रायबरेली लोकसभा सीट: जहां से राजनारायण ने इंदिरा गांधी को हराने की ठान ली थी...

अगर इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो रायबरेली की सीट कई मायने में ऐतिहासिकता से भरपूर है। नेहरू-गांधी परिवार को सबसे अधिक बार अपना रहनुमा बनाने वाली यह सीट गांधी परिवार को सत्ता से बाहर करने और एक प्रधानमंत्री को हराने में मुख्य भूमिका निभा चुकी है।

 

/ Updated: May 06 2024, 07:31 AM IST
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Raebareli Lok Sabha seat history: यूपी की रायबरेली लोकसभा सीट एक बार फिर चर्चा में है। देश में इमरजेंसी की वजह बन चुकी इस सीट पर पहली बार राहुल गांधी चुनाव मैदान में हैं। अगर इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो रायबरेली की सीट कई मायने में ऐतिहासिकता से भरपूर है। नेहरू-गांधी परिवार को सबसे अधिक बार अपना रहनुमा बनाने वाली यह सीट गांधी परिवार को पहली बार सत्ता से बाहर करने का गवाह भी बनी है और एक प्रधानमंत्री को हराने में मुख्य भूमिका भी निभा चुकी है।

राजनारायण की इंदिरा गांधी को चुनौती ने इस सीट को चर्चा में लाया

आजादी के बाद रायबरेली लोकसभा सीट पर नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों या कांग्रेस पार्टी का ही कब्जा रहा। लेकिन 70 का दशक आते आते समाजवादी आंदोलन तेज हुआ। देश-दुनिया को संदेश देने के लिए ठेठ समाजवादी राजनारायण ने उस समय की सबसे शक्तिशाली लीडर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने की ठानी। साल 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में राजनारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ पर्चा भरा। हालांकि, यह चुनाव राजनारायण एक लाख से अधिक वोटों से इंदिरा गांधी से हार गए लेकिन यह हार देश में सबसे बड़े बदलाव का कारण बना। राजनारायण चुनाव तो हार गए लेकिन हार नहीं मानी। वह इस चुनाव में सरकारी कर्मचारियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए कोर्ट की शरण में पहुंचे।

फैसला आने के बाद इमरजेंसी लगी...

देश के सबसे चर्चित इस मामले में आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। फैसला इस देश का भविष्य तय कर रहा था।
हाईकोर्ट ने 1975 में न केवल चुनाव को रद्द कर दिया बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर छह साल चुनाव लड़ने का प्रतिबंध भी लगा दिया। सरकार गिरती देख इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी। राजनारायण सहित सभी विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया गया।

19 महीना बाद इमरजेंसी हटी तो फिर राजनारायण ने दी चुनौती

करीब 19 महीने के बाद इमरजेंसी हटाई गई। सभी नेता रिहा कर दिए गए और इसी के साथ आम चुनाव का भी ऐलान कर दिया गया। इंदिरा गांधी अपनी रायबरेली सीट से चुनाव मैदान में थीं। लेकिन इस बार भी राजनारायण कहां मानने वाले थे। परिणाम से बेपरवाह राजनारायण तो इंदिरा गांधी को चुनौती देने की ठान ली थी। रायबरेली ने भी राजनारायण के पक्ष में जनादेश दिया। यह परिणाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हुआ। इंदिरा गांधी अपना चुनाव हार गईं। इस हार के साथ ही राजनारायण की जिद पूरी हुई। जनता इंदिरा गांधी को इमरजेंसी के लिए सबक सिखा चुकी थी।

1980 में फिर चुनाव जीतीं इंदिरा

हालांकि, 1977 में हार के बाद इंदिरा गांधी पर रायबरेली की जनता ने फिर भरोसा जताया और 1980 में इंदिरा गांधी को भारी बहुमत से जीत दिलायी। हालांकि, इंदिरा गांधी रायबरेली के साथ आंध्र प्रदेश की मेडक सीट से भी चुनाव जीती थीं। श्रीमती गांधी ने मेडक सीट को अपने पास बरकरार रखा और रायबरेली सीट से इस्तीफा दे दिया।

रायबरेली के पहले सांसद थे फिरोज़ गांधी...

रायबरेली लोकसभा सीट पहले आम चुनाव से ही अस्तित्व में है। यहां के पहले सांसद फिरोज गांधी थे। वह लगातार दो बार यहां से सांसद चुने गए। उनके निधन के बाद यहां से गांधी परिवार की सदस्य के रूप में इंदिरा गांधी ने अपना परचम लहराया। इंदिरा गांधी 1967 में रायबरेली से लड़कर लोकसभा पहुंची थीं। इसके बाद 1971 के चुनाव में भी इंदिरा गांधी यहां से सांसद चुनी गई। लेकिन इमरजेंसी के बाद जब 1977 में चुनाव हुआ तो इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं। यहां से राजनारायण सांसद बनें। इसके बाद 1980 में इंदिरा गांधी ने रायबरेली में जीत हासिल की लेकिन इस्तीफा दे दिया। 1981 में उप चुनाव हुए तो गांधी-नेहरू परिवार के सदस्य अरुण नेहरू यहां से जीते। 1984 में भी अरुण नेहरू यहां से सांसद चुने गए। इंदिरा गांधी की मामी शीला कौल भी रायबरेली से 1989 और 1991 में सांसद चुनीं गईं।

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद बनाई दूरी

1991 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरुंबदूर में  लिट्टे ने पूर्व पीएम राजीव गांधी की एक रैली के दौरान हत्या कर दी। इस हत्याकांड के बाद करीब एक दशक तक गांधी परिवार चुनावी राजनीति से दूर रहा। 1991 से 1999 तक गांधी परिवार का कोई यहां से चुनाव नहीं लड़ा।

दो बार बीजेपी को मिली जीत

गांधी परिवार की गैर मौजूदगी में 1996 और 1998 में यहां से कांग्रेस की बजाय बीजेपी को जीत मिली। भाजपा के अशोक सिंह ने लगातार दो बार जीत का परचम लहराया। हालांकि, 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार के खास कैप्टन सतीश शर्मा सांसद बने।

2004 में सोनिया ने भरा पर्चा

2004 में हुए लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने रायबरेली से पर्चा भरा। यह चुनाव सोनिया गांधी भारी अंतर से जीतीं। इसके बाद वह लगातार रायबरेली से चुनाव जीतती रहीं। लेकिन 2024 में हो रहे लोकसभा चुनाव के पहले ही सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा के लिए चुन ली गई हैं। यहां से पहली बार राहुल गांधी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। रायबरेली से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में राहुल गांधी मैदान में हैं तो बीजेपी ने यूपी के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह पर दांव लगाया है।

कब-कब कौन रहा रायबरेली का सांसद

1952- फिरोज गांधी (कांग्रेस)
1958- फिरोज गांधी (कांग्रेस)
1962- ब्रजलाल (कांग्रेस)
1967- इंदिरा गांधी (कांग्रेस)
1971- इंदिरा गांधी (कांग्रेस)
1977- राजनारायण (बीकेडी)
1980- इंदिरा गांधी (कांग्रेस)
1981-अरुण नेहरू( कांग्रेस) उपचुनाव 
1984- अरूण नेहरू (कांग्रेस)
1989- शीला कौल (कांग्रेस)
1991- शीला कौल (कांग्रेस)
1996- अशोक सिंह (भाजपा)
1998- अशोक सिंह (भाजपा)
1999- कैप्टन सतीश शर्मा(कांग्रेस)
2004- सोनिया गांधी (कांग्रेस)
2006-सोनिया गांधी (कांग्रेस) उपचुनाव
2009- सोनिया गांधी (कांग्रेस)
2014-सोनिया गांधी (कांग्रेस)
2019-सोनिया गांधी (कांग्रेस)

क्या है यूपी का जातीय समीकरण?

रायबरेली में करीब 11 फीसदी ब्राह्मण, करीब नौ फीसदी राजपूत, सात फीसदी यादव वोटर है। इस सीट पर दलित वोटर्स की संख्या सबसे अधिक करीब 34 फीसदी है। यहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या 6 प्रतिशत है। लोध जाति की संख्या करीब 6 प्रतिशत तो कुर्मी बिरादरी यहां 4 प्रतिशत है। अन्य जातियों की संख्या करीब 23 प्रतिशत है।

रायबरेली में 3 मई तक नामांकन की आखिरी तारीख थी। यहां 20 मई को वोट पड़ेगा।

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