंततः मेडिसिन का अध्ययन करने का फैसला किया। 30 वर्षीय स्त्री रोग विशेषज्ञ और परिवार की चौथी पीढ़ी की बहू डॉ. शीतल ने बताया कि वह लोगों की पूछताछ से तंग आ गई थी कि वह डॉक्टर क्यों नहीं थी?

इस तरह बढ़ती गई यह परंपरा
परिवार ने अपनी यह अनूठी परंपराएं जारी रखी। जब तक डॉ. बोधराज जीवित रहे, मेडिकल कॉलेज में चौथे वर्ष में पढ़ रहे परिवार के प्रत्येक सदस्य को वे आशीर्वाद के तौर पर एक नया स्टेथोस्कोप देकर पुरस्कृत करते थे।  55 वर्षीय नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. विकेश ने कहा कि उन्हें(डॉ. बोधराज) हम लोगों को डॉक्टर बनाने का जुनून था। वे हमें केले के पेड़ पर इंजेक्शन लगाने का अभ्यास कराते थे।  एक दिलचस्प बात यह भी है कि इस परिवार के बच्चों के लिए डिनर-टेबल पर बातचीत हमेशा से मेडिकल या हॉस्पिटल पर केंद्रित होती है। परिवार की एक बेटी 39 वर्षीय डॉ शिनू राणा, जो अब अमेरिका में रहती हैं ने कहा- “मुझे ऑपरेशन थिएटर के अंदर अपना होमवर्क करना याद है।"

नामकरण भी अब A से ही
56 वर्षीय सर्जन डॉ. विनय सभरवाल ने कहा कि उनका और उनके भाइयों का नाम V अक्षर से रखा गया था। लेकिन मेडिकल स्कूल में इसका मतलब रोल कॉल में सबसे नीचे था। जब भी हमें मौखिक परीक्षा के लिए जाना होता, हमारे नाम आने तक शिक्षक थक जाते थे। इसलिए मैंने अपने बेटों के नाम A अक्षर से शुरू करने का फैसला किया और फिर बाकियों ने भी इसे फॉलो किया। हालांकि इस पीढ़ी के पैरेंट्स को नहीं मालूम कि उनके बच्चे 90 साल पुरानी परंपरा का आगे पालन करेंगे या नहीं।

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