सार
Last Monday of Sawan 2022: 8 अगस्त को सावन का अंतिम सोमवार है। ये दिन शिव भक्तों के लिए बहुत ही विशेष है। इस दिन की गई शिव पूजा बहुत ही फलदाई रहती है। इस दिन पुत्रदा एकादशी का शुभ योग भी बन रहा है।
उज्जैन. आज (8 अगस्त) सावन 2022 का अंतिम सोमवार (Sawan Last Somwar 2022) है। शिव भक्तों के लिए ये दिन बहुत ही खास है क्योंकि इसके बाद सावन सोमवार का योग अगले साल यानी 2023 में बनेगा। वैसे तो पूरा सावन ही भगवान शिव को प्रिय है, लेकिन इस महीने में आने वाले प्रत्येक सोमवार की बात ही कुछ और है। इस दिन की गई शिव पूजा जन्मों जन्म के दुख दूर कर देती है और हर महादेव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की हर कामना पूरी कर देते हैं। इस बार सावन के अंतिम सोमवार पर पुत्रदा एकादशी का योग भी बन रहा है जो बहुत शुभ फल देने वाला है। आगे जानिए सावन के अंतिम सोमवार की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त योग व अन्य खास बातें…
सावन के अंतिम सोमवार के शुभ मुहूर्त (Sawan Last Somwar 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, 8 अगस्त को अभिजित मुहूर्त दोपहर 12.06 PM से 12.59 तक रहेगा। गोधूलि मुहूर्त शाम 06.57 से 07.21 तक रहेगा। इस दिन रवि योग भी रहेगा, जो सुबह 05.46 से शुरू होकर दोपहर 02.37 तक रहेगा।
सावन के चौथे सोमवार की पूजा विधि (Shiv Puja Vidhi on Sawan Somwar)
- सावन के अंतिम सोमवार यानी 8 अगस्त की सुबह नित्य कर्मों से निपटकर भगवान शिव का सामने जाकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। जिस तरह का व्रत आप करना चाहते हैं, उसी के अनुसार संकल्प लें, इस बात का ध्यान रखें।
- इसके बाद अपने घर पर ही या किसी मंदिर में शिवलिंग की पूजा करें। सबसे पहले शुद्ध जल चढ़ाएं, इसके बाद पंचामृत। इसके बाद फिर से एक बार शुद्ध जल चढ़ाकर शिवजी की स्तुति करें। मन ही मन ऊं नम: शिवाय का जाप करते रहें।
- इसके बाद शिवलिंग के समीप शुद्ध घी का दीपक लगाएं। अब एक-एक करके बिल्व पत्र, आंकड़े के फूल, धतूरा, भांग, इत्र, हार- फूल आदि चीजें चढ़ाएं। अंत में भोग लगाकर आरती करें।
- पूजा करते समय इस बात का ध्यान रखें कि इस दौरान कोई बुरा विचार मन में न आए, नहीं तो पूजा का पूरा फल नहीं मिल पाएगा। इस तरह की गई शिव पूजा आपकी हर कामना पूरी कर सकती है।
करें शिव चालीसा का पाठ (Shiv Chalisa)
आज सावन का अंतिम सोमवार है और साथ ही कई शुभ योग भी इस दिन बन रहे हैं। इस दिन शिव चालीसा का पाठ करना सभी के लिए शुभ फलदाई रहेगा। शिव चालीसा का पाठ करने के लिए घर में किसी एकांत स्थान का चयन करें और मन में शिव का ध्यान करते हुए चालीसा का पाठ करें।
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,देहु अभय वरदान॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये।मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी।बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा।तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई।अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई।नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन।मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय।सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई।निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही,पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान।
स्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण॥
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