सार

सुख और दुख, जीवन की दो अवस्थाएं हैं। हर व्यक्ति के जीवन में सुख और दुख का आना-जाना लगा रहता है।

उज्जैन. आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में बताया है कि हमें भविष्य के कष्टों से बचने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और कौन-कौन सी बातें इंसान को दुख प्रदान कर सकती हैं। इन बातों का ध्यान रखने पर व्यक्ति को जीवन में कामयाबी हासिल हो सकती है और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

आचार्य चाणक्य कहते हैं-
कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्टं च खलु यौवनम्।
कष्टात् कष्टतरं चैव परगेहे निवासनम्।।

अर्थात- मूर्खता कष्ट है, यौवन भी कष्ट है, किन्तु दूसरों के घर में रहना कष्टों का भी कष्ट है।

मूर्ख को बार-बार होना पड़ता है अपमानित
किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा दुख है मूर्ख होना। यदि कोई व्यक्ति मूर्ख है तो वह जीवन में कभी भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। उसे जीवन में हर कदम दुख और अपमान ही झेलना पड़ता है। बुद्धि के अभाव में इंसान कभी उन्नति नहीं कर सकता। अत: अज्ञान को दूर करने का प्रयास करना चाहिए और ज्ञान का सही दिशा में उपयोग करना चाहिए।

जवानी भी हो सकती है दुखदायी
आचार्य चाणक्य ने जवानी को भी एक कष्ट बताया है। जवानी भी दुखदायी हो सकती है, क्योंकि जवानी में व्यक्ति में अत्यधिक जोश और क्रोध होता है। कोई व्यक्ति जवानी के इस जोश को सही दिशा में लगाता है, तब तो वह निर्धारित लक्ष्यों तक अवश्य ही पहुंच जाएगा। इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति जवानी के जोश और क्रोध के वश होकर गलत कार्य करने लगता है तो वह बड़ी परेशानियों में घिर सकता है। अत: जवानी के जोश को गलत दिशा में नहीं, बल्कि सही दिशा में लगाना चाहिए।


पराए घर में रहना भी है दुख का कारण
इन दोनों दुखों से कहीं अधिक दुख देने वाली बात है, किसी पराए घर में रहना। यदि कोई व्यक्ति किसी पराए घर में रहता है तो व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की मुश्किलें सदैव बनी रहती हैं। दूसरों के घर में रहने से स्वतंत्रता पूरी तरह खत्म हो जाती है। ऐसे में इंसान अपनी मर्जी से कोई भी कार्य नि:सकोच रूप से नहीं सकता है। अत: हमें पराए घर में रहने से बचना चाहिए।