सार
महाराष्ट्र में मंगलवार को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है। महाराष्ट्र में पिछले 39 सालों में यह तीसरी बार है जब अल्पमत के कारण प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। हालांकि यह पहला मौका है जब चुनाव के ठीक बाद सरकार का गठन न होने के कारण प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ है।
मुंबई. महाराष्ट्र में 24 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद से सरकार गठन को लेकर चल रही सियासी खींचतान अब राष्ट्रपति शासन के साथ समाप्त हो गई है। पिछले 18 दिनों से मुख्यमंत्री के पद को लेकर चल रही गहमागहमी, सोमवार और मंगलवार को अपने चरम पर रही। सोमवार सुबह से ही महाराष्ट्र की राजनीति में पल-पल नए रंग देखने को मिलें। कभी हां-कभी न के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर मानों म्युजिकल चेयर का खेल चल रहा हो। हालांकि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर जारी ये रस्साकसी का दौर कोई नया नहीं है। इससे पहले भी ऐसी स्थितियां कई बार आ चुकी है।
दो बार लग चुका है राष्ट्रपति शासन
महाराष्ट्र में सबसे पहले 17 फरवरी 1980 को और 28 सितंबर 2014 को राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। राज्य में पहली बार 17 फरवरी 1980 को तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार के पास विधानसभा में पर्याप्त बहुमत न होने के कारण सदन भंग कर दिया गया था। जिसके बाद राज्य में 17 फरवरी से 8 जून 1980 तक यानी 112 दिनों तक राष्ट्रपति शासन लागू था। जबकि दूसरी बार राज्य में 28 सितंबर 2014 को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। उस वक्त राज्य की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने अपने सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सहित अन्य दलों के साथ अलग हुआ था और विधानसभा को भंग किया गया था। जिसके कारण दूसरी बार राज्य में 28 सितंबर 2014 से लेकर 30 अक्टूबर तक यानी 32 दिनों तक राष्ट्रपति शासन लागू था।
दो सीएम ने ही पूरा किया कार्यकाल
महाराष्ट्र पहले भी कई बार इस तरह के राजनीतिक संकट का सामना कर चुका है। यही वजह है कि महाराष्ट्र में जैसे-तैसे सरकार तो बन जाती है, लेकिन उसे चला पाना हमेशा टेढ़ी खीर साबित हुई है। यही वजह है कि महाराष्ट्र में अब तक केवल दो मुख्यमंत्री ही अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर सके हैं। इसमें एक नाम वर्तमान कार्यवाहक मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का शामिल है। मौजूदा राजनीतिक संकट के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर जो नए समीकरण बन रहे हैं, वो इशारा कर रहे अगर किसी तरह सरकार बन भी गई तो बहुत संभव है कि अस्थिर सीएम का इतिहास फिर से दोहराया जाए।
नहीं काम आया फार्मूला
महाराष्ट्र में सीएम की कुर्सी को लेकर जारी लड़ाई की वजह से पहले भी सरकार बनाने में कई बार देरी हो चुकी है। इस बार महाराष्ट्र ने सरकार गठन में देरी का रिकॉर्ड बना दिया है। 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ गए थे। नतीजों में भारतीय जनता पार्टी ने 105 सीटें जीतकर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। दूसरे नंबर पर भाजपा की 35 साल पुरानी साथी शिवसेना है, जिसे 56 सीटें हासिल हुई। आंकड़ों में भाजपा-शिवसेना, बहुमत के काफी आगे है। बावजूद मुख्यमंत्री पद को लेकर सहयोगी दलों की खींचतान में 18 दिन बीत गए। अब राज्य में जो नए समीकरण बन रहे हैं, उसमें शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस द्वारा सरकार बनाने की कवायद जोरों पर चल रही है। सोमवार और मंगलवार को दिन भर तीनों पार्टियों की आपसी और अंदरूनी बैठकों का दौर जारी रहा। हालांकि, शाम छह बजे तक कोई नतीजा नहीं निकला था। दरअसल नई सरकार में हर दल खुद को राज्य में ज्यादा मजबूद दिखाना चाहता है, इसलिए सरकार बनाने का हर फार्मूला फिलहाल कमजोर पड़ जा रहा है।
पहले भी सरकार बनाने में हुई देरी
महाराष्ट्र में चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद सरकार गठन में देरी का ये कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी 1999 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद सरकार गठन में 11 दिनों की देरी हुई थी। तब एनसीपी राज्य में नई पार्टी के तौर पर उभरी थी और उसने कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में एनसीपी को 58 और कांग्रेस को 75 सीटें मिली थीं। वहीं भाजपा-शिवसेना गठबंधन को 125 सीटें मिलीं थीं। शिवसेना के खाते में 69 और भाजपा के खाते में 56 सीटों पर जीत हासिल की थी। उस दौरान भी सियासी रस्साकसी अपने चरम पर थी। हालांकि 18 अक्टूबर को कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन ने कुछ निर्दलीय विधायकों संग विलासराव देशमुख के नेतृत्व में प्रदेश को नई सरकार दी थी।
2004 में लगा था 16 दिन
वर्ष 2004 में भी महाराष्ट्र में सरकार गठन में 16 दिन का समय लग गया था। उस दौरान भाजपा-शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। दोनों को क्रमशः 126 और 140 सीटें मिली थीं। उस वक्त भी कांग्रेस-एनसीपी कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बड़े ही सरलता से सरकार बना सकती थी। 2019 चुनाव के नतीजे आने के बाद जैसी भाजपा-शिवसेना गठबंधन की स्थिति है, 2004 में ठीक यही स्थिति राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की थी। ज्यादा सीटें होने की वजह से एनसीपी सीएम पद पर अड़ गई। 16 दिन की जद्दोजहद के बाद किसी तरह विलासराव देशमुख ने सीएम का पद संभाल लिया, लेकिन मंत्रीमंडल के बंटवारे में इसके बाद भी खींचतान जारी रही। नतीजा ये हुआ कि सीएम के शपथ लेने के बाद भी कैबिनेट गठन में 13 दिन का वक्त लग गया था।
दो मुख्यमंत्रियों ने ही पूरा किया कार्यकाल
महाराष्ट्र के राजनीतिक दंगल में अब तक दो ही मुख्यमंत्री ऐसे हुए हैं, जिन्होंने पांच साल सरकार चलाई है। कार्यकाल पूरा करने वाले पहले मुख्यमंत्री थे, वसंतराव नाइक और दूसरे हैं देवेंद्र फडणवीस। वसंतराव नाइक ने राज्य में सबसे लंबे समय तक 11 साल 77 दिनों तक लगातार सीएम की कुर्सी संभाली है। इसके अलावा बाकी मुख्यमंत्री कभी 50-50 फार्मूले की वजह से तो कभी गठबंधन टूटने की वजह से कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। वहीं कई बार मौजूदा सीएम को केंद्र में बुला लिए जाने की वजह से एक ही कार्यकाल में दो या उससे ज्यादा मुख्यमंत्रियों को राज्य की कमान संभालनी पड़ी।