सार
रेलवे अफसरेां की गलती के कारण एक बुजुर्ग को करीब डेढ़ हजार किमी यात्रा खड़े होकर करनी पड़ी। यह तब था जब बुजुर्ग ने करीब एक महीने पहले ही रिजर्वेशन करा लिया था और उनकी सीट तभी स्लिपर क्लास में कनफर्म हो चुकी थी।
नई दिल्ली। ट्रेन में सफर आराम से गुजरे इसके लिए लोग यात्रा की प्लानिंग के साथ ही रिजर्वेशन करवा लेते हैं। मगर तब क्या हो जब सीट कन्फर्म होने के बाद भी आपको खड़े होकर यात्रा करनी। वह 5-10 किमी नहीं बल्कि, लगभग डेढ़ हजार किमी। शख्स जवान है तो फिर सोच सकते हैं, मगर बुजुर्ग हैं तब उनकी हालत क्या हुई होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
यह दुखद वाकया हुआ बिहार के इन्द्रनाथ झा के साथ। हालांकि, यह मामला करीब 14 साल पुराना है, मगर आज यह मौजूं है, क्योंकि तब अपने साथ हुए इस अत्याचार का बदला लेने की उन्होंने ठानी थी और उपभोक्ता आयोग के जरिए उन्होंने रेलवे को अच्छा सबक सिखाया है। रेलवे ने तब इन्द्रनाथ झा को दरभंगा से दिल्ली खड़े होकर यात्रा करवाई थी। सीट कन्फर्म होने के बाद भी बैठने नहीं दिया।
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14 साल उपभोक्ता आयोग ने दिया न्याय
उपभोक्ता आयोग ने इन्द्रनाथ झा को 14 साल बाद ही सही मगर अब न्याय दिलाते हुए रेलवे को एक लाख रुपए जुर्माना भरने को कहा है। यह फैसला दिल्ली में साउथ डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रेड्रेसल कमीशन ने इन्द्रनाथ झा की शिकायत पर पूर्व-मध्य रेलवे के जीएम के विरुद्ध सुनाया है। दरअसल, इन्द्रनाथ झा फरवरी 2008 में दिल्ली आना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने दरभंगा से दिल्ली तक का टिकट बुक किया था। उपभोक्ता आयोग ने अपने फैसले में कहा, लोग आरामदायक सफर के लिए पहले ही रिजर्वेशन कराते हैं, लेकिन इन्द्रनाथ झा को पूरी यात्रा में परेशानी उठानी पड़ी।
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अफसरों ने कन्फर्म सीट किसी और यात्री को बेच दी
ट्रेन में रेलवे अफसरों ने इन्द्रनाथ झा की कन्फर्म सीट किसी और यात्री को बेच दी थी। झा ने टीटीई से पूछा तो बताया गया कि स्लीपर क्लास का उनका टिकट एसी में अपग्रेड कर दिया गया है। इन्द्रनाथ झा जब एसी बोगी में पहुंचे तो उन्हें वहां भी सीट नहीं दी गई और पूरा सफर खड़े होकर कराया गया।
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आयोग ने रेलवे की दलील नहीं मानी
रेलवे अफसरों ने कहा कि उनकी कोई गलती नहीं थी। इन्द्रनाथ झा ने बोर्डिंग स्टेशन से ट्रेन नहीं पकड़ी बल्कि, पांच घंटे बाद किसी और स्टेशन पर ट्रेन में चढ़े। टीटीई ने समझा कि उन्होंने ट्रेन नहीं पकड़ी और नियमों के तहत सीट वेटिंग यात्री को दे दी गई। आयोग ने रेलवे की इस दलील को नहीं माना। अगर सीट एसी में अपग्रेड कर दी गई तो वह देनी चाहिए थी।
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