सार
इस बीच अचानक बने राजनैतिक समीकरणों ने समाजवादी पार्टी को एक अलग ही दिशा दे दी। धौरहरा के बीजेपी विधायक बाला प्रसाद अवस्थी ने अचानक समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। बाला प्रसाद धौरहरा से 3 बार और एक बार मोहम्मदी से विधायक रहे हैं। समाजवादी पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता अभी गुणा गणित में ही उलझे थे कि इसके अगले दिन धौरहरा से 2012 में बहुजन समाज पार्टी से विधायक रहे शमशेर बहादुर भी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए।
धर्मेंद्र राजपूत
लखीमपुर खीरी: धौरहरा के चुनावों में कभी एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकने वाले आज एक ही नाव पर सवार हैं। धौरहरा के बीजेपी विधायक बाला प्रसाद अवस्थी का भाजपा से मोहभंग हुआ। तो उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। इसके 24 घण्टे बाद बहुजन समाज पार्टी से धौरहरा के विधायक रहे शमशेर बहादुर भी बसपा को करारा झटका देकर सपा में शामिल हो गए। जबकि समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे धौरहरा के पूर्व विधायक यशपाल चौधरी के बेटे वरुण चौधरी भी सपा का झंडा लेकर मैदान में हैं।
धौरहरा में भाजपा और बसपा के बड़े नेताओं के सपा में शामिल होने के बाद समीकरण नए तरीके से बनने बिगड़ने लगे हैं। पार्टी में नए शामिल दोनों नेताओं के समर्थकों में खुशी की लहर है। तो वहीं समाजवादी पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं में नाराजगी भी है। धौरहरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से समाजवादी पार्टी से यशपाल चौधरी 1993 और 2002 में चुनाव जीते थे। पिछले साल चौधरी के निधन के बाद से उनके बेटे वरुण चौधरी ने राजनैतिक विरासत संभाली। वरुण लगातार क्षेत्र में सक्रिय भी थे।
इस बीच अचानक बने राजनैतिक समीकरणों ने समाजवादी पार्टी को एक अलग ही दिशा दे दी। धौरहरा के बीजेपी विधायक बाला प्रसाद अवस्थी ने अचानक समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। बाला प्रसाद धौरहरा से 3 बार और एक बार मोहम्मदी से विधायक रहे हैं। समाजवादी पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता अभी गुणा गणित में ही उलझे थे कि इसके अगले दिन धौरहरा से 2012 में बहुजन समाज पार्टी से विधायक रहे शमशेर बहादुर भी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए।
मौजूदा समय में सपा,बसपा और भाजपा के एक हो जाने से चुनाव की जातीय गणित भी बिखर गई है। जो कार्यकर्ता कल तक नीले झंडा हाथी निशान के नारे बुलंद कर योगी और अखिलेश को घेरते थे। वे अब अखिलेश यादव को अपनाना नायक बता रहे हैं। इसी तरह धौरहरा के भगवाधारी भी जो अब तक हर मुद्दे पर अखिलेश यादव को घेरते थे। वे अब अखिलेश यादव का गुणगान कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी पार्टियों के बदलाव के बाद आ रही राजनैतिक पोस्ट पर लोग सवाल कर रहे हैं। इस पूरी कवायद के बीच धौरहरा के पुराने समाजवादियों की नाराजगी भी अनदेखी नहीं की जा सकती है।
जातीय समीकरणों की बात करें तो धौरहरा ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र है। इसका फायदा उठाने के लिए बीजेपी ने विनोद शंकर अवस्थी पर दांव लगाया है। सपा अगर बाला प्रसाद अवस्थी के बेटे राजीव अवस्थी को प्रत्याशी बनाती है तो ब्राह्मण वोटों का बिखराव होगा। वरुण का टिकट कटने की नाराजगी भी सपा के ब्राह्मण चेहरे को झेलनी होगी। धौरहरा में कुर्मी बिरादरी का करीब 40,000 वोट है। समाजवादी पार्टी में यशपाल चौधरी का यह बेस वोट रहा है। दलित बिरादरी की बात करें। तो यह अब तक बीएएसपी का कैडर वोट रहा है।मगर धौरहरा में बसपा का मजबूत नेतृत्व न होने से वोटों का बिखराव होगा। बसपा के शमशेर बहादुर मुस्लिमों के अच्छा खासा वोट पाते रहे हैं। इस बार उनके मैदान में हटने से इसका फायदा सपा को होता दिख रहा है। अन्य पिछड़ा वोट में सपा औऱ भाजपा की सेंधमारी हमेशा की तरह बनी रहेगी। कुलजमा धौरहरा का चुनाव पार्टियों से ज्यादा जातियों के प्रभाव से होगा।