सार

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में होली का एक अलग ही रंग है। यह बाबा विश्वनाथ की धारा धाम कहा जाता है। यहां होली के पहले बाबा माता गौरा के साथ रंगभरी होली भी खेली जाती है। और उसके एक दिन उपरांत बाबा भोलेनाथ भस्म की होली भी खेलते हैं। भस्म की होली मणिकर्णिका घाट पर आयोजित की जाती है। जो रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद मनाई जाती है।

अनुज तिवारी
वाराणसी:
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में होली का एक अलग ही रंग है। यह बाबा विश्वनाथ की धारा धाम कहा जाता है। यहां होली के पहले बाबा माता गौरा के साथ रंगभरी होली भी खेली जाती है। और उसके एक दिन उपरांत बाबा भोलेनाथ भस्म की होली भी खेलते हैं। भस्म की होली मणिकर्णिका घाट पर आयोजित की जाती है। जो रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद मनाई जाती है।

क्या है मान्यता आज के दिन की 
कहा जाता है कि बाबा विश्वनाथ आज भूत पिचास प्रेत के साथ मणिकर्णिका घाट पर ठीक 12 बजे होली खेलने आते हैं। बाबा विश्वनाथ की रंगभरी होली के 1 दिन बाद बाबा भूत पिचास अपने गढ़ के साथ मणिकर्णिका घाट पर होली खेलने पहुंचते हैं। बाबा के मशान वाले होली में काशीवासी भी बाबा के साथ रंगों और भस्म के साथ होली खेलते हैं। 

कैसी होती हैं तैयारियां 
काशी के मणिकर्णिका घाट पर शिव की भस्म होली खेलने के लिए भारी संख्या में साधु संतों के साथ आम जन भी शामिल होते हैं। वहीं इसके लिए सभी तरह की तैयारियां भी की जाती हैं। मसाने की होली शुरू होने से पहले परंपरागत तरीके से घाट पर शिव और काली की पूजा की जाती हैं। पूजा खत्म होने के बाद पूरा घाट भस्म और गुलाल के रंगों से रंगा नजर आता हैं। 

क्या है अद्भुत मान्यता 
वहीं काशी के लोगों की मान्यता है कि द्वादश के दिन भस्म से खेली जाने वाली होली में मां पार्वती समेत सभी देवी देवता शामिल होंते है। साथ ही यह भी माना जाता है कि भगवान शिव के आदेश के कारण उनके प्रिय भूत प्रेत गण व अन्य शक्तियां उस उत्सव से दूर रहती है। वहीं लोगों की यह भी मान्यता है कि इस दिन कुछ भी हो जाए भगवान शिव महाश्मशान पर होली खेलने आते है। वहीं इस दौरान एक तरफ से भगवान शिव की मसाने की होली जा रही होती है तो दूसरी तरफ शव जा रहा होता है।

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