सार
इस 'इंडिया केयर्स' के संरक्षक ओडिशा कैडर के सीनियर आईपीएस अरुण बोथरा हैं। अरुण बोथरा इंडिया केयर्स के अस्तित्व में आने से पहले तक खुद भी कई लोगों की मदद करते रहे और सुर्खियों में रहे। अरुण बोथरा ने एशियानेट हिंदी से बातचीत मे कहा, 'कोविड की सेकंड वेव के दौरान अपने वॉलंटियर्स से चर्चा की तो लगा कि हमारे बीच ऐसे कई लोग हैं जो अपने-अपने स्तर से लोगों की मदद तो करना चाहते हैं, मगर उन्हें यह भरोसा चाहिए कि वे जिसकी मदद कर रहे हैं वह उस तक पहुंच भी रही है।
दिव्या गौरव त्रिपाठी, लखनऊ
कोरोना वायरस के कहर को शायद ही कोई भूल सकता है। जब लोग घरों में कैद थे, ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाइयों, राशन, बच्चों की स्कूल फीस जैसी छोटी-बड़ी जरूरत के लिए भटक रहे थे, तब कुछ नेक लोगों ने मिलकर मदद का हाथ बढ़ाया। एक-दो लोगों की मदद से शुरू हुई यह पहल धीरे-धीरे 'इंडिया केयर्स' नाम के एक वर्चुअल एनजीओ का रूप लेती चली गई। पड़ा। हालांकि इस एनजीओ का कोई बैंक अकाउंट नहीं है, न ही यह कोई डोनेशन लेता है। मगर इसके बावजूद अब तक सैकड़ों जरूरतमंदों की मदद का जरिया बन चुका है।
आपके मन में भी सवाल उठ रहा होगा कि आखिर बिना डोनेशन कोई एनजीओ किसी की मदद कैसे कर सकता है? दरअसल इस एनजीओ के दूसरों की मदद करने का सबसे बड़ा जरिया, इसका खुद का एक 'बैंक'...जी हां, इंडिया केयर्स के पास एक ऐसा बैंक है जिसकी पूंजी रुपये नहीं लोगों के वादे हैं। इंडिया केयर्स के देशभर में वॉलंटियर्स हैं। इसके वॉलंटियर्स में कई आर्मी ऑफिसर्स, सीनियर आईएएस-आईपीएस, सेंट्रल सर्विस के अधिकारी और कई निजी कंपनियों के प्रफेशनल्स भी शामिल हैं।
कब महसूस हुई प्रॉमिस बैंक की जरूरत?
इस 'इंडिया केयर्स' के संरक्षक ओडिशा कैडर के सीनियर आईपीएस अरुण बोथरा हैं। अरुण बोथरा इंडिया केयर्स के अस्तित्व में आने से पहले तक खुद भी कई लोगों की मदद करते रहे और सुर्खियों में रहे। अरुण बोथरा ने एशियानेट हिंदी से बातचीत मे कहा, 'कोविड की सेकंड वेव के दौरान अपने वॉलंटियर्स से चर्चा की तो लगा कि हमारे बीच ऐसे कई लोग हैं जो अपने-अपने स्तर से लोगों की मदद तो करना चाहते हैं, मगर उन्हें यह भरोसा चाहिए कि वे जिसकी मदद कर रहे हैं वह उस तक पहुंच भी रही है। इसके लिए हमने एक प्रॉमिस बैंक बनाने का फैसला किया। ऐसा बैंक जिसमें सारी जमापूंजी लोगों के वादे ही होंगे। जून 2021 में शुरू हुए प्रॉमिस बैंक का मकसद था कि उन लोगों का एक डेटाबेस बनाया जाए, जो लोगों की मदद करना चाहते हैं और जरूरत पड़ने पर उन्हें सीधे उस जरूरतमंद से जोड़ा जा सके।'
कैसे खुलता है प्रॉमिस बैंक में 'खाता'?
इंडिया केयर्स के वॉलंटियर्स ही इसकी रीढ़ की हड्डी हैं। प्रॉमिस बैंक को इंडिया केयर्स के तीन वॉलंटियर्स की एक टीम देखती है। गुजरात निवासी नमन शाह ने एशियानेट से बातचीत में कहा, 'इंडिया केयर्स के साथ जुड़कर समाज के लिए कुछ कर पाना अपने आप में एक बेहद खास अनुभव है। जबसे प्रॉमिस बैंक है, हमारी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। प्रॉमिस बैंक से जुड़ने के लिए आपको एक गूगल फॉर्म भरना होता है जिसमें नाम, मोबाइल नंबर, मदद करने का उनका बजट जैसी और भी जरूरी चीजें पूछते हैं। उनसे यह भी पूछा जाता है कि वह साल में कितनी बार मदद कर सकते हैं। उनके दिए जवाबों का हम एक डेटाबेस बनाते हैं। इसके बाद जब भी देश के किसी हिस्से से मदद की आवाज उठती है, तो हम बारी-बारी से अपने इन्हीं अकाउंट होल्डर्स से संपर्क करते हैं।'
प्रॉमिस बैंक में 500 से ज्यादा डिपॉजिटर्स, 105 लोगों की मदद
नमन ने आगे बताया, 'आमतौर पर हमारे 95 फीसदी तक डिपॉजिटर्स तुरंत मदद करने को तैयार हो जाते हैं। प्रॉमिस बैंक बने हुए सात महीने हो गए हैं और इन सात महीनों में 500 से ज्यादा डिपॉजिटर्स ने रजिस्टर किया है। अभी तक हमने मदद की करीब 105 रिक्वेस्ट पर काम किया है और लोगों तक अपने डिपॉजिटर्स के जरिए मदद पहुंचाई है। लोग धीरे-धीरे हमारे साथ जुड़ रहे हैं। अपने डिपॉजिटर्स और साथी वॉलंटियर्स का उत्साह देखकर हमारा भी काम करने का जज्बा दोगुना हो जाता है।'
'लोगों की गाढ़ी कमाई का ध्यान रखना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी'
इंडिया केयर्स की एक अन्य वॉलंटियर रितु डागर ने बताया कि जब इंडिया केयर्स को मदद की कोई रिक्वेस्ट मिलती है तो हम सबसे पहले देशभर में फैले अपने वॉलंटियर्स के जरिए ग्राउंड पर जाकर वेरिफाई करते हैं। हम देखते हैं कि जिसे जरूरत है क्या वह असल में जरूरतमंद है? उनका बैकग्राउंड चेक करते हैं। देखते हैं कि जिस तक मदद पहुंचनी है उसकी माली हालत क्या है। सारी बातें चेक करने के बाद ही हम अपने डिपॉजिटर्स को उनकी बारी के हिसाब से कॉल करते हैं और मदद पहुंचाते हैं। रितु ने कहा कि किसी गलत आदमी तक हमारे डिपॉजिटर की गाढ़ी कमाई का पैसा न पहुंच जाए, यही हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
ऐसे बनती चली जाती है मदद की पूरी चेन
रितु ने कहा कि हमने महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में एक गरीब परिवार तक राशन पहुंचाने से लेकर, लद्दाख में एक 82 वर्षीय पूर्व सैन्यकर्मी तक राशन, बिस्तर और सोलर लाइट तक पहुंचाने का काम किया है। ये सब हमारे वॉलंटियर्स, हमारे मेंटर्स और डिपॉजिटर्स के जरिए संभव हो सका। रितु ने कहा कि प्रॉमिस बैंक में ऑन रेकॉर्ड हमारे पास भले ही 500 से ज्यादा डिपॉजिटर्स हों, मगर कई बार ऐसे केसेस आते हैं जिनमें वे लोग भी मदद करने के लिए सामने आ जाते हैं जो न हमारे डिपॉजिटर्स हैं और न ही वॉलंटियर्स।