सार
जोधपुर. आज से शारदीय नवरात्रि शुरु हो गई है। देवी माता के मंदिरों में भक्तों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है जो पूरे दस दिन चलने वाला है। लेकिन इन सबके बीच बात उस दिन की जो आज से सोलह साल पहले आया था, शारदीय नवरात्रि के पहले ही दिन मौत ने जो तांड़व मचाया था वह आज भी अनसुलझा है कि आखिर वो सब क्यों हुआ था। देवी को किस बात पर क्रोध आया था और क्यों लाशों के ढेर लग गए थे। यह हादसा जोधपुर में हुआ था।
मेहरानगढ़ किला के चामुंडा मंदिर में हुई थी त्रासदी
जोधपुर का मेहरानगढ़ किला अपनी ऐतिहासिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन 224 श्रद्धालुओं की मौत की एक घटना ने इसे एक त्रासदी का गवाह बना दिया। यह हादसा 30 सितंबर 2008 नवरात्रि के पहले दिन, सुबह दर्शन के समय हुआ, जब हजारों श्रद्धालु चामुंडा मंदिर की ओर दौड़ पड़े। संकरी ढलान पर भगदड़ मच गई, जिससे कई लोग फंस गए और दम घुटने से उनकी मौत हो गई।
लाशों का अंबार देख पुलिस और डॉक्टर भी हैरान थे
इस घटना के समय, श्रद्धालुओं में युवा वर्ग का बड़ा हिस्सा शामिल था जिनकी उम्र 16 से 25 वर्ष के बीच थी। जब शवों को निकाला गया, तब वे सभी खड़े मिले, जो इस बात का संकेत है कि भागदौड़ और घुटन के कारण उनकी जान गई। अस्पतालों में लाशों का अंबार लग गया और यह एक दुःखद मंजर बन गया।
आज तक यह मामला अनसुलझी पहेली बना है
इस हादसे के बाद न्यायिक जांच के लिए जस्टिस जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया। आयोग ने सिफारिश की कि मंदिर के अलसुबह दर्शन बंद किए जाएं, जिसे बाद में लागू किया गया। इसके अतिरिक्त, सुरक्षा बढ़ाने के लिए बैरिकेडिंग, सीसीटीवी कैमरे और इमरजेंसी सेवाओं का इंतजाम भी किया गया। हालांकि, घटना के बाद से कई सरकारें आईं, जांच चलती रहीं, लेकिन आज तक यह मामला अनसुलझी पहेली बना हुआ है। मौतें क्यों हुई, भगदड़ किस कारण मची, वह क्या अफवाह थी.....? इन सब सवालों का जवाब नहीं मिल सका है। हालात अब सामान्य हो चले हैं, लेकिन मेहरानगढ़ की यह त्रासदी आज भी श्रद्धालुओं के मन में खौफ भर देती है।