सार
दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी आम आदमी पार्टी के मजबूत गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश में है। केजरीवाल सरकार की योजनाओं के सामने बीजेपी क्या रणनीति अपनाएगी?
दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान होगा और 8 तारीख को नतीजे आ जाएंगे। यानी दिल्ली की सत्ता का फैसला अगले एक महीने में हो जाएगा।भारतीय जनता पार्टी आम आमदी पार्टी के मजबूत गढ़ दिल्ली में सेंध लगाने की भरसक कोशिश कर रही है। बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है लेकिन प्रचार में अपने सबसे बड़े नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मैदान में उतार दिया है। लगभग तीन दशक से दिल्ली की सत्ता से दूर भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर दिल्ली की राजनीति में अपने अस्तित्व को मजबूत करने और आम आदमी पार्टी (आप) के प्रभाव को चुनौती देने की कोशिश कर रही है। साल 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने राजधानी में नए सिरे से रणनीति बनाने की कवायद तेज कर दी है।
आप की बढ़त और बीजेपी की चुनौतियां
दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी का दबदबा पिछले एक दशक में मजबूत हुआ है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली पार्टी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 62 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी केवल आठ सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा, और वह एक भी सीट नहीं जीत सकी।
बीजेपी के लिए यह स्थिति एक बड़ी चुनौती है, खासकर जब आप की सरकार दिल्ली के शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सेवाओं पर केंद्रित योजनाओं को जनता के बीच बड़ी सफलता के रूप में प्रस्तुत कर रही है। चुनावों से ठीक पहले आम आदमी पार्टी ने महिलाओं को हर महीने 2100 रुपए की आर्थिक मदद देने की घोषणा करके दिल्ली के चुनावी माहौल को और गर्मा दिया है।
बीजेपी की रणनीति
दिल्ली के नगर निगम चुनावों में बेहतर प्रदर्शन के बाद बीजेपी का फोकस अब राज्य की राजनीति पर है। पार्टी राज्य स्तर पर "स्थानीय चेहरे" को बढ़ावा देने और जमीनी स्तर पर मुद्दों को भुनाने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके तहत पार्टी के नेता केंद्रीय योजनाओं और दिल्ली सरकार के कथित "विफलताओं" को उजागर कर रहे हैं। बीजेपी ने आम आदमी पार्टी की सरकार को नाकाम बताते हुए कई आक्रामक विज्ञापन भी जारी किए हैं।
पार्टी ने आप सरकार पर आरोप लगाया है कि वह भ्रष्टाचार, जल और बिजली संकट जैसे मुद्दों को हल करने में नाकाम रही है। वहीं, बीजेपी ने "डबल इंजन सरकार" का नारा देते हुए जनता को केंद्र और राज्य में एकसमान सरकार की संभावनाओं की तरफ खींचने की कोशिश भी की है।
क्या कांग्रेस भी मैदान में है?
दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस का प्रभाव बीते सालों में लगभग समाप्त हो चुका है। हालांकि, पार्टी अब फिर से अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश कर रही है। प्रदेश स्तर पर नए नेतृत्व और पुनर्गठन के जरिए कांग्रेस आगामी चुनावों में मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की तैयारी कर रही है। यदि कांग्रेस कुछ सीटों पर मजबूती से लड़ पाई तो इसका सीधा नुकसान आम आदमी पार्टी को हो सकता है। आगामी चुनावों में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच कौन से मुद्दे हावी होंगे, ये दिल्ली की जनता की प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और बुनियादी सेवाओं पर आप की योजनाएं जहां एक मजबूत दावेदारी पेश करती हैं, वहीं बीजेपी के लिए यह जरूरी है कि वह आप की अपील को कमजोर करने और खुद को एक प्रासंगिक विकल्प के रूप में स्थापित करने में सफल हो।
बीजेपी ने हिंदुत्ववादी एजेंडो को भी बढ़ावा दिया है जिसके जवाब में आम आदमी पार्टी भी सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते पर चलती हुई नजर आ रही है। आप सरकार के पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना की घोषणा को इसी दिशा में उठाया एक कदम माना जा रहा है। दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव भारतीय राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी अपने अभियान को धार देकर राजधानी में अपना प्रभाव बढ़ा पाती है, या फिर आप का किला अजेय बना रहेगा। यदि बीजेपी ने दिल्ली में आप को पटखनी दे दी तो ये भारतीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव भी होगा। दिल्ली में हार आप के सामने राजनीतिक अस्तित्व बचाने का संकट भी पैदा कर सकती है।
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