सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से अधिकारियों से पूछा गया कि उन्होंने इतने लंबे समय से विचाराधीन कैदी को उसके विधिक अधिकार की जानकारी दी या नहीं। मामले में सुप्रीम कोर्ट के सौदान सिंह केस के बारे में भी जानकारी दी गई। 

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 साल 6 माह से अधिक समय से जेल में बंद विचाराधी कैदियों की सशर्त जमानत को मंजूर कर लिया है। इन सभी को व्यक्तिगत मुचलके पर दो प्रतिभूति पर रिहा करने का निर्देश दिया गया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने दिया है। यह आदेश जालौन, उरई के अखिलेश की जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामलों में वकीलों की अहम भूमिका होती है। लिहाजा विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिए कानूनी सहायता दी जानी चाहिए। युवा अधिवक्ताओं को इसके लिए आगे आना चाहिए। ऐसा इसलिए जिससे कैदियों को उनके अधिकारों की जानकारी दी जा सके। 

जेल प्राधिकारियों का है ये दायित्व 
हाईकोर्ट ने जेल के अधिकारियों से पूछा कि इतने लंबे समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदी को उसके विधिक अधिकार की जानकारी दी गई है या नहीं। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के सौदान सिंह केस का जिक्र करते हुए कहा कि जेल प्राधिकारियों का दायित्व है कि वह कैदी को उसके अधिकारों के बारे में जानकारी दें। यदि कैदी को छुड़ाने वाला कोई न हो तो उसे विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिए कानूनी सहायता दी जानी चाहिए। याची का एक केस तो उस समय दर्ज किया गया जब वह जेल में बंद था। एफआईआर में वह नामित नहीं था। बाद में विवेचना में उसका नाम आया। 

जेल में हो चुकी दो आरोपियों की मौत 
मामले की विवेचना के दौरान सामने आया कि जेल अधिकारी भी आरोपित हैं। दो आरोपियों की तो जेल में ही मौत हो चुकी हैं। इसी के साथ सह अभियुक्तों को जमानत मिल चुकी है। सरकारी वकील ने कहा कि ट्रायल में अभियोजन पक्ष के 5-6 गवाहों के बयान दर्ज हो चुके हैं। अभियोजन पक्ष की ओर से कुल 63 गवाह हैं। मामले में निर्देश होने के बावजूद ट्रायल कोर्ट की आदेश सीट नहीं दी गई। मामले में 2012 में ट्रायल शुरू हुआ। आपराधिक केस दशकों तक विचाराधीन रहा। 

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