सार

Jagannath Rath Yatra 2023: हर साल उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ का मंदिर चार धामों में से एक है। इसलिए यहां प्रतिदिन हजारों लोग दर्शन करने आते हैं। रथयात्रा के दौरान यहां लाखों लोग पहुंचते हैं।

 

उज्जैन. हिंदू धर्म में 4 धामों की मान्यता है। इन 4 धामों में से एक है उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर। ये मंदिर अपनी कई विशेषताओं के चलते प्रसिद्ध है। आषाढ़ मास में निकलने वाली रथयात्रा देखने के लिए यहां लाखों लोग इकट्ठा होते हैं। इस बार ये रथयात्रा 20 जून, मंगलवार से शुरू हो रही है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस रथयात्रा के दर्शन करता है, वह जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त हो जाता है। आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…

2 दशक में एक बार बदली जाती है देव प्रतिमाएं (Interesting facts about Jagannath Rath Yatra)
ये बात सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन ये बिल्कुल सच है। भगवान जगन्नाथ के मंदिर में स्थित देव प्रतिमाएं हर 20 साल में बदल दी जाती है। ऐसा तब होता है जब आषाढ़ का अधिक मास होता है। ऐसा संयोग 19-20 सालों में एक बनता है। आषाढ़ मास के एक भव्य उत्सव के दौरान पुरानी प्रतिमाओं को हटाकर वहां नई प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। इस उत्सव को नव कलेवर कहते हैं। देव प्रतिमाओं का निर्माण करते समय कई बातों का ध्यान रखा जाता है।

बहुत रहस्यमयी है मूर्तियां बदलने की परंपरा (Interesting facts about Lord Jagannath)
जब भी भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा बदली जाती है तो कई बातों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। ये प्रक्रिया बहुत ही रहस्यमयी होती है। कोई भी व्यक्ति इस प्रक्रिया को देख नहीं पाता है यहां तक कि स्वयं पुजारी भी नहीं। जब भगवान की पुरानी मूर्तियां हटाकर नई मूर्तियां स्थापित करने का समय आता है तो उस समय समय पूरे शहर की बिजली बंद कर दी जाती है और मंदिर के आस-पास भी अंधेरा कर दिया जाता है। इस दौरान मंदिर सिर्फ वही पुजारी मंदिर में होते हैं, जो प्रतिमा बदलते हैं।

भगवान का दिल है ब्रह्म पदार्थ
सबसे हैरान कर देने वाली बात ये होती है तो जो पुजारी भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा बदलते हैं उनकी आंखों पर भी पट्टी बांध दी जाती है और उनके हाथों पर दस्ताने पहनाए जाते हैं। इसके बाद मूर्तियां बदलने की प्रक्रिया शुरू होती है। पुजारी भगवान की पुरानी प्रतिमा से ब्रह्म पदार्थ निकालकर नई प्रतिमा में स्थापित करते हैं। ब्रह्म पदार्थ को भगवान का दिल कहा जाता है। जब पुजारी इसे हाथ में लेकर नई प्रतिमा में डालते हैं तो वह धड़कता हुआ महसूस होता है। हालांकि आज तक किसी ने इस ब्रह्म पदार्थ को देखा नहीं है।



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