सार

आज के समय में बच्चों में भी तनाव और डिप्रेशन की समस्या बढ़ती जा रही है। कई बार ऐसा पेरेंट्स के गलत व्यवहार की वजह से होता है।
 

लाइफस्टाइल डेस्क। आजकल बच्चों में भी तनाव और डिप्रेशन की समस्या देखी जा रही है। यहां तक कि मिडल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी तनाव में रहने लगे हैं। अब शुरुआत से ही बच्चों को कड़े कॉम्पिटीशन का सामना करना पड़ता है। पेरेंट्स की अपेक्षाएं भी उनसे ज्यादा होती हैं। बहुत पहले से ही बच्चों पर उनके पेरेंट्स अपनी इच्छाएं लादने लगते हैं। बच्चों की रुचि क्या है, उनका स्वभाव किस तरह का है, इसे देखने का उनके पास समय नहीं होता। अक्सर वे बहुत छोटे बच्चों से भी कहते हैं कि तुम्हें बड़ा होकर क्या बनना है, जिसका मतलब तक बच्चे नहीं जानते। बच्चे जब स्कूल जाने लगते हैं तो वहां उन्हें एक अलग ही माहौल मिलता है। शुरुआती दौर में कोई बच्चे का करियर तय नहीं कर सकता। अगर पेरेंट्स मिडल स्कूल में पढ़ने वाले अपने बच्चों का करियर तय कर उस पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं तो बच्चे का तनाव और डिप्रेशन में आ जाना स्वाभाविक है। ऐसा होने पर बच्चे के साथ परेशानी तो होती ही है, पेरेंट्स के लिए भी समस्याएं बढ़ जाती हैं। बच्चे का स्वाभाविक विकास हो और वह तनाव का शिकार नहीं बने, इसके लिए पेरेंट्स को कम से कम तीन बातों से बचना चाहिए।

1. बच्चे पर पढ़ाई या होमवर्क पूरा करने का दबाव ना बनाएं
कोई भी बच्चा स्वाभाविक तौर पर जितनी पढ़ाई कर सकता है, खुद करता है। उसे भी अपनी जिम्मेदारी पता होती है। बच्चे को स्कूल में जो काम दिया जाता है, उसे पूरा करने के लिए वह प्लान बना लेता है। अगर वह ऐसा नहीं करेगा तो क्लास में उसे सबके सामने शर्मसार होना होगा। इसलिए आप देख लें कि बच्चे ने अपना काम पूरा किया या नहीं। अगर उसने काम पूरा नहीं किया हो तो उससे पूछें कि वह कब करेगा। इसे लेकर उसे डांटें-फटकारें नहीं, ना ही दबाव बनाएं। 

2. उसकी रुचि का काम करने से रोकें नहीं
अगर बच्चा पढ़ाई से अलग कोई काम कर रहा है तो देखें कि क्या कर रहा है। कई बार बच्चे चित्र बनाते हैं। बच्चे संगीत सुनते हैं या कोई ऐसी किताब पढ़ते हैं जो उनके कोर्स से अलग हो। ऐसे बच्चे क्रिएटिव होते हैं। अगर इन बच्चों पर दबाव नहीं बनाया जाए तो पढ़ाई में बेहतर करने के साथ ये कुछ ऐसे काम करते हैं, जो साहित्य, संगीत या कला के क्षेत्र में उन्हें आगे ले जाता है। ऐसे बच्चे बड़े होकर किसी न किसी क्षेत्र में जरूर कोई बड़ी उपलब्धि हासिल करते हैं।

3. दूसरे बच्चों से तुलना नहीं करें
आम तौर पर पेरेंट्स की आदत होती है कि वे दूसरे बच्चों से अपने बच्चे की तुलना करते हैं। ऐसा करते हुए वे अपने बच्चों में कमियां निकालते हैं और दूसरे बच्चे की खूबियां गिनवाते हैं। ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। हर बच्चा एक-दूसरे से पूरी तरह अलग होता है। जब आप ऐसी तुलना करेंगे तो आपके बच्चे के मन में हीन भावना पैदा होने लगेगी। अगर बच्चे के मन में हीन भावना ने जड़ जमा लिया तो इससे उसके व्यक्तित्व के विकास पर गलत असर पड़ेगा। वह सहमा-सकुचाया रहेगा और कभी भी खुल कर किसी से  बात नहीं कर पाएगा। अगर आप हमेशा अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से कर के उसे कमतर ठहराने की कोशिश करेंगे तो वह तनाव और डिप्रेशन का शिकार हो सकता है।